यह खबर आज मेरे सात अखबारों में एक और अकेले द हिन्दू की लीड है बाकी अखबारों के लिए ना यह खबर है ना चिन्ता का विषय कि चुनाव आयोग को क्या हो गया है या वह कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है या निष्पक्षता कहां गई? वे तो प्रधानमंत्री को भरपूर प्रचार और कॉलम सेंटीमीटर में जगह दे रहे हैं, आज भी हिन्दू मुसलमान करने वाला भाषण लीड है। जहां तक चुनाव और जीत की बात है, आश्वस्त तो भाजपा के राम भी नहीं हैं। वे मोदी और योगी के भरोसे लग रहे हैं। परसों यानी शुक्रवार को मतदान है। इसके बाद प्रधानमंत्री को शायद ऐसे भाषण की जरूरत ही नहीं रहे।
संजय कुमार सिंह
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का घटिया, गैर कानूनी और आपत्तिजनक चुनावी भाषण जारी है। अखबारों ने आज भी उनके भाषण को लीड बनाया है। लेकिन प्रियंका गांधी ने उन्हें जो जवाब दिया है वह भी दिलचस्प है। यह अलग बात है कि सभी अखबारों में उसे समान महत्व नहीं दिया गया है। प्रियंका गांधी ने कहा है, “मेरी मां का मंगलसूत्र देश के लिए बलिदान हो गया …. जब हम सत्ता में थे तो क्या आपने कांग्रेस को कभी किसी का मंगलसूत्र छीनते हुए देखा है?” द टेलीग्राफ ने इसे आज अपना कोट बनाया है। नवोदय टाइम्स ने इसे नरेन्द्र मोदी के चुनावी भाषण के शीर्षक के साथ लगाया है। एक शीर्षक है, “आरक्षण में सेंधमारी करना चाहती थी कांग्रेस : मोदी”। इसके मुकाबले में नवोदय टाइम्स की खबर का शीर्षक है, “मेरी मां का मंगलसूत्र देश के लिए कुर्बान हो गया”।
नवोदय टाइम्स में लीड की इस प्रस्तुति के मुकाबले अमर उजाला की लीड का शीर्षक है, “आरक्षण न तो खत्म होगा, न ही धर्म के आधार पर बंटेगा: मोदी“। उपशीर्षक है, पीएम ने चुनावी सभाओं में कहा, पिछड़ों का आरक्षण काट मुसलमानों को देना चाहती थी कांग्रेस। ठीक है कि प्रधानमंत्री ने कहा है तो यह खबर है और आपको प्रधानमंत्री का कहा अच्छा या महत्वपूर्ण या तर्क संगत या सत्य या बढ़िया या व्यंग या वोट बटोरू या कुछ भी लगता है तो आप इसे लीड बना सकते हैं। लेकिन एक पाठक के रूप में इसे पढ़ते ही ध्यान आता है कि मोदी सरकार जब आरक्षण पर काम कर सकती थी तो उसने क्या किया और मुझे लगता है कि पत्रकार और पत्रकारिता का काम यह था कि मोदी जी से पूछा जाता कि सत्ता जाने के समय यह सब कहने बताने की जरूरत क्यों पड़ रही है और सत्ता में रहते हुए आपने इससे अलग क्या किया है या उसे क्यों नहीं बता रहे हैं।
अखबार अब ऐसा नहीं करते हैं। ये इमरजेंसी के बाद वाली पीढ़ी के अखबार और पत्रकार हैं। उन्हें तानाशाही दिखती थी और ये नहीं दिखा कि हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री के खिलाफ फैसला दिया था। अब मुख्यमंत्री जेल में हैं लेकिन कोई अदालत ना मुख्यमंत्री को राहत दे रही है ना वैकल्पिक व्यवस्था हो रही है। और दिल्ली की जनता भले न्याय नहीं मांग रही है (जो मांगने गई है उसपर जुर्माना भी हुआ है) पर उसे निर्वाचित मुख्यमंत्री के बिना रहना पड़ रहा है। वह भी तब जब जो असल में शासन चला रहा वह मनोनीत होने के बावजूद संवैधानिक पद पर होने के कारण अदालत से राहत प्राप्त कर चुका है। और निर्वाचित मुख्यमंत्री के मामले में इंसुलिन जैसी जरूरी चीज को लेकर भी कोई राहत नहीं है और वह भी नियमानुसार, समय गवांकर ही मिला।
संभव है बहुतों को इस व्यवस्था में कोई बुराई नहीं लगे लेकिन तथ्य यह है कि चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री के भाषणों के खिलाफ ढेरों शिकायतें हैं पर चुनाव आयोग कार्रवाई नहीं कर पा रहा है और अखबार ये खबर भी नही दे पा रहे हैं कि चुनाव आयोग ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है। अमर उजाला की आज की खबर का शीर्षक है, पीएम के बयान पर रिपोर्ट तलब। कल रवीश कुमार ने अपने वीडियो में बताया था कि चुनाव आयुक्तों ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में क्या दावे किये थे और प्रधानमंत्री के मामले में बोलती बंद है। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने चर्चित या आपत्तिजनक भाषण इतवार को दिया था। कल टाइम्स ऑफ इंडिया में खबर थी कि मंगलवार तक रिपोर्ट मांगी गई थी आज भी यही खबर है कि रिपोर्ट तलब की गई है। परसों यानी शुक्रवार को मतदान है। इसके बाद प्रधानमंत्री को शायद ऐसे भाषण की जरूरत ही नहीं रहे।
