भड़ास की मुहिम पर भरोसा करें या नहीं करें?

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जिन्हें हो खौफ रास्तों का, वो अपने घर से चले ही क्यों?
करें तूफानों का सामना, जिन्हें मंजिलों की तलाश है।

प्रिय साथियों,

समय कम बचा है। अब किसी सुखद अहसास का इंतजार मत करो। अपने कदम बढ़ाओ। वक्त निकलने के बाद आप के हाथ में कुछ भी नहीं रहेगा। मेरे पास देश के हर प्रदेश के पत्रकार साथियों के फोन आ रहे हैं। मैं सबसे हाथ जोड़कर निवेदन करना चाहता हूं कि मुझे फोन करना बंद कर दीजिए। कुछ पत्रकार भड़ास के संपादक यशवंतजी को लेकर आशंकाओं से भरे हैं। पत्रकार मुझसे पूछ रहे हैं कि भड़ास की मुहिम पर भरोसा करें या नहीं करें। मुझे ऐसे सवालों से दुख हो रहा है।

मुझे फोन करने वाले हर पत्रकार साथी को मैं कह रहा हूं कि ऐसी मानसिक स्थिति ने ही हमें कभी एकजुट नहीं होने दिया। यशंवत सर पत्रकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसे में किसी भी तरह की आशंका उनकी मुहिम और पत्रकारों के प्रति भावना को ठेस पहुंचा सकती है। आप यशवतं जी पर भरोसा ही नहीं आंख बंद कर भरोसा करें। मैं जानता हूं कि मजीठिया की इस पूरी लड़ाई के असली सलाम के वही हकदार हैं। मैं लंबे समय से देख रहा हूं।

यशवंतजी चाहते हैं कि देश के पत्रकारों को मजीठिया मिले। पत्रकार शोषण की स्थिति से बाहर आएं। मैंने वो किया जो मुझे उचित लगा। जो मेरे लिए बेहतर था। मेरी कंपनी से किए समझौते को मैं डिस्क्लोज नहीं कर सकता लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि देश के सभी मीडिया हाउस मालिक बिना लड़ाई लड़े आपको कुछ नहीं देने वाले हैं। कंपनियां शोषण के तरीके सीख चुकी हैं। मीडिया हाउस मालिकों के आस-पास ऐसे लोग हैं जो लाखों रुपए की तनख्वाह लेकर आप लोगों के शोषण के तरीके उन्हें सिखा रहे हैं। असल में यह बड़ी मछलियों जैसी कहावत को ही साबित कर रहे हैं। लेकिन अब समय क्रांति का झंडा उठाने का है।

आप लोग आशांकित मत रहिए। हमने वकीलों पर बड़ी राशि खर्च की है। भड़ास जिस राशि का निवेदन कर रहा है वह इतनी बड़ी लड़ाई के लिए कुछ भी नहीं है। हम गणित के जोड़ बाकी गुणा भाग में उलझ कर कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट आपको आपका हक दिलाने के लिए तैयार है। बस आपको अपना एक कदम बढ़ाना है। डरकर न कभी किसी ने कुछ पाया है न कभी कोई पाएगा। मेरा अनुभव कहता है कि निडरता ही आपको आपके लक्ष्य तक आसानी से पहुंचा पाएगी। यशवंतजी इस लड़ाई के असली हीरो हैं। असली सलाम उन्हें कीजिए। उन्हें मेरा सलाम है। किसी ने तो पत्रकारों की सुध ली। पत्रकार तो बेसुध हैं। पूरे समाज के हर तबके की सुध लेना वाला यह वर्ग खुद कभी अपनी सुध नहीं ले पाया है। दोस्तों समय कह रहा है बड़ा युद्ध लड़ो। इस बार नहीं तो फिर कभी नहीं लड़ पाआगे। यशवंत सर की यह मुहिम मीडिया हाउसों के लिए चिंता और चुनौती का सबब बनी हई है। इसलिए वे ऐन केन प्रकारेण इस मुहिम को असफल करने के लिए पत्रकारों में आशंकाएं पैदा करने समेत तमाम हथकंडे अपना रहे हैं।
आप सभी साथियों को धन्यवाद।

आपका

रजनीश रोहिल्ला

पूर्व चीफ रिपोर्टर
दैनिक भास्कर
अजमेर


पूरे मामले को समझने के लिए नीचे दिए गए तीन शीर्षकों पर क्लिक करें…

मजीठिया के हिसाब से पैसा मिलते ही रजनीश रोहिल्ला ने सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ली (देखें कोर्ट आर्डर)

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भड़ास संग मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ने को 250 मीडियाकर्मी तैयार, 25 जनवरी तक कर सकते हैं आवेदन

 



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Comments on “भड़ास की मुहिम पर भरोसा करें या नहीं करें?

  • purushottam asnora says:

    7 feb k bad kuchh n milane ki sithitiyou k bawjud yadi ham soye rahai to hamai jagane bhagwan bhi nhi aayaige.isliye shoshak sansthanou k viruddh uth khare hou.

    Reply
  • दिलीप राज. says:

    राजस्थान पत्रिका सभी शाखा के दोस्तो को यह बताते खुशी हो रही है कि राजस्थान पत्रिका ग्वालियर को मजिठिया देने के आदेश/ अब्मन्नाका आदेश माननीय सुप्रिम कोर्ट का नोटिस प्राप्त हो गया है यह नोटिस पत्रिका ग्वालियर शाखा के एक गार्ड ने गलती से ले लिया जिस कारण उस गार्ड को कार्यालय से हटा दीया गया है

    इस नोटिस के मिलते ही यहा के संपादक और जी. एम. और सभी एड्मिन के लोग सकते में है इस नोटिस में मा. सुप्रिम कोर्ट ने कडे शब्दों में पूछा है कि पत्रिका को दिये गये अभी तक के अंतिम आदेश के बाद मजिठिया लागु किया है या नही

    ग्वालियर पत्रिका से कुछ करमचारियों जोब छोद्ने के लिये दबाब बनाया जा राह है साथ ही ऐसा नही करने पर उन पर चोरी/ गवन कि झूटी पुलिस कार्यवाही करने के लिये कहा जा रहा है.

    पत्रिका के शोसण का जबाब भोपाल पत्रिका करमचारी ने दिया जिसका ट्रान्स्फर पत्रिका ने बंगलौर कर दिया था परंतु जब उसने मा. सुप्रिम कोर्ट की सरण ली तो पत्रिका के मालिकों नि उसे तुरंत सझोते के लिये जयपुर बुलाया और उससे माफ़ी मान्गी परंतु पत्रिका मालिकों की दाल उनके सामने नहीं गली तब करमचारी को 7फरवरी का टाइम हिदायत के साथ देकर उसे भोपाल रबाना कर दिया

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  • पुष्पाराज सिंह says:

    लेकिन असल मसला तो जज के समाने केस को नहीं पहुंचने देने का। मालिक इसमें सफल रहे हैं। रजनीश रोहिल्ला भी पैसा लेकर चुप हो गए। रजनीश रोहिल्ला को अपनी चिंता है न कि पत्रकारों कि अब ज्ञान बांट रहे हैं। अगर आपको पत्रकारों की इतनी चिंता थी तो खडे रहते 4 फरवरी तक और जब सब मतलबी हैं रजनीश रोहिल्ला का होना भी गलत नहीं।
    फिर भाई रजनीश रोहिल्ला यहां ज्ञान न बांटे अपने पैसा से आनंद लें नया बिजनेस करें, अखबार खोलें। जिन्हें लडना है वो लड रहे हैं। हम भी लड रहे हैं।

    Reply

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