हिंदुस्तान जैसे बड़े अखबार में इस तरह की गलती अक्षम्य है. स्वतंत्रता दिवस को गणतंत्र दिवस बताना, वह भी हेडिंग में, शर्मनाक है. किसी पाठक ने भड़ास के पास झारखंड के रामगढ़ एडिशन के हिंदुस्तान अखबार का ईपेपर भेजा है. इसमें कोडरमा डेटलाइन से एक खबर है जिसमें गणतंत्र दिवस लिखा गया है.
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यदि हमने गलत रास्ता ही चुना तो आजादी क्या करे!
शिवेन्द्र कुमार पाठक
सचिव प्रेस क्लब
गाजीपुर
आज आजादी से उलाहाना कैसा और क्यों? : सैकड़ों वर्षों की गुलामी को झेल चुके इस देश के लिए वस्तुतः वह गौरव पूर्ण दिन था जो अब राष्ट्रीय समारोह दिवस बन चुका है। 15 अगस्त 1947। यह वह ऐतिहासिक दिन है, जिस दिन भारत ब्रितानिया हूकुमत की गुलामी से आजाद हुआ था। कालान्तर से से शासन-प्रशासन इस दिन को अब राष्ट्रीय समारोह दिवस के रूप में मनाने का पुरजोर प्रयास न करे, तो बहुतो का पता भी न लगे कि यह 15 अगस्त कब आया- कब गया और इसका महत्व क्या है।
मजीठिया वेतनमान मार खुशी के गीत गा रहे मीडिया के मसखरे स्वतंत्रता दिवस को विज्ञापनों के टकसाल में ढालने पर आमादा
सारी कारस्तानी देख रहा है विजयी विश्व तिरंगा प्यारा….
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा सब देख रहा है कि मजीठिया वेतनमान मार कर खुशी के गीत गा रहे मीडिया के मसखरे किस तरह आजादी मिलने के दिन को विज्ञापनों के टकसाल में ढालने पर आमादा हैं, झंडोत्तोलन पर सरगना सलामी ले रहा है और भ्रष्टाचार की वैतरिणियों में तैर रहे अपराधियों के गिरोह तालियां बजा रहे हैं, दुःशासनों के झुंड स्त्री-विमर्श और दलित चेतना की वकालत में व्यस्त हैं, चप्पलों पर तिरंगा छाप रहे हैं, उसे उल्टा लटका रहे हैं।