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सुख-दुख

‘ओके… आय एम गोइंग’… और रामप्रकाश चले गए फिर कभी न लौटने के लिए

भोपाल। जींस, स्पोर्टस् शर्ट और सिर पर हमेशा पी-कैप लगाए रहने वाले जीवंत पत्रकार रामप्रकाश अग्रवाल अब हमारे बीच नहीं हैं। बीते गुरूवार हृदयाघात से महज 48 की उम्र में रामप्रकाश हम सबसे दूर, बहुत दूर चले गए। भारी आवाज के साथ ही चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट लिए इस पत्रकार को उनकी कला की समझ और खबरों को चुटीले अंदाज में लिखने के लिए हमेशा याद किया जाएगा।

Ramprakash agrawalji

Ramprakash agrawalji

भोपाल। जींस, स्पोर्टस् शर्ट और सिर पर हमेशा पी-कैप लगाए रहने वाले जीवंत पत्रकार रामप्रकाश अग्रवाल अब हमारे बीच नहीं हैं। बीते गुरूवार हृदयाघात से महज 48 की उम्र में रामप्रकाश हम सबसे दूर, बहुत दूर चले गए। भारी आवाज के साथ ही चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट लिए इस पत्रकार को उनकी कला की समझ और खबरों को चुटीले अंदाज में लिखने के लिए हमेशा याद किया जाएगा।

Ramprakash agrawalji

आर्ट और कल्चर की खबरों के अलावा मानवीय संवेदनाओं पर रामप्रकाश की कलम खूब चली। वे कम और सटीक शब्दों में कॉम्पेक्ट खबरें लिखने के लिए भी जाने जाते थे। जितना कायदा और नफासत उनकी लेखनी में नजर आती थी उतना ही अव्यवस्थित और बिखरा-बिखरा था उनका व्यक्तित्व। किसी से अचानक नाराज हो जाना और अगले ही पल कह देना ’सॉरी सर’।

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भाई ने अपनी 22 साल की पत्रकारिता में शहर के कई अखबारों में काम किया और अपनी बेहतरीन कॉपी के लिए हमेशा संपादकों की तारीफ पाई। मूडी इतने कि बिना सूचना के डेस्क से गायब होते तो चार-छह दिन अता-पता ही नहीं रहता और जब नौकरी पर प्रकट होते तो संपादक से माफी-तलाफी के बाद फिर काम में जुट जाते।

रामप्रकाश के साथ जिन्होने भी काम किया है वे उनके बिंदास अंदाज को हमेशा याद करेंगे। दफ्तर से लौटते हुए वे अक्सर कहते ’ओके… आय एम गोइंग, कल मिलते हैं…’ लेकिन इस बार वे कल मिलने का वादा पूरा नहीं कर पाए। रामप्रकाश के दुखद निधन पर उनके पत्रकार साथी आरिफ मिर्जा, सत्यनारायण वर्मा, साजिद अली, प्रदीप शर्मा, पंकज जैन, जावेद खान, तेजभान पाल, अजय मिश्रा सहित भोपाल के समस्त पत्रकार साथियों ने उन्हे विनम्र श्रृ़द्धांजलि अर्पित की है।

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0 Comments

  1. arun

    September 20, 2014 at 12:24 pm

    मुंबई में हिंदी अखबारों की हालत वैसे भी अच्छी नहीं है. अख़बार आते है और थोड़े दिन बाद बंद हो जाते है. जब ऎसे जातिवादी संपादको के हाथ में अख़बार होंगे तो क्या होगा। कोई पढ़ा लिखा आदमी जो सही खबर जानने के लिए अख़बार पढता है क्यों बकबास वाली झूठी खबरे देने वाले हिंदी अखबारों को खरीदेगा। फिर उनका बंद होना तो तय है ही. मारे जाते है बेचारे पत्रकार

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