भोपाल में आठ अप्रैल को विन्ध्य क्षेत्र के पत्रकारों का सम्मान

रीवा : मध्यप्रदेश शासन की ओर से पं. बनारसीदास चतुर्वेदी पत्रकारिता पुरस्कार के लिए चयनित विन्ध्य क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकारों को 8 अप्रैल 2015 को भोपाल में आयोजित हो रहे राज्य स्तरीय समारोह में पुरस्कृत-सम्मानित किया जायेगा। पुरस्कार के रूप में 51 हजार रुपये के साथ ही प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है। राज्य शासन …

लोकपाल के नाम पर सत्ता में आए और सवाल उठाने पर लोकपाल की ही छुट्टी कर दी!

आम आदमी पार्टी में मची भयानक कलह के बाद भी हालांकि पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पार्टी में “आल इज़ वेल”  है, लेकिन हर रोज़ हम सभी को जो देखने और सुनने को मिल रहा, उससे तो यही लगता है की केजरी हम सभी को बार बार “अप्रैल फूल” ही बना रहे हैं. हालांकि केजरी को अब इसकी ज़रूरत नहीं होनी चाहिए थी क्योंकि वह तो पहले ही हम दिल्ली वासियों को अप्रैल फूल बना कर ही दिल्ली की सत्ता पर क़ाबिज़ हुए हैं। 

दिल्ली में शोरूम के चेंजिंग रूम में लड़कियों के वीडियो बनाने वाला मैनेजर गिरफ्तार

नई दिल्ली : यहां लाजपत नगर में पुलिस ने एक शोरूम मैनेजर को गिरफ्तार किया है। उसने अपने शोरूम के चेंजिंग रूम में कैमरा लगा रखा था और वह महिलाओं के वीडियो बनाता था।

भगत सिंह के विचारों को जन-जन की आवाज बनाने का संकल्‍प

लखनऊ : आज जब देश में कारपोरेट लूट और समाज को बाँटने वाली शक्तियों का बोलबाला है तो ऐसे में भगतसिंह के विचार आज पहले से कहीं ज़्यादा प्रासंगिक हो गये हैं और उन्‍हें जन-जन तक ले जाने की ज़रूरत है। पूँजीवादी विकास ने भगतसिंह की चेतावनी को सही साबित किया है कि गोरे अंग्रेज़ों की जगह काले अंग्रेज़ों के आ जाने से देश के मेहनतकशों की ज़िन्‍दगी में कोई बदलाव नहीं आयेगा।

जागरण के भरोसे अपना भविष्य तय करने से पहले जरा सोच लेना

बहुत से लोग इस समय दैनिक जागरण में नौकरी कर रहे होंगे, तो कुछ नौकरी छोड़ चुके होंगे या कुछ को नौकरी छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया गया होगा। यहां तक कि कुछ को तो क्रूरतापूर्वक निकाल दिया गया होगा। कुछ ऐसे भी होंगे जो नौकरी के लिए प्रयास कर रहे होंगे। नौकरी आपका पूरा भविष्य तय करती है। इसलिए नौकरी में आने से पहले कंपनी की प्रोफाइल जानना बहुत जरूरी होता है। आपको बताना चाहता हूं कि दैनिक जागरण की ब्रांडिंग पर भरोसा करके अपना भविष्य तय करने से पहले एक बार जरूर सोचें।

अब किसानों के बच्चे चपरासी, ड्राइवर नहीं बनेंगे

….तो भूमि अधिग्रहण कानून लोकसभा में पास हो गया। अब किसानों के बच्चे चपरासी ड्राईवर नहीं बनेंगे। केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र सिंह ने कहा कि 70 प्रतिशत किसानों के पास बहुत छोटे आकार की ज़मीन है। वह कहीं भी जाता है तो सिफारिश करता फिरता है कि मेरे बेटे को चपरासी ड्राईवर, कंडक्टर या पुलिस में लगवा दो। किसानों को भी आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए। कांग्रेस सहित विरोधी दल 50 साल से किसानों को टुकड़े तो डालती रही है ताकि वे मरे नहीं, लेकिन इन्हें आगे बढ़ने का मौका मत दो। दूसरी तरफ विरोधी ठीक उल्टा आरोप लगा रहे थे कि ये बिल किसान विरोधी है। इससे किसान बरबाद हो जाएंगे।

‘एंकर’ की खोज के बहाने युवाओं के करिअर से खिलवाड़

छत्तीसगढ़ : एक पत्रकार ने अपने पत्र में ‘भड़ास4मीडिया’ को बताया है कि ‘IBC24 छत्तीसगढ़ का न्यूज चैनल है। युवाओं के करिअर से खिलवाड़ कर रहा है। इस चैनल में नए लोगों को मौका देने के नाम पर एंकर की खोज करायी जाती है। नए लोगों को मौका देने का ढोल पीटा जाता है। कुछ महीने बाद उसको निकाल दिया जााता है। अब तक चैनल की ओर से दो बार एकंरों की खोज हो चुकी है।

बेगूसराय के नाम पर गंध फैला रहा सीरियल

(संपादक, भड़ास4मीडिया, भड़ास पर न्यूज चैनलों और प्रिंट के बारे में काफी सामग्री रहती है लेकिन आपको मुंबइया मनोरंजन चैनलों और उनकी करतूतों की भी पोल खोलनी चाहिए। इन चैनलों में जिस तरीके की कमीशनखोरी और कटेंट के नाम पर गंध फैलाया जा रही है, समाज में जहर घोलने के सिवाय और कुछ नहीं कर रही है। इनके ईपीओ ने कुछ ठेकेदार टाइप तथाकथित लेखकों का एक गिरोह बना रखा है, जो हर चैनल के हर सीरियल में घुसे हुए हैं। ये लोग खुद कुछ नहीं लिखते बल्कि अपना मोटा कमीशन काटकर दूसरों से लिखवाते हैं। हालत ये है कि पढ़े-लिखे टैलेंटेड लोग अपना खून पसीना एक कर कुछ लिखते हैं और ये कमीशनखोर उसमें सही गलत गोद-गादकर अपनी दुकान चला रहे हैं। न इन्हें समाज की समझ है, न इंसानी रिश्तों की। ये सीरियल क्या खाक लिखेंगे। आजकल सुभाषचंद्रा के नए चैनल एंड टीवी पर बेगूसराय के नाम पर गंध फैलाया जा रहा है। मैने इसके बारे में कुछ लिखा है। अगर उचित लगे तो इसे भड़ास पर जगह दे दीजिए। – अनुज जोशी)

हिंदी सीरियलों के निर्माता पता नही किस दुनिया में रहते हैं। इन्हें न समाज के बारे में पता होता है न समाजिक ताने-बाने के बारे में और ना ही सामाजिक संबन्धों के बारे में। फिर भी ये लोग सीरियल बनाए जा रहे हैं और मनोरंजन चैनलों में बैठे कूढ़मगज इन्हें मोटी धनराशि देकर इनकी सेवाएं ले भी रहे हैं। कुछ एक टीवी धारावाहिकों को छोड़ दें तो ज्यादातर का हाल इतना बुरा है कि कोई संजीदा इंसान जिसके पास थोड़ा बहुत भी भेजा है, इन्हें बर्दाश्त नहीं कर सकता। यही वजह है कि पिछले 10 सालों में न जाने कितने मनोरंजन चैनल आए और गए लेकिन हालत में सुधार कतई नहीं। उस पर तुर्रा ये कि ये सभी सीरियल निर्माता हमेशा ज्ञान बघारते रहते हैं कि यार टीवी में टैलेंटेड राइटर की बेहद कमी है। जबकि सच्चाई ये है कि ये फटीचर खुद लेखन और निर्माण के बारे में कुछ नहीं जानते।