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सुख-दुख

अतीक की असली कहानी (4) : अशरफ़ की लौंडियाबाजी और मदरसा रेप कांड के कारण अपनों ने ‘भाई’ से फेर लिया मुँह!

मोहम्मद ज़ाहिद-

लगातार 4 बार इलाहाबाद शहर पश्चिमी से विधायक चुने जाने के बाद समाजवादी पार्टी ने अतीक अहमद के हनक और प्रभाव का इस्तेमाल अपने पक्ष में मुसलमानों की गोलबंदी के लिए करना शुरू कर दिया क्योंकि मुसलमानों के वोट की दावेदारी बसपा की भी थी , इसीलिए प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, कानपुर, फतेहपुर में अतीक अहमद को सक्रिय किया।

इसी समय काल में अशरफ़ के बदनाम किस्से भी जनता के सामने आने लगे और अतीक अहमद के दामन‌ में अशरफ़ की कार गुजारियों के दाग लगने लगे। जिस गलत काम से अतीक अहमद सदैव बचते रहे उसे अशरफ धड़ल्ले से करते चले गए।

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अशरफ की बैठकबाजी सिविल लाइंस जैसे पाश एरिया में होती थी , इसके पूर्व एक घटना और हुई जब 1996 में 22 साल के अशरफ अपनी कार से दोस्तों के साथ सिविल लाइंस में जा रहे थे कि अचानक कार में ब्रेक लगी और पीछे आ रही कार ने अशरफ की कार में टक्कर मार दी।

पीछे की यह कार इलाहाबाद के एक बड़े व्यापारी राजेश साहू की थी , अशरफ और राजेश साहू के बीच इसी टक्कर को लेकर काफ़ी तीखी बहस हुई , संभवतः हाथापाई भी हुई।

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राजेश साहू को जब पता चला कि जिससे उनकी हाथापाई हुई वह अतीक अहमद के भाई अशरफ हैं तो वह बिना विलम्ब किए अतीक अहमद के आफिस जाकर अनजाने में हुई इस घटना के लिए अतीक अहमद से माफ़ी मांगने लगे।

लोगों का कहना है कि हाथ जोड़कर राजेश साहू अतीक अहमद से माफ़ी मांगते रहे और अंत में अतीक अहमद ने कहा कि “चलो ठीक है, पर तुम बड़ी गलती कर डाले हो लेकिन जाओ और आगे से सही रहना।”

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तब की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार माफी मांग कर राजेश साहू अतीक अहमद के आफिस से बाहर निकल कर कुछ दूर चले ही थे कि उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई।

सीधा आरोप अशरफ पर लगा , पर ठीक उसी दिन और उसी समय अशरफ की चंदौली में अवैध तमंचे के साथ गिरफ्तार दिखाया गया। बाद में चर्चा हुई कि उस थाने के तत्कालीन थानाध्यक्ष अतीक अहमद के रिश्तेदार मंसूर अहमद काज़ी थे।

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इस मामले में अतीक अहमद उनके पिता फिरोज़ अहमद और अशरफ नामजद हुए , सभी गिरफ्तार हुए फिर ज़मानत पर रिहा हुए। यह मामला अभी तक कहां पहुंचा कुछ खबर नहीं।

कम उम्र में ही अशरफ के ऊपर ऐसे आरोप के बाद कुछ दिन तक तो अशरफ खामोश थे परन्तु 5-6 साल बाद वह भी भाई की छत्रछाया में रंग दिखाने लगे। उनके कर्म उनके दोस्तों के साथ निचले स्तर के थे , ऐसी चर्चाएं थीं कि सिविल लाइंस में बैठकर वह तमाम तरह की आवारागर्दी और बदनामी वाले काम करने लगे।

इसमें इलाहाबाद के एक प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान का मामला बहुत हाईलाइट हुआ और वह पूरा सिंधी परिवार अपनी बेटी के साथ इलाहाबाद छोड़ कर चला गया।

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कुछ लोगों ने इसकी शिकायत अतीक अहमद से की मगर अतीक अहमद अपने भाई के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे और अशरफ की हरकतें बढ़ती चली गईं।

उनके छेड़छाड़ और इसी तरह के तमाम कामों की‌ शिकायतों पर अतीक अहमद चुप्पी साध लेते‌ या शिकायत करने वालों को ही डांट देते।

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इलाहाबाद में हर कोई जानने लगा कि अशरफ अपने बड़े भाई अतीक अहमद की सबसे बड़ी कमज़ोरी हैं।

