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सियासत

बेगूसराय के नाम पर गंध फैला रहा सीरियल

(संपादक, भड़ास4मीडिया, भड़ास पर न्यूज चैनलों और प्रिंट के बारे में काफी सामग्री रहती है लेकिन आपको मुंबइया मनोरंजन चैनलों और उनकी करतूतों की भी पोल खोलनी चाहिए। इन चैनलों में जिस तरीके की कमीशनखोरी और कटेंट के नाम पर गंध फैलाया जा रही है, समाज में जहर घोलने के सिवाय और कुछ नहीं कर रही है। इनके ईपीओ ने कुछ ठेकेदार टाइप तथाकथित लेखकों का एक गिरोह बना रखा है, जो हर चैनल के हर सीरियल में घुसे हुए हैं। ये लोग खुद कुछ नहीं लिखते बल्कि अपना मोटा कमीशन काटकर दूसरों से लिखवाते हैं। हालत ये है कि पढ़े-लिखे टैलेंटेड लोग अपना खून पसीना एक कर कुछ लिखते हैं और ये कमीशनखोर उसमें सही गलत गोद-गादकर अपनी दुकान चला रहे हैं। न इन्हें समाज की समझ है, न इंसानी रिश्तों की। ये सीरियल क्या खाक लिखेंगे। आजकल सुभाषचंद्रा के नए चैनल एंड टीवी पर बेगूसराय के नाम पर गंध फैलाया जा रहा है। मैने इसके बारे में कुछ लिखा है। अगर उचित लगे तो इसे भड़ास पर जगह दे दीजिए। – अनुज जोशी)

हिंदी सीरियलों के निर्माता पता नही किस दुनिया में रहते हैं। इन्हें न समाज के बारे में पता होता है न समाजिक ताने-बाने के बारे में और ना ही सामाजिक संबन्धों के बारे में। फिर भी ये लोग सीरियल बनाए जा रहे हैं और मनोरंजन चैनलों में बैठे कूढ़मगज इन्हें मोटी धनराशि देकर इनकी सेवाएं ले भी रहे हैं। कुछ एक टीवी धारावाहिकों को छोड़ दें तो ज्यादातर का हाल इतना बुरा है कि कोई संजीदा इंसान जिसके पास थोड़ा बहुत भी भेजा है, इन्हें बर्दाश्त नहीं कर सकता। यही वजह है कि पिछले 10 सालों में न जाने कितने मनोरंजन चैनल आए और गए लेकिन हालत में सुधार कतई नहीं। उस पर तुर्रा ये कि ये सभी सीरियल निर्माता हमेशा ज्ञान बघारते रहते हैं कि यार टीवी में टैलेंटेड राइटर की बेहद कमी है। जबकि सच्चाई ये है कि ये फटीचर खुद लेखन और निर्माण के बारे में कुछ नहीं जानते। 

