-समरेंद्र सिंह-
अभी एफबी की दो पोस्ट पर नजर पड़ी। एक पोस्ट में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक और ईरान … सब जगह जोड़ कर कहा गया था कि हमने (मुसलमानों ने) सब बर्बाद कर लिया और अब तुम यानी हिंदू बर्बाद करने पर तुले हो। कुछ समय पहले फहमीदा रियाज की एक कविता आयी थी जिसमें कहा गया था कि भारत के लोग भी पाकिस्तान के लोगों जैसे ही निकले। कोई अंतर नहीं। ये पोस्ट उसी से प्रभावित होकर लिखी गई थी। इसमें लिखने वाले ने फहमीदा रियाज की बात को और विस्तार दिया है। उन्होंने भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में हिंदू और मुसलमान की बात की थी। इसने ऐसा करते वक्त अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक सब जोड़ लिया है। थोड़ी और मेहनत करता तो तुर्की और अल्जीरिया भी पहुंच सकता था। अचानक से अल्जीरिया की भी अब चर्चा तेज हो गई है। थोड़े दिन में कोई ऐसा मुल्क बचेगा नहीं जो इस्लामिक हो और इनका अपना नहीं हो। वो मुल्क इन्हें अपना माने न माने, ये उसे अपना जरूर मांनेंगे!
दूसरी पोस्ट और भी मजेदार है। इस पोस्ट में लिबरल लोगों के पैंट के नीचे की खाकी चड्ढी देखने की कोशिश की गई है। ये पोस्ट आजम खां से प्रभावित है। वो जया प्रदा की चड्ढी देख लेते हैं, ये लिबरल लोगों की चड्ढी देख रहे हैं। लोगों की पैंट/साड़ी के नीचे झांक कर चड्ढी देखने का शौक और हुनर दोनों कमाल का है। ये इतना “महान” हुनर है कि इस पर जितना कहा जाए उतना कम होगा! वैसे इन्हीं लोगों से प्रभावित होकर संघियों ने अब चड्ढी की जगह पैंट पहनना शुरू कर दिया है। देखना ही है तो पैंट देखो। चड्ढी रहने दो।
इस पोस्ट में एक से बढ़ कर एक तर्क दिए गए हैं। मसलन “हमने” कभी किसी के भगवान के खिलाफ कोई कार्टून नहीं बनाया। अब “हमने” में इन्होंने सभी मुसलमानों को शामिल कर लिया है। किस अधिकार से किया है यह नहीं मालूम। दो टके की हैसियत नहीं है, लेकिन हम में सब शामिल कर लेंगे। ये आधुनिक दौर में पैंगबर बनने का शौक पाले कोई हुजूर होंगे, लेकिन मूर्खता की इंतहा ये है कि इन्हें भारत के एमएफ हुसैन नहीं दिखाई देते जिन्होंने हिंदू देवी देवताओं की नंगी तस्वीरें बनाई और उस पर उनका नाम भी लिख दिया। इन्हें बामियान की वो ऐतिहासिक मूर्ति भी नहीं दिखाई देती जिसे बम से उड़ा दिया गया। सैकड़ों दरगाह नजर नहीं आते जो तोड़ दिए गए। वो मंदिर भी नहीं दिखाई देते जो ढहा दिए गए। इतना मासूम और हुनरमंद इंसान शायद ही कहीं मिले, जिसे आस-पास की कट्टरता दिखाई नहीं देती, मगर हजारों मील दूर फ्रांस की कट्टरता नजर आ जाती है।
इसमें एक और मासूम बात कही गई है कि “यहूदियों और ईसाईयों की कोशिश रही है कि इस्लाम का मूल स्वरूप समाप्त कर दिया जाए।” मूल स्वरूप क्या है? मूल स्वरूप है “एकेश्वरवाद”। और उसका एक नियम है कि कोई तस्वीर नहीं बनेगी, कोई कार्टून नहीं बनेगा। दरअसल ये कट्टरपंथी इस्लाम की बात कर रहे हैं। अब चूंकि इस्लाम का ये तबका हावी हो गया है और लिखने वाले इसी तबके के होंगे इसलिए इनकी सोच उससे आगे बढ़ ही नहीं पा रही है। इसलिए इन्हें एक कार्टून के आधार पर लोगों को गला काटना भी जायज लग रहा है।
वैसे इस्लाम में पैंगबर के चित्र भी बनाए जाते रहे हैं। चित्र बनाने वाले भी मुसलमान ही रहे हैं। ये और बात है कि कट्टरता के विस्तार से ये परंपरा कमजोर पड़ गई। थोड़ा पढ़ेंगे तो ऐसे दर्जनों चित्र इंटरनेट पर मिल जाएंगे। भारत और बांग्लादेश में भी ऐसे अनेक देवी-देवता, माई, बीबी, सूफी, संत हैं जिनकी उपासना हिंदू और मुसलमान दोनों करते रहे हैं। अजमेर की दरगाह पर जाने वाले लाखों लोगों में हिंदू भी हैं और मुसलमान भी। लेकिन इनके इस्लाम को ये मंजूर नहीं है। ये विविधता खत्म करके ये कट्टर इस्लाम लागू करना चाहते हैं। और बड़ी मासूमियत से बेहूदी और बेतुकी दलीलें गढ़ रहे हैं।
ऐसे सभी विचारकों से सिर्फ इतना ही कहना है कि दूसरों की चड्ढी देखने से पहले अपनी चड्ढी देखिए। और गलत तथ्यों के जरिए गलत बात स्थापित करने की कोशिश न करें। हिंसा को जायज ठहराने की कोशिश तो कतई नहीं होनी चाहिए। कोई दूध का धुला नहीं है। और इस कोई में इस्लाम भी शामिल है। अल्लाह और पैगंबर भी शामिल हैं। इनके दामन पर भी बेगुनाहों के खून छींटे हैं।
(पैगंबर की ये पेंटिंग्स इंटरनेट से उठाई गई हैं।)