द हिन्दू की आज की लीड यही है कि चुनाव आयोग ने कहा है कि हम मोदी के राजस्थान वाले भाषण की जांच कर रहे हैं। लेकिन ज्यादातर अखबारों ने प्रधानमंत्री को प्रचार देने में कोई कमी नहीं की है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने आज के दूसरे अखबारों में छपे उनके दावे के साथ इंट्रो में यह भी बताया है कि, मैं (नरेन्द्र मोदी) वहां था जब मनमोहन सिंह ने कहा था कि मुसलमानों का दावा पहला है। यहां इसके बराबर में मंगलसूत्र पर प्रियंका गांधी का बयान भी है। मेरी चिन्ता यह है कि मनमोहन सिंह ने जो कहा उसकी रिपोर्टिंग प्रधानमंत्री अब क्यों कर रहे हैं और क्या अखबारों ने मान लिया है कि उनकी तब की रिपोर्टिंग गलत थी या किसी ने पढ़ी नहीं थी या जिसने पढ़ी थी उसे याद नहीं है या उसका रिकार्ड नहीं है या उसकी पुष्टि अब नहीं की जा सकती है।
इंडियन एक्सप्रेस की आज की लीड वही है जो आरक्षण पर प्रधानमंत्री ने कहा है। इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर यह भी बताया है कि प्रधानमंत्री किसी खबर या मामले का उल्लेख कर रहे हैं लेकिन उनके खिलाफ शिकायतों पर चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। मुस्लिम आरक्षण का संदर्भ बताया जाना जरूरी और सही है पर चुनाव आयोग सो रहा है, या सुस्त है या टालने की कोशिश कर रहा है कुछ तो होना ही चाहिये था। इसके मुकाबले हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक मुझे संतुलित लगता है। “सांप्रदायिक पिच से संबंधित विवाद के बीच मोदी ने आक्रामकता बढ़ाई”। यही नहीं, अखबार में इसके साथ छपी खबर का शीर्षक है, “विपक्ष ने कहा, मोदी की टिप्पणी ‘दुर्भाग्यपूर्ण’, अफसोस का मामला”।
आज के अखबारों में एक और खबर है, एम्स की सहमति के बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल को इंसुलिन की खुराक दी गई। इसके आलोक में ईडी के आरोप याद कीजिये और उसके स्तर समझिये। एक मुख्यमंत्री को अगर इस तरह, ऐसे मामले में जेल में रखा जा सकता है तो आप समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री को चुनावी सभाओं में आचार संहिता का उल्लंघन क्यों करना पड़ रहा है और चुनाव आयोग को कार्रवाई करने में समय लग रहा है तो वह खबर क्यों नहीं है। ऐसे में प्रधानमंत्री ढंग की बात नहीं करें तो उसे क्यों लीड बनाया जाना चाहिये मैं नहीं समझ पा रहा हूं। और अगर प्रधानमंत्री का कहा लीड बन सकता है तो प्रियंका गांधी ने जो कहा है वह क्यों नहीं? यह अखबारों की हालत है उनकी नहीं जिनके बारे में कहा जाता है कि अशिक्षित हैं और इसलिए मोदी के सांप्रदायिक या विभाजक या 15 लाख के जुमले के प्रभाव में आ जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि द हिन्दू में प्रधानमंत्री का भाषण नहीं है। इसी लीड के साथ छपी खबर का शीर्षक है, “कांग्रेस ने दलितों का कोटा कम करने की कोशिश की: मोदी”। इससे पहले अगर आप लीड और उसका उपशीर्षक पढ़ेंगे तो वह इस प्रकार है, कांग्रेस ने चुनाव आयोग से कहा, “एकमात्र उपाय नागरिकों के भिन्न वर्गों के बीच भेद पैदा करने की कोशिश करने वालों को अयोग्य ठहराना है; माकपा ने भी प्रधानमंत्री के भड़काऊ भाषण के लिए कार्रवाई की मांग की”। इस लिहाज से आज द टेलीग्राफ की खबर, नया पिच पुराना ध्रुवीकरण भी सच्चाई के करीब है। नई दिल्ली डेटलाइन से जेपी यादव की खबर इस प्रकार है, पहले दौर के मतदान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास को पिछली सीट पर भेज दिया है। धुवीकरण लौट आया है जो चुनाव पर उनका बाहर निकलना बढ़ा देता है। मंगलवार को मोदी ने राजस्थान के टोंक में एक चुनावी रैली में कहा, ”दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के कोटे में सेंध लगाकर उनके विशेष वोट बैंक को अलग आरक्षण देना है।”
