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सियासत

यदि हमने गलत रास्ता ही चुना तो आजादी क्या करे!

शिवेन्द्र कुमार पाठक
सचिव प्रेस क्लब
गाजीपुर

आज आजादी से उलाहाना कैसा और क्यों? : सैकड़ों वर्षों की गुलामी को झेल चुके इस देश के लिए वस्तुतः वह गौरव पूर्ण दिन था जो अब राष्ट्रीय समारोह दिवस बन चुका है। 15 अगस्त 1947। यह वह ऐतिहासिक दिन है, जिस दिन भारत ब्रितानिया हूकुमत की गुलामी से आजाद हुआ था। कालान्तर से से शासन-प्रशासन इस दिन को अब राष्ट्रीय समारोह दिवस के रूप में मनाने का पुरजोर प्रयास न करे, तो बहुतो का पता भी न लगे कि यह 15 अगस्त कब आया- कब गया और इसका महत्व क्या है।

शिवेन्द्र कुमार पाठक
सचिव प्रेस क्लब
गाजीपुर

आज आजादी से उलाहाना कैसा और क्यों? : सैकड़ों वर्षों की गुलामी को झेल चुके इस देश के लिए वस्तुतः वह गौरव पूर्ण दिन था जो अब राष्ट्रीय समारोह दिवस बन चुका है। 15 अगस्त 1947। यह वह ऐतिहासिक दिन है, जिस दिन भारत ब्रितानिया हूकुमत की गुलामी से आजाद हुआ था। कालान्तर से से शासन-प्रशासन इस दिन को अब राष्ट्रीय समारोह दिवस के रूप में मनाने का पुरजोर प्रयास न करे, तो बहुतो का पता भी न लगे कि यह 15 अगस्त कब आया- कब गया और इसका महत्व क्या है।

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यह सच है कि विरासत में प्राप्त इस आजादी के बीते 59 वर्षों में हमने विभिन्न क्षेत्रों में नित नूतन कीर्तिमान स्थापित किया है किन्तु यह भी सच है कि आजादी के इतने वर्षो बाद भी किसान अपनी फसल का वाजिब मूल्य न पा सका। किसान निर्वासन, विस्थापन और आत्महत्या के लिए विवश हुआ। मजदूर को न रोजगार मिला और नही ठीक से दो जून की रोटी। स्त्री बलात्कार चरम पर पहुंचे। सरकार के कल्याणकारी स्वरूप के क्रमशः क्षरण ने आम आदमी के मूल अधिकारो को छीना। सरकारी अपराधी रसूखदार होते गये और ईमानदार आदमी शक्तिहीन और विपन्न। मूलभूत आवश्यकता के वस्तुओ के दाम इतने बढ़े कि जीना मुहाल। भ्रष्टाचार के चौतरफा बढते राक्षसी कदम। कारपोरेट सेक्टर का सत्ता पर बढता प्रभुत्व। लगातार बढते प्रदूषण। कुपोषण और बढते मृत्यु दर। जनता को बार-बार सत्ता से मोह भंग का शिकार होना पड़ा। यह सब देख क्या ऐसा नहीं लगता कि यह वह लोक तंत्र या स्वतंत्रता नही है जिसका स्वप्न देखा गया।

आज अपने पूर्वजों के असंख्य बलिदानों से प्राप्त आजादी को अब कोसते हुए युवा पीढी पूछती है कि आजादी ने हमे क्या दिया? वह पूछती है और खुद ही जवाब ही दे लेती है। आजादी ने हमें कर्ज में डुबो दिया। आजादी के कारण ही शिक्षा का स्तर मटियामेट हो गया। आजादी ने नौकरशाही को भ्रष्ट बना दिया। अखबार कहते है कि आजादी के बाद नेताओं का स्तर गिरा है और नेता कहते हैं अखबारों का। आजादी ने देश को बिखराव के बिन्दु पर ला खड़ा किया। आजादी के कारण ही आज चहुंओर आराजकता का माहौल है।

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प्रश्न इस बात का है कि आजादी के प्रति नई पीढ़ी का मातम कितना सही है? आखिर दोष क्या है 15 अगस्त या उस दिन मिली इस आजादी का? आजादी ने क्या दिया यह तो यह पीढ़ी पूछती है किन्तु इन्होंने आजादी को क्या किया इसकी चर्चा भी नहीं करती। मैं पूछता हूं आजादी ने किससे वादा किया था वह कुछ हमे देगी अथवा अपने को कल्पवृक्ष अथवा कामधेनु होने का दावा कब किया था। आजादी ने हमारी बेड़िया काट दी फिर भी हम अपनी मर्जी से अपने निकम्मेपन की चादर ओढकर मुहं छिपाए पड़े रहे तो आजादी क्या करें। आजादी तो एक अवसर है, वह खुली हवा में कसरत करने का तो तंग कमरे में पड़े रहने का भी।

अपनी उन्नति करने की आजादी है तो पतन के गर्त में जाने की भी। ईमानदारी की भी आजादी है तो बेईमानी की भी उतनी ही आजादी है। आजादी ने हमे इस बात की पूरी आजादी दी कि हम कौन सा विकल्प चुने और क्या करें। आजादी ने हमे आत्मबोध दिया, अपने निकम्मेपन से हमारी मुठभेड़ कराई। आजादी ने हमे उस वास्तविकता से परिचय कराया। जो ब्रिटिश राज भी न करा सका। इसने अस्तित्व के द्वन्दों से हमारा परिचय कराया और हम पर छोड़ दिया कि हम कौन सा रास्ता चुने अब यदि हमने गलत रास्ता ही चुना तो आजादी क्या करे।

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दरअसल आजाद भारत में जन्में लोगों के लिए आजादी एक अनर्जित वरदान है। अब वरदान तो होता ही है सुख देने के लिए सो कुछ करना तो दूर हमने इसके प्रति चिन्ता तक नहीं की जबकि आवश्यकता तो इस बात की थी हम सभी 15 अगस्त के दिन हर वर्ष ‘‘राष्ट्रीय पुर्ननिर्माण मे पूरी शक्ति के योग’’ का संकल्प लेते और पूरे वर्ष भर उसे ईमानदारी से क्रियान्वित करते।

अब देर आये दुरुस्त आये की कहावत को चरितार्थ करते हुए निश्चय कर इस प्रकार के पुर्ननिर्माण में जुट जाना चाहिए इससे हमारा देश हर दृष्टि से सम्पन्न हो सके और तब ही 15 अगस्त और आजादी का वास्तविक महत्व नई पीढ़ी जान व समझ सकेगी। अन्यथा मूल्यहीनता के दौड़ में आज कल जो कुछ हो रहा है। उसके दृष्टिगत हमे अपनी बची खुची  ईमानदारी, नेक नियती और मानवता को किसी म्यूजियम में रख आना होगा ताकि आने वाली पीढी यह जान सके कि ‘‘भेड़ियो का जिस्म व दिमाग लेकर ही नहीं आया था इंसान’’ यह कभी औरो की पीड़ा देखकर रोता था। पर यह उस समय की बात है। जब उसकी चेतना में धन का चकाचौध नहीं वरन् विश्वात्मा का प्रकाश झिलमिलाता था।

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लेखक शिवेन्द्र कुमार पाठक जिला गाजीपुर के वरिष्ठ पत्रकार हैं. वे प्रेस क्लब गाजीपुर के सचिव भी हैं. shivendra pathak से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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