मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को क्रियान्वित न करने की कसम खाए बैठे दैनिक भास्कर के मालिकान-मैनेजमेंट सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी ठेंगा-अंगूठा दिखाने पर आमादा दिखाई पड़ रहे हैं। उन्हें तो इसका भी खौफ-डर होता-लगता नहीं दिख रहा है कि यदि उन्होंने सर्वोच्च अदालत के आदेशानुसार मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक अपने कर्मचारियों-मुलाजिमों की सेलरी-पगार-वेतन-तनख्वाह नहीं बढ़ाई, नहीं दी तो उन्हें जेल की सजा भी हो सकती है। भास्कर मालिकान तो यहां तक कहते सुने जा रहे हैं कि जो भी हो, बेशक उन्हें तिहाड़ की सलाखों के पीछे भेज दिया जाए, वे मुलाजिमों को मजीठिया के हिसाब से सेलरी कदापि नहीं देेंगे। वे तो सेलरी अपनी मर्जी के मुताबिक, अपने बनाए-नियत किए गए कानून-कायदे से ही देंगे। जिसको लेनी हो ले, जिसको नहीं लेनी हो अपना रास्ता पकड़े, कहीं और काम ढूंढ ले, तलाश ले, कर ले। हमें जरूरत होगी तो दूसरे कामगारों-कर्मचारियों को भर्ती कर लेंगे, रख लेेंगे। उनसे काम कराएंगे और पगार तो वही देंगे जो हम चाहेंगे। वैसे भी बाजार में बेरोजगारों, काम करने के चाहवानों-इच्छुकों, जरूरतमंदों की कमी थोड़े ही है। एक बुलावो, तेरह धावें। मनबढ़, अहंकारी, घमंडी, खुद को सत्ता-व्यवस्था-कानून-कायदे से ऊपर समझने वाले भास्कर के मालिकान इन सबके अलावा पैसे की कमी का रोना भी रो रहे हैं।
सबसे रोचक यह है कि ये सारे कारनामे-करतूत-कृत्य करने के लिए आजकल वे अफवाहों का खूब-भरपूर सहारा ले रहे हैं। उन्होंने अपने कारिंदे-कारकून-दुमहिलाऊ मैनेजरों, मैनेजर संपादकों और इसी से मिलते-जुलते अन्य अफसरों के जरिए अनेकानेक अफवाहों को फैला रखा है। ऐसे में पता ही नहीं लग पा रहा है कि मालिकान वास्तव में करना क्या चाह रहे हैं? कभी सुनने में ये आता है कि भास्कर के सारे कर्मचारियों की सेलरी पांच-पांच हजार रुपए बढ़ाई जा रही है। कभी कोई मैनेजर, संपादक, अफसर दबी जुबान से ये शिगूफा छोड़ देता है कि मालिकों को मजीठिया देना ही पड़ेगा, सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश है, नहीं देंगे तो सुप्रीम कोर्ट उन्हें बख्शेगा नहीं, उन्हें जेल जाना पड़ेगा। कभी पक्की-पूरी जानकारी रखने का दावा करने वाला बंदा बोल पड़ता है, -नहीं भई, मालिकों ने तो सुप्रीम कोर्ट में लिख कर दे दिया है कि वे मजीठिया लागू कर रहे हैं। मतलब- अफवाहों का बना दिया है बाजार, जितने मुंह उतनी बात।
इस अफवाहबाजी, जुमलेबाजी से एक चीज तो साफ है कि मालिकान भले ही स्वयं को भगवान माने-बनाए-समझे बैठे हों, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की सख्ती ने उनके होश को बे-ठिकाने का तो कर ही दिया है। वे रास्ता तलाश-खोज रहे हैं इस आपदा-मुसीबत-परेशानी से बाहर निकलने का। क्योंकि मजीठिया लागू करने की दो महीने की मियाद 13 दिसंबर को खत्म हो गई है और सुप्रीम कोर्ट में अगली पेशी की तारीख 5 जनवरी है। इस तारीख पर उन्हें मजीठिया क्रियान्वयन का पूरा लेखा-जोखा माननीय अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना होगा। ऐसा नहीं करते हैं तो उन पर अवमानना का केस स्वत: चलने लगेगा। इसके बाद क्या होगा? इसे सोचने मात्र से ही उनकी रूह कांप-थरथरा उठती है। बेशक वे इस हकीकत को अफवाहों के मकडज़ाल-धुंधलके में छिपा-दबाकर बैठे हों, पर सुप्रीम कोर्ट में पेशी पर यह सारा जाल, कोहरा, धुंधलका छंट-साफ हो जाएगा।
इससे जुड़ा एक सबसे बड़ा तथ्य-सच यह है कि मालिकान-मैनेजमेंट ने उन कर्मचारियों को पटाने-साधने, सौदेबाजी करने की वह हर कोशिश-करतब-जुगत की, तरकीब अपनाई जिससे कि कंटेम्प्ट केस वापस हो जाए। कर्मचारी केस वापस ले लें। पर ऐसा कर पाने में उन्हें सफलता नहीं मिली। इस नाकामयाबी ने उनकी दादागिरी-धौंसबाजी के अब तक चलते आ रहे मंसूबों पर पानी फेर दिया। इसके बाद, या कहें कि केस दायर होने के तत्काल बाद से ही उन्होंने उन सारी तरकीबों को तलाशना, ढूंढना शुरू कर दिया था जिससे कर्मचारियों को मजीठिया का बेनिफिट न देना पड़े। और अगर किसी सूरत में देना भी पड़े तो इतना दे दिया जाए कि नाम भी हो जाए और काम भी। इसके लिए दिल्ली, भोपाल और अन्य जगहों में भास्कर मालिकान और विभिन्न संस्करणों के संपादकों, विभिन्न विभागों के मैनेजरों, एचआर विभाग के प्रबंधकों में अनवरत-लगातार मीटिंगें-बैठकें, माथापच्ची चलती रही। चंडीगढ़ एचआर विभाग की एजीएम, राज्य संपादक, दूसरे मैनेजर दिल्ली-भोपाल अप-डाउन करते रहे।
वैसे भी मालिकान को पूरी तरह पता है, ज्ञात है कि दैनिक भास्कर के किसी भी कर्मचारी (मजीठिया के लिए सुप्रीम कोर्ट में केस करने वाले कर्मचारियों और उनके समर्थकों-शुभचिंतकों को छोडक़र) में इतना दम नहीं है कि वह खुलकर मजीठिया के हिसाब से वेतन की मांग कर सके। क्यों कि उन्होंने ऐसे ही लोगों को अपनी नौकरी पर रखा है जो बिना कोई चूं-चुकुर किए चुपचाप जितना काम दिया-लादा-थोपा-सौंपा जाता है, करता रहे, करता जाए। तभी तो चाहे भोपाल-मध्य प्रदेश, राजस्थान हो, चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश हो, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ हो, कहीं भी भास्कर के किसी भी कर्मचारी को नहीं पता है कि मजीठिया को लेकर मालिकान-प्रबंधन क्या कर रहा है? दे रहा है या नहीं? दे रहा है तो कितना? इस पर महज अटकलबाजियां चल रही हैं। कानाफूसी चल रही है, दबी जुबान से आपसी चर्चा हो रही है। कोई खुलकर कहने-पूछने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है कि पूछे- कितना दे रहो मजीठिया के मुताबिक? दे रहे हो या नहीं? जवाब दो?
जानकारों का मानना है कि दैनिक भास्कर के मुलाजिमों को मजीठिया के वर्गीकरण के हिसाब से क्लास वन का वेतन मिलना चाहिए। क्योंकि दैनिक भास्कर डीबी कॉर्प लिमिटेड का सबसे बड़ा समाचार— पत्र समूह है। डीबी कॉर्प लिमिटेड की वर्ष 2010 से लेकर अब तक की सालाना कमाई– -आमदनी 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा रही है, और है। हालांकि मालिकान इन आंकड़ों में जालसाजी-फर्जीवाड़ा करने में माहिर-सिद्धहस्त हैं। वे कर्मचारियों को इससे वंचित करने-रखने के लिए हर तरह की बहानेबाजी-तिकड़मों-साजिशों-चालों का सहारा ले सकते हैं। वैसे भी भारत के इस नंबर एक अखबार में नित्य जितने विज्ञापन, खासकर प्राइवेट विज्ञापन छपते हैं और इनके लिए अक्सर-नियमित तौर पर जितने सप्लीमेंट छपते हैं, उससे डीबी कॉर्प की भारी कमाई का केवल अनुमान किया जा सकता है। यही नहीं, हर पर्व-त्योहार-उत्सव-सीजन-आयोजन पर विज्ञापन से कमाई का टॉरगेट दे दिया जाता है। दिलचस्प तो यह है कि दैनिक भास्कर मैनेजिंग डायरेक्टर सुधीर अग्रवाल या उनके अन्य भाई जब भी चंडीगढ़ सरीखी कमाऊ ब्रांच-शाखा में पधारते हैं तो अपने हाकिमों-अफसरों के साथ मीटिंग में उनका प्रमुख काम उन्हें कमाई-उगाही का टॉरगेट देने का होता है। उनका पूरा जोर इस टॉरगेट को पूरा करने पर होता है। अफसर भी पूरी ताकत से इस काम में जुट जाते हैं। एमडी-मालिकान अखबार के समूचे ब्रांच-संस्करणों पर इसी मकसद से भ्रमण करते रहते हैं। मतलब साफ है कि मालिकान का एकमात्र लक्ष्य अखबार से भरपूर से कमाई करना है। ऐसे में मालिकान अगर यह कहें कि अखबार से उन्हें अपेक्षित या कम कमाई हो रही है, या कि घाटा हो रहा है, तो यह बात किसी भी तरह किसी के गले नहीं उतरेगी।
जाहिर है कि ऐसी स्थिति में अपना हक पाने के लिए कर्मचारियों को ही खुलकर सामने आना होगा। ठीक उसी तरह जैसे कुछ बहादुर कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं और मालिकों-मैनेजमेंट की नींद उड़ा दी है। अपना हक पाना है तो लडऩा लाजिमी है। वरना ये घाघ-दरिंदे मालिक तो कुछ भी, कोई भी लाभ देने से रहे। हालांकि अब यह छिपा नहीं रह गया है कि दैनिक भास्कर के सारे कर्मचारी उतनी पगार-सेलरी पाने-लेने को लालायित हैं जिससे उनकी जीवन की गाड़ी थोड़ा ठीक-ठाक चल सके। क्यों कि उनकी सेलरी इतनी भी नहीं है कि वे महीने के दो-चार दिन भी चैन की नींद ले सकें।
भूपेंद्र प्रतिबद्ध
चंडीगढ़
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