अतीक अहमद ने अपनी राबिनहुड की छवि जो पिछले 15-20 सालों में बनाई थी उस पर अशरफ की हरकतों कारण डेंट लगने लगा।

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परन्तु इसी बीच समाजवादी पार्टी से अतीक अहमद की कुछ खटपट हुई , ऐसी अपुष्ट खबरें आईं कि अतीक अहमद समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए मुलायम सिंह यादव पर दबाव डाल रहे थे जिसे नहीं माना गया।

अतीक अहमद 1999 में समाजवादी पार्टी छोड़ कर पटेल लोगों की पार्टी “अपना दल” के प्रदेश अध्यक्ष बन गये और अपना दल के टिकट पर इलाहाबाद पश्चिमी से लगातार पांचवीं बार जीत दर्ज कर के विधायक बने।

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तब भी जबकि अपना दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनेलाल पटेल खुद चुनाव हार गए । लेकिन उनकी पार्टी से अतीक अहमद और नवाबगंज से अंसार पहलवान विधानसभा पहुंचे।

चुनाव के पहले अतीक अहमद के मुलायम सिंह यादव से खटके रिश्ते सत्ता के समीकरण में फिर सहज हो गए। मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री बनने के लिए संख्या बल चाहिए था और अतीक अहमद फिर फिट बैठ गये और मुलायम सिंह यादव की सरकार को समर्थन दे दिया।

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ठीक दो साल बाद हुए 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद अब फूलपुर से समाजवादी पार्टी के सांसद चुने गए तो उन्होंने इलाहाबाद पश्चिमी सीट से विधायक पद से इस्तीफा दे दिया।

2004 में यूपीए -1 की सरकार बनते ही रेलवे से स्क्रेप खरीद का काम तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा बंद कर दिया गया।

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तब तक अतीक अहमद अपना खर्च बहुत बढ़ा चुके थे , तमाम दशहरे मुहर्रम में और तमाम जगहों और लोगों को चंदा देने से लेकर गरीब लड़कियों की शादी और पढ़ाई , उनके काफिले में चलते दर्जनों मंहगी कारों और सैकड़ों असलहा धारी लोगों के कारण अतीक अहमद का खर्च बेतहाशा बढ़ गया और स्क्रेप का काम बंद होने से आमदनी शून्य हो गयी।

इधर साथ ही साथ स्क्रेप का काम बंद होने के बाद उन्होंने नये कारोबार की तरफ कदम बढ़ाया तो उनकी छत्रछाया में ज़मीन का काम कर रहे उनके लोग ही उनकी जद में आ गये और लोगों के अनुसार अशरफ ने आगे बढ़कर उनके जमीन के कारोबार में यह कह कर अपना हिस्सा मांगना शुरू कर दिया कि “यह कारोबार भाई के नाम पर ही आप लोग करते हैं”।

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फिर पहले अशरफ और उसके बाद अतीक अहमद ज़मीन के कारोबार में पूरी तरह उतर गये। यहीं से उनकी जनता के बीच छवि बदलनी शुरू हो गयी।

इलाहाबाद में उनके लोगों द्वारा हर ज़मीन या मकान की खरीद फरोख्त में उन्होंने हिस्सा लेना शुरू कर दिया। विवादित , झगड़े या किराएदारी की पुरानी बिल्डिंग औने पौने दामों में खरीदनी शुरू कर दी।

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ऐसी ज़मीन जो किसी और के नाम की कब्ज़ा किसी और का ऐसे लोग अतीक अहमद को अपनी ज़मीन औने पौने दामों में बेचने‌ लगे।

जो किराएदार सीलिंग एक्ट में 50-50 साल से मुकदमा लड़ रहे थे वह अतीक अहमद द्वारा प्रापर्टी खरीदने की सूचना मिलते ही खाली करके चले जाते।

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ज़मीन के कारोबार में अतीक और अशरफ़ ने अपनी दबंगई के सहारे अंधाधुंध खेल खेला, और अलीना सिटी और अहमद सिटी नामक हाऊसिंग सोसाइटी बना कर लोगों को प्लाट बेचने लगे।

इधर इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र का परिसीमन हुआ और पश्चिमी सीट के मुस्लिम बाहुल्य इलाके काट काट कर बगल के इलाहाबाद दक्षिणी विधानसभा और चायल विधानसभा में जोड़ दिए गये और हिंदू बहुल क्षेत्रों को पश्चिमी सीट से जोड़ दिया गया।

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इलाहाबाद पश्चिमी सीट का वह समीकरण उलट पलट गया जिसके कारण अतीक अहमद 5 बार लगातार विधायक चुने गए।

खाली हुई इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर उपचुनाव हुआ और अतीक अहमद ने अपने रसूख का इस्तेमाल करके अपने भाई अशरफ को समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बना दिया जबकि समाजवादी पार्टी की स्थानीय इकाई गोपाल दास यादव‌ को उम्मीदवार बनाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाए हुए थी। पर अतीक अहमद के आगे किसी की एक ना चली। यही गलती अतीक अहमद के लिए काल बन गयी।

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बसपा ने पिछले चुनाव में एक नारा दिया था “चढ़ गुंडों की छाती पर, मोहर लगेगी हाथी पर”

और फिर मायावती ने अतीक अहमद के भाई अशरफ के खिलाफ उस समय इलाहाबाद के हिस्ट्रीशीटर नंबर 1 और‌ पुलिस की जारी लिस्ट में नंबर 1 मोस्ट वांटेड क्रिमिनल राजूपाल को टिकट दे दिया।

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इलाहाबाद के तराई क्षेत्र में आतंक का पर्याय बने राजूपाल को तब इलाहाबाद के लोगों ने पहली बार देखा जब वह जुलूस के साथ नामांकन करने जा रहे थे।

खैर चुनाव में भाजपा ने अधोषित रूप से अंदर ही अंदर बसपा को समर्थन कर दिया और परिसीमन से गड़बड़ाए समीकरण के कारण अशरफ शहर पश्चिमी से चुनाव हार गये और पुलिस के डर से भागे भागे फिर रहे इनामी हिस्ट्रीशीटर राजूपाल विधायक बन गए।

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कहते हैं कि अशरफ हारने के बाद अतीक के कंधे पर सिर पर रखकर फूट फूटकर रोये और अतीक ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा था, तुम्हें विधायक बनवाकर रहूंगा।

राजूपाल विधायक बनने के बाद वह अतीक अहमद के साम्राज्य को चुनौती देने लगे, कभी नगर निगम की ठेकेदारी तो कभी किसी ज़मीन पर अधिकार को लेकर राजूपाल की दबंगई लगातार दिखाई देने लगी।

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तभी 25 जनवरी, 2005 को एक बार फिर इलाहाबाद शहर दहल गया।

नवनिर्वाचित विधायक राजू पाल की कार पर सुलेमसराय में नीवा मोड़ पर‌ धूंआंधार फायरिंग की गई और तब समाचारपत्रों में छपी खबरों के अनुसार हमलावरों ने राजूपाल को गोली लगने के बाद जब उन्हें अस्पताल लेकर जाया जा रहा था तब घटनास्थल से स्वरूप रानी मेडिकल कॉलेज तक करीब 5 किमी तक उनको गोलियां मारते रहे।

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अस्पताल में स्ट्रेचर पर लाद कर जब ले जाया जा रहा था तब हमलावरों ने उनके ऊपर फायरिंग की और सीने में तमाम गोलियां उतार दीं।

राजूपाल की हत्या कर दी गई और फिर प्रशासन ने उनके‌ शव को उनके परिवार को ना देकर आनन फानन में आधी रात को अंतिम संस्कार कर दिया।

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इस हत्याकांड में अतीक अहमद, अशरफ और उनके लोगों का नाम आया , मुलायम सिंह यादव की सरकार में पावरफुल अतीक अहमद और अशरफ गिरफ्तारी से बचते रहे।

राजूपाल की हत्या के बाद इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर पुनः चुनाव हुआ, अशरफ बदनामी के उच्च स्तर पर थे , पार्टी और लोगों ने अतीक अहमद से अपनी पत्नी को विधानसभा उपचुनाव में उतारने का सुझाव दिया मगर अतीक अहमद नहीं माने।

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यह चुनाव अशरफ और राजू पाल की विधवा पूजा पाल के बीच हुआ और सत्ता के सहारे अशरफ चुनाव जीत कर विधायक बन गए।

इसी के साथ साथ करेली के लखनपुर गांव में सन 2005 में अतीक अहमद ने हाईटेक टाउनशिप बसाने की योजना शुरू की थी।

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अलीना सिटी और अहमद सिटी के नाम से इस प्रोजेक्ट के लिए सात सौ बीघा जमीन ली गई जिसमें आरोप लगा कि किसानों की ज़मीनों को अतीक अहमद ने डरा धमका कर औने पौने दाम में खरीद ली। आए दिन अतीक अहमद और अशरफ द्वारा कहीं कब्जे की खबर तो कहीं जबरन बैनामे कि खबरें आने लगीं जिसमें ज्यादातर नाम अशरफ का आता था , दाग अतीक अहमद के दामन में लगते थे।

ज़मीन के कारोबार में उतरने के बाद अतीक अहमद की छवि पूरी तरह बदलने लगी और लोग डरने लगे कि उनकी ज़मीन या संपत्ति पर अशरफ और अतीक की नजर ना पड़ जाए।

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यह मुलायम सिंह यादव की सरकार का समय था। सत्ता और प्रशासन को उंगलियों पर नचाते अतीक अहमद और‌ अशरफ ज़मीन के कारोबार के दलदल में उतरते चले गए। सत्ता का सहारा लेकर अशरफ़ हर वह काम करने लगे जिससे अतीक अहमद ने 17-18 साल तक खुद को बचाए रखा।

मदरसा कांड

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और फ़िर 17 जनवरी 2007 में कड़ाके की ठंड में इलाहाबाद फिर दहल गया। और उस रात जो हुआ उसने अतीक अहमद की आन बान शान सबको हवा में उड़ा दिया। इलाहाबाद शहर के इतिहास में यह रात शायद सबसे काली रातों में से एक मानी जाएगी।

करेली के बाहरी इलाके महमूदाबाद के एक सुनसान इलाके में एक “मदरसा” स्थित था। यह मदरसा अतीक अहमद के सजातीय लोगों के गांवों से घिरा था।

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इलाहाबाद और आस पास के गरीब घरों की तमाम लड़कियां इसमें पढ़ाई करती थी। मदरसे में लड़कियों का हास्टल भी था।

17 जनवरी देर रात हास्टल के दरवाजे पर दस्तक हुई। अमूमन देर रात हास्टल में कोई नहीं आता था। अंदर से पूछा गया तो धमकी भरे अंदाज में तुरंत दरवाजा खोलने को कहा।

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दरवाजा खोला गया तो सामने तीन बंदूकधारी खड़े थे। तीनों अंदर घुसे। लड़कियां एक हाल में सोती थीं। वे सीधे वहीं पहुंच गए। धमकी और गाली गलौज के साथ लड़कियों से कहा गया कि वे नकाब खोल दें।

सामने मौत खड़ी थी। बेबस लड़कियों के सामने और कोई चारा नहीं था। बंदूकधारी दरिंदों ने उनमे से दो नाबालिग लड़कियों को चुना और अपने साथ ले जाने लगे।

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लड़कियां हैवानों के पैरों में गिर गईं। रहम की भीख मांगी लेकिन शैतानों का दिल नहीं पसीजा। वे दोनों लड़कियों को उठा ले गए। बाहर उनके साथ दो लोग और शामिल हो गए।

कुल पांच लोगों ने आगे नदी के किनारे दोनों लड़कियों के साथ कई कई बार दुष्कर्म किया। दोनों लड़कियों को सुबह होने से पहले लहूलुहान हालत में मदरसे के दरवाजे पर फेंक बदमाश भाग निकले।

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इस घटना ने प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार बैकफुट पर आ गई।

अगले दिन इस शर्मनाक कांड को छिपाने की पुरजोर कोशिश की गई। पुलिस ने सिर्फ छेड़खानी की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया और पांच रिक्शे वालों और एक दर्जी का काम करने वालों को गिरफ्तार करके बंद कर दिया , लेकिन घटना सुर्खियों में आने के बाद दो दिन बाद गैंगरेप समेत संगीन धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई।

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क्षेत्र में हर कोई समझ रहा था कि यह क्या हो रहा है मगर अतीक अहमद के सामने बोलने की किसी की हिम्मत नहीं थी। यह पहली घटना थी जिसमें अतीक अहमद ने अपने ही लोगों का मान सम्मान और समर्थन खो दिया और जिस क्षेत्र के लोग अतीक अहमद को तमाम आरोपों के बावजूद अपना मसीहा मानते थे वह मदरसा कांड के कारण अतीक अहमद से दूर होने लगे।

चुंकि मदरसा इलाहाबाद के एक प्रख्यात मौलाना का था जिनका तबलीग में अच्छा खासा असर था, क्षेत्र के सभी मदरसा संचालक और मौलानाओं ने इस कांड को लेकर क्षेत्र के प्रतिष्ठित पालकी मैरेज हॉल में एक बैठक की , होने वाली इस बैठक का सुनकर सांसद अतीक अहमद भी वहां पहुंच गए।

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सारे ओलेमा और मदरसा संचालकों ने अतीक अहमद को बहुत बुरा भला कहा और उनसे करेली के थानाध्यक्ष को स्थानांतरित करने कि मांग की जिससे सांसद अतीक अहमद ने गुस्से में यह कहते हुए ठुकरा दिया कि “जिसे जो उखाड़ना है उखाड़ ले , एसओ “राजेश कुमार सिंह” मेरा छोटा भाई है वह नहीं हटेगा। और बैठक से गुस्से में उठ कर चले गए।

अतीक अहमद के इस रवैए ने पूरे विधानसभा क्षेत्र में मदरसा कांड को लेकर अतीक और अशरफ़ पर संदेह और गहरा दिया।

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जिन लोगों को इस आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया उन्हें बाद में अदालत से राहत मिल गई। उन लोगों ने पुलिस पर फंसाने का आरोप लगाते हुए घटना में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया।

मामले ने तूल पकड़ा और एसओ राजेश कुमार सिंह और अतीक के बीच सांठगांठ की खबरों के बीच तत्कालीन एसएसपी बीडी पॉलसन ने एसओ राजेश सिंह को सस्पेंड कर दिया था। राजेश पर आरोप था कि गैंगरेप की सूचना देने के बाद भी उन्होंने पहली एफआईआर सिर्फ छेड़खानी की दर्ज की थी।

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2007 विधानसभा चुनाव होने की घोषणा होने ही वाली थीं और इसी मदरसे में तब मायावती आईं और उन्होंने घोषणा की कि आने वाले चुनाव में उनकी सरकार बनी तब मदरसा कांड की सीबीआई जांच कराई जाएगी।

भारी दबाव के बीच समाजवादी पार्टी की सरकार ने अपने तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अहमद हसन को मदरसे भेजा जहां उन्होंने पीड़ितों को ₹5-5 लाख मुआवजा देने की कोशिश की मगर अतीक अहमद की मौजूदगी में जनता ने इसका भारी विरोध किया और पीड़ितों के परिजनों ने पैसे लेने से मना कर दिया। अहमद हसन को खाली हाथ वापस आना पड़ा।

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इस घटना ने अतीक अहमद की बनाई 18 साल की ज़मीन छीन ली , लोगों के बीच यह परसेप्शन बन गया कि आरोपियों को अतीक अहमद और अशरफ बचा रहें हैं। अतीक अहमद अपने ही लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता खो चुके थे और अशरफ घृणा के पात्र बन गये।

इस घटना के बाद फिर कभी अतीक अहमद के परिवार का कोई भी शख्स कोई भी चुनाव नहीं जीत सका। क्षेत्र के लोग मानते हैं कि अतीक अहमद को उन दोनों नाबालिग लड़कियों की आह लग गयी।

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2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती की पुर्ण बहुमत की सरकार बनी तो मदरसा कांड की सीबीआई जांच शुरू हुई मगर कुछ दिन बाद ही सीबीआई ने इस घटना को अपने स्तर के अनुरूप ना मानते हुए जांच बंद कर दी।

मायावती सरकार के निर्देश पर अतीक अहमद और अशरफ पर राजू पाल हत्याकांड और मदरसा कांड को लेकर कार्यवाही शुरू हुई और स्पेशल टॉस्क फोर्स के तत्कालीन आइजी ने अतीक अहमद के ड्रीम प्रोजेक्ट एलीना और अहमद सिटी की जांच करते हुए कार्रवाई करने के निर्देश दिए और उन प्रोजेक्ट्स में बने भवनों को ध्वस्त कर दिया गया।

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राजूपाल की हत्या के बाद पहली बार 31 दिसंबर 2008 में सांसद अतीक अहमद को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने पीतमपुरा के गालिब अपार्टमेंट्स से गिरफ्तार कर लिया। जबकि एक और आरोपी और अतीक अहमद के भाई अशरफ को लगभग 2.5 साल की फरारी के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा कौशांबी से गिरफ्तार किया गया।

जारी…

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लेखक मोहम्मद ज़ाहिद इलाहाबाद के सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनसे संपर्क [email protected] के ज़रिए किया जा सकता है।

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