<p>(संपादक, भड़ास4मीडिया, भड़ास पर न्यूज चैनलों और प्रिंट के बारे में काफी सामग्री रहती है लेकिन आपको मुंबइया मनोरंजन चैनलों और उनकी करतूतों की भी पोल खोलनी चाहिए। इन चैनलों में जिस तरीके की कमीशनखोरी और कटेंट के नाम पर गंध फैलाया जा रही है, समाज में जहर घोलने के सिवाय और कुछ नहीं कर रही है। इनके ईपीओ ने कुछ ठेकेदार टाइप तथाकथित लेखकों का एक गिरोह बना रखा है, जो हर चैनल के हर सीरियल में घुसे हुए हैं। ये लोग खुद कुछ नहीं लिखते बल्कि अपना मोटा कमीशन काटकर दूसरों से लिखवाते हैं। हालत ये है कि पढ़े-लिखे टैलेंटेड लोग अपना खून पसीना एक कर कुछ लिखते हैं और ये कमीशनखोर उसमें सही गलत गोद-गादकर अपनी दुकान चला रहे हैं। न इन्हें समाज की समझ है, न इंसानी रिश्तों की। ये सीरियल क्या खाक लिखेंगे। आजकल सुभाषचंद्रा के नए चैनल एंड टीवी पर बेगूसराय के नाम पर गंध फैलाया जा रहा है। मैने इसके बारे में कुछ लिखा है। अगर उचित लगे तो इसे भड़ास पर जगह दे दीजिए। - अनुज जोशी)</p> <p>हिंदी सीरियलों के निर्माता पता नही किस दुनिया में रहते हैं। इन्हें न समाज के बारे में पता होता है न समाजिक ताने-बाने के बारे में और ना ही सामाजिक संबन्धों के बारे में। फिर भी ये लोग सीरियल बनाए जा रहे हैं और मनोरंजन चैनलों में बैठे कूढ़मगज इन्हें मोटी धनराशि देकर इनकी सेवाएं ले भी रहे हैं। कुछ एक टीवी धारावाहिकों को छोड़ दें तो ज्यादातर का हाल इतना बुरा है कि कोई संजीदा इंसान जिसके पास थोड़ा बहुत भी भेजा है, इन्हें बर्दाश्त नहीं कर सकता। यही वजह है कि पिछले 10 सालों में न जाने कितने मनोरंजन चैनल आए और गए लेकिन हालत में सुधार कतई नहीं। उस पर तुर्रा ये कि ये सभी सीरियल निर्माता हमेशा ज्ञान बघारते रहते हैं कि यार टीवी में टैलेंटेड राइटर की बेहद कमी है। जबकि सच्चाई ये है कि ये फटीचर खुद लेखन और निर्माण के बारे में कुछ नहीं जानते। </p>

(संपादक, भड़ास4मीडिया, भड़ास पर न्यूज चैनलों और प्रिंट के बारे में काफी सामग्री रहती है लेकिन आपको मुंबइया मनोरंजन चैनलों और उनकी करतूतों की भी पोल खोलनी चाहिए। इन चैनलों में जिस तरीके की कमीशनखोरी और कटेंट के नाम पर गंध फैलाया जा रही है, समाज में जहर घोलने के सिवाय और कुछ नहीं कर रही है। इनके ईपीओ ने कुछ ठेकेदार टाइप तथाकथित लेखकों का एक गिरोह बना रखा है, जो हर चैनल के हर सीरियल में घुसे हुए हैं। ये लोग खुद कुछ नहीं लिखते बल्कि अपना मोटा कमीशन काटकर दूसरों से लिखवाते हैं। हालत ये है कि पढ़े-लिखे टैलेंटेड लोग अपना खून पसीना एक कर कुछ लिखते हैं और ये कमीशनखोर उसमें सही गलत गोद-गादकर अपनी दुकान चला रहे हैं। न इन्हें समाज की समझ है, न इंसानी रिश्तों की। ये सीरियल क्या खाक लिखेंगे। आजकल सुभाषचंद्रा के नए चैनल एंड टीवी पर बेगूसराय के नाम पर गंध फैलाया जा रहा है। मैने इसके बारे में कुछ लिखा है। अगर उचित लगे तो इसे भड़ास पर जगह दे दीजिए। – अनुज जोशी)

हिंदी सीरियलों के निर्माता पता नही किस दुनिया में रहते हैं। इन्हें न समाज के बारे में पता होता है न समाजिक ताने-बाने के बारे में और ना ही सामाजिक संबन्धों के बारे में। फिर भी ये लोग सीरियल बनाए जा रहे हैं और मनोरंजन चैनलों में बैठे कूढ़मगज इन्हें मोटी धनराशि देकर इनकी सेवाएं ले भी रहे हैं। कुछ एक टीवी धारावाहिकों को छोड़ दें तो ज्यादातर का हाल इतना बुरा है कि कोई संजीदा इंसान जिसके पास थोड़ा बहुत भी भेजा है, इन्हें बर्दाश्त नहीं कर सकता। यही वजह है कि पिछले 10 सालों में न जाने कितने मनोरंजन चैनल आए और गए लेकिन हालत में सुधार कतई नहीं। उस पर तुर्रा ये कि ये सभी सीरियल निर्माता हमेशा ज्ञान बघारते रहते हैं कि यार टीवी में टैलेंटेड राइटर की बेहद कमी है। जबकि सच्चाई ये है कि ये फटीचर खुद लेखन और निर्माण के बारे में कुछ नहीं जानते। 

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 इधर पिछले कुछ सालों से टीवी पर आंचलिकता बिक रही है या बेची जा रही है। कोई बनारस के बैकग्राउंड पर सीरियल सरका रहा है तो कोई पटना की पृष्ठभूमि पर धारावाहिक धकेल रहा है। लेकिन हकीकत में इन सभी सीरियलों में इन शहरों या यहां की संस्कृति से दूर का भी वास्ता नही होता। अभी हाल ही में एंड टीवी पर एक सीरियल शुरू हुआ है – ‘बेगूसराय- ससुरी का जगह है’। इस दो कौड़ी के सीरियल के कार्यकारी निर्माता हैं मनीष पोपट और सचिन मोहिते लेकिन कंपनी है गोयनका समूह की सारेगामा लिमिटेड। कॉन्सेप्ट चैनल का है जिसे बाकायदा टाइटल क्रेडिट में जगह दी गई है। सीरियल का प्रोमो तिग्मांशु धुलिया ने फिल्माया था, इसलिए विजुअली इस प्रोमो ने लोगों का ध्यान खींचा। लेकिन जब ये सीरियल दर्शकों के सामने आया तो इसकी कलई खुल गई। हालांकि इसके फटीचर टाइप के शीर्षक से ही लगने लगा था कि इस सीरियल की क्रियेटिव टीम में कुछ सीरियसली चिरकुट टाइप के लोग हैं। नाम बेगूसराय लेकिन भाषा वही मुंबइया भांडों वाली। जब इस सीरियल का पहला एपिसोड देखने को मिला तब तो बिल्कुल साफ हो गया कि अगर यही दो टकिया टीम इस सीरियल को लिख रही है तो हो गया बंटाधार। लेकिन फिर भी इस पर लिखने से पहले पूरा एक सप्ताह इंतजार करना जरूरी समझा। और आज जब पहला सप्ताह बीत गया तो रहा नहीं गया।

इस सीरियल के प्रमुख किरदारों में दो नाम है, फूलन ठाकुर और लाखन ठाकुर। नाम सुनकर ऐसा लगता है जैसे चंबल के बीहड़ के किसी गांव का नाम है। रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और प्रो. रामशरण शर्मा की धरती पर कम से कम हमने तो कोई ऐसा नाम आज तक नहीं सुना। कहानी क्या है बताने की कोई जरूरत नहीं। इस सीरियल का टाइटिल न दिखाया जाय तो आप ये नहीं बता पाएंगे कि इस सीरियल का बैकग्राउंड मराठवाड़ा का है, बुंदेलखंड का है, पूर्वांचल का है या बिहार का। ये है इस सीरियल की क्रियेटिव टीम की मेहनत और उसका टैलेंट। इस सीरियल में अक्सर खाने की टेबल पर घर की औरतें फूहड़ अंदाज में बात करती नजर आती हैं। ये है इस सीरियल को लिखने वालों की संवेदनशीलता। इसलिए इस सीरियल के कंटेन्ट पर सिर न खपाकर मैने सोचा कि इस सीरियल को लिखने वालों का ही चेहरा क्यों न उजागर कर दिया जाय।

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इस ससुरे सीरियल को लिखने का ठेका लिया है किसी पटनहिया अंशुमान सिन्हा ने। ठेका इस लिए कि क्रेडिट में, स्क्रीप्ट में इन्हीं का नाम जा रहा है। लेकिन हकीकत में इसे लिख रहे हैं इनके दो चेले। इन चेलों का नाम है महेश पांडे और शोभित जायसवाल। महेश पांडे स्टोरी लिख रहा है तो शोभित जायसवाल डायलॉग्स। अंशुमान सिन्हा ने अपनी वेबसाइट पर अपने परिचय में आंय बांय शांय खूब लपेट रखा है। लेकिन इनकी ठेकेदारी में इनकी टीम क्या कर रही है बताने की जरूरत नहीं। ये शख्स इतना लंपट है कि इसने सीरियल के सिनॉप्सिस में बेगुसराय को (quaint quirky place) विचित्र और सनकी लोगों की जगह लिख डाला है। इस मोटी बुद्धि के आदमी ने सिनॉप्सिस में लिखा है कि बेगुसराय में हर शख्स को अपनी जर, जोरू और जमीन की हिफाजत के लिए जंग लड़नी पड़ती है (Begusarai is a place where every man has to battle for his zar, zoru and zameen! )। मतलब सचमुच हद दर्जे की लंपटई है।

खैर अब असली स्क्रीप्ट लिखने वालों पर आते हैं। पहला नाम है महेश पांडे। पांडेजी का कुल परिचय ये है कि इनके बाउजी आजमगढ़ से बंबई आए थे जीविका की तलाश में और यहीं बस गए। सो उनके सुपुत्र को बॉलीवुड में हीरो बनने से कौन रोक सकता था। महेश पांडे भी झोले में फोटो लेकर संघर्ष करने निकल पड़े लेकिन एक्टिंग में दाल नहीं गली। इस दौरान एकता कपूर इनकी सेवा टहल से प्रसन्न हो गईं और अपने सीरियलों के लेखकों की मीटिंग में जो कुछ वो बोलतीं, उसे कागज पर लीपने का काम इन्हें सौंप दिया। पांडेजी की निकल पड़ी लेकिन जनाब बातचीत में अपनी बैकग्राउंड को लेकर इस कदर हीन भावना से ग्रस्त रहे कि पंजाबियों और गुजरातियों के बीच भोजपुरिया समाज पर बेहूदा टिप्पणी करने से बाज कभी नहीं आए। ये अलग बात है कि अपनी खुद की प्रोडक्शन की दुकान चमकाने के लिए जनाब ने दो चार फूहड़ किस्म की भोजपुरी फिल्में भी बना डालीं। कुल मिलाकर पांडेजी ने बायोडाटा में एकता कपूर के कई सीरियल जोड़ लिए लेकिन लिखना पांडेजी को कभी नहीं आया। लिखना तो छोड़िए, पांडेजी को ठीक से एक पेज हिंदी भी आजतक लिखनी नहीं आयी। लेकिन दुकान चल रही है तो बेगूसराय भी ससुरी का जगह हो गई। 

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दूसरे लेखक हैं शोभित जायसवाल। गोरखपुर के रहने वाले हैं और बमुश्किल बीए पास हैं लेकिन हुलिया ऐसा कि कैरीबियन देशों के रास्त्राफेरियन भी पानी भरें। जनाब किसी तरह से गोद गादकर हिंदी के हिज्जे जोड़ लेते हैं। कैरेक्टर क्या होता है, उसकी भाषा कैसी होगी, ये सब इनसे न पूछिए। ये पूछिए कि किस-किस ठेकेदार लेखक के यहां मुनीमी कर चुके हैं। और हर एपिसोड पर चैनल से मिलने वाले मेहनताने में ठेकेदार को कितना कमीशन दे सकते हैं। बस बात बन गई और जनाब ने स्क्रीप्ट के नाम पर यहां भी कूड़ा करना शुरू कर दिया है।

तो कुल मिलाकर ये है इस सीरियल के कर्ता-धर्ताओं की फौज, जो एक शहर की समृद्ध संस्कृति के नाम पर टीवी स्क्रीन पर दुर्गंध फैलाने में जुटी हुई है।

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(लेखक से ई-मेल संपर्क – [email protected])

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