आज की खबर तो यही है कि भाजपा के राम (पहले टेलीविजन के थे) ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है, मोदी और योगी की कोई योजना होगी। इंडियन एक्सप्रेस ने मेरठ में राम के चुनाव की तैयारियों की अपनी रिपोर्ट को पहले पन्ने पर आठ कॉलम का एंकर बनाया है और इसका शीर्षक है, “अरुण ‘राम’ गोविल के होंठों पर मोदी और योगी : उनके पास कोई योजना होगी”। एक्सप्रेस की इस खबर की मानें तो टेलीविजन और भाजपा के राम भी इस बार वोट के लिए मोदी और योगी के भरोसे हैं। मोदी को तो हम देख ही रहे हैं। रोज का उनका चुनाव भाषण वही हो रहा है जिसके लिए उन्हें चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहरा दिया जाना चाहिये था। देश में जब भ्रष्टाचार था, जब कुछ नहीं हुआ और तानाशाह इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी तब भी किसी प्रधानमंत्री ने चुनाव आयोग को इस संकट में नहीं डाला था बल्कि टीएन शेषण जैसे चुनाव आयुक्त हुए हैं। हालांकि उसी के बाद चुनाव आयोग तीन सदस्यों का हो गया और इस बार के तीन सदस्य कौन हैं, कैसे चुने गये हैं और जो काम कर रहे हैं उससे मुझे लग रहा है कि देश में प्रधानमंत्री कार्यालय भी तीन सदस्यों का बना दिया जाना चाहिये पर वह बाद की बात है। अरुण गोविल वाली खबर से पता चला कि मेरठ उनकी जन्म भूमि है और अब वे इसे अपनी कर्मभूमि बनाना चाहते हैं।
इससे याद आया कि भाजपा ने महाभारत के कृष्ण को 1996 में जमशेदपुर से उम्मीदवार बना दिया था। वे जीत भी गये थे। पता नहीं उनकी जन्मभूमि जमशेदपुर थी या नहीं पर जमशेदपुर को उन्होंने कर्मभूमि तो नहीं बनाया। या कम से कम ऐसी कोई खबर नहीं है। जो भी हो भाजपा के चुनावी खेल निराले हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बार लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने की कोशिश में और भी कई रिकार्ड बनाने में लगे हैं। अरुण गोविल या भाजपा के राम का प्रचार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ – दोनों कर चुके हैं। रोज की तरह आज भी मैं अखबारों में ये खबरें ढूंढ़ रहा था। चुनाव आयोग की कार्रवाई, प्रधानमंत्री के ताजा भाषण, इंडिया गठबंधन द्वारा उसके विरोध की चर्चा मैं कर चुका जो रह गया वह आगे है।
1. प्रधानमंत्री के आपत्तिजनक भाषण पर चुनाव आयोग ने क्या कार्रवाई की
2. सूरत में कांग्रेस की हार और भाजपा के निर्विरोध चुने जाने से संबंधित विवरण
3. प्रधानमंत्री का ताजा भाषण
4. कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का उसका विरोध
5. एक और विदेशी पत्रकार को देश निकाला दिये जाने की खबर और विवरण
इंडियन एक्सप्रेस ने सूरत का हाल विस्तार में बताया है और द हिन्दू की खबर के अनुसार कांग्रेस उम्मीदवार लापता हो गये हैं। दूसरी खबरों के अनुसार दूसरे उम्मीदवार भी लापता थे लेकिन उन्हें सरकारी एजेंसी ने ढूंढ़ा और फिर सबने नामांकन वापस ले लिये। कांग्रेस उम्मीदवार ने पहले लिये जो अब लापता है। इसलिए चुनाव परिणाम आ चुका है और भाजपा उम्मीदवार के जीतने की घोषणा हो चुकी है। कई लोगों की राय में यह नया चंडीगढ़ हे। देखा जाये आगे इस मामले में कुछ होता है या नहीं। आज एक खबर है कि ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन की पत्रकार अवनी दास को भारत छोड़कर जाना पड़ा क्योंकि उसे वीजा नहीं मिला। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार उसने रिपोर्टिंग की लक्ष्मण रेखा पार की थी। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार सिख अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में हत्या पर उसकी रिपोर्ट को भारत में यू ट्यूब पर ब्लॉक करवा दिया गया था।
उसने दावा किया कि भारतीय अधिकारियों ने उससे कहा था कि उसका वीजा नहीं बढ़ाया जायेगा और उसे भारत में अपना काम करना मुश्किल लग रहा है। इंडियन एक्सप्रेस ने इन सूचनाओं के साