Sudhir Mishra-
एक साथी राजीव विश्वकर्मा तीन दिन पहले (25 सितंबर) अचानक दुनिया से चले गए। शुगर और हाई बीपी की शिकायत थी। बनारस के थे और नोएडा में अकेले रहते थे, कई बरस से। तीन दिन पहले अचानक ब्रेन हेमरेज हुआ और अनहोनी हो गई। उम्र भी चालीस भीतर ही रहेगी। कोविड के बाद से अच्छे खासे हंसते खेलते लोग भी ईश्वर को प्यारे हो रहे हैं। केंद्र सरकार ने वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की कमेटी भी बनाई है जो ऐसी मौतों का कारण जांच रहे हैं।
बहरहाल लिखने का उद्देश्य यह है कि जीवन की अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए क्या किया जाए ? सबसे पहला तो यह कि अगर आप युवा हैं और जॉब में या कारोबार में हैं तो एक टर्म इंश्योरेंस और हेल्थ इंश्योरेंस जरूर लें। शादीशुदा हैं तो कुछ ऐसे इंतजाम रखें कि आप के न रहने पर माता पिता और पत्नी बच्चों दोनो लोगों को जीवन पालन करने में दिक्कत न हो। अलग अलग योजनाओं में नॉमिनी अलग अलग भी रख सकते हैं।
इन सारी बातों के बारे में आप अपनी पत्नी और परिवार के लोगों को पूरी जानकारी भी दें। जैसे मुझे ही नहीं पता था कि हमारी कम्पनी में वर्किंग स्टाफ के अचानक जाने पर क्या क्या मिलता है। इस हादसे के बाद जब पता चला तो पत्नी को पूरी जानकारी दी। ऐसी बातें घर वालों को सुनने में अक्सर खराब लगती हैं पर बतानी चाहिए। और हां सबसे जरूरी बात। हेल्थ पैरामीटर्स लगातार जांचिए।
तनाव को काबू में रखिए। बाहर के खाने से परहेज करिए। ज्यादा चाय, कॉफी और शराब सब बराबर के नुकसानदेह हैं। इनसे बचिए। बाहर के समोसा, खस्ता और पूड़ी चालीस साल बाद स्लो पॉयजन हो जाते हैं, इसे समझें। खाने में कार्बोहाइड्रेट धीरे धीरे कम करें और प्रोटीन डायट बढ़ाएं। इस बारे एक्सपर्ट से बात करते रहें और एक्सरसाइज, वॉक, योग और जिम में से कुछ भी जरूर करें। बाकी जिंदगी ऊपर वाले के हाथ में है पर अपनी तरफ से जीने में कोई कसर न छोड़ें। खुश रहें और लोगों को खुश रखें।
लेखक नवभारत टाइम्स के संपादक हैं.
Vijay Nath Mishra-
भारत में दो आतंकवादी ऐसे हैं जो, हमारे शरीर में रहते हैं – ब्लड प्रेशर और शुगर की बीमारी।
भारत अगले दशक में शुगर के सबसे अधिक मरीज़ों का देश बन जाएगा। ब्लड प्रेशर की बीमारी हाइपरटेंशन भी देश में बढ़ रहा है। ये दोनों बीमारी हर रोज़, हज़ारों जान ले लेती हैं। मनुष्य शरीर को खोखला बना रहीं हैं। इन्ही से हार्ट अटैक हो रहा है। अब ऐसे में इन दोनों का कंट्रोल ही देश को उन्नति के ओर ले जाएगा।
एक आम इंसान को ना तो बीमारी का ज्ञान और ना ही दवा के पैसे। चिकित्सालयों में भी इन्हीं की भीड़। जाँच और जाँच। फिर जाँच। फिर और बीमारी।
ऐसे में, सरकार को, इन दोनों आतंकवादियों से निपटने के लिए, देश में कोने कोने में गाँव देहात में, केंद्र स्थापित करना चाहिए जहां लोग अपना बीपी शुगर नपवा ले और उन्हें दवा वहीं मिल जाये।
ऐसे में चिकित्सालयों में भीड़ कम होगी, जनता जागरूक होगी। इलाज में पैसा बचेगा। मरीज़ों की कमर आर्थिक बोझ से नहीं टूटेगी।
अगर हो सके तो, बीपी शुगर के इलाज के लिए अलग से कोई रेगुलेटरी बॉडी बना दी जाये जो इनके इलाज में आम लोगों (गाँव देहात दूर दराज़) को जागरूकता करे दवाई दे इन बीमारियों के कॉम्प्लिकेशन को बचाने में मदद करे।
याद रहे कि इन बीमारियों के अज्ञानता से समाज हर रोज़ अपनों को खो रहा है। आइये बीपी शुगर से लड़ाई को जीतने में देश की मदद करें।
लेखक बीएचयू मेडिकल कालेज के चिकित्सक और प्रोफेसर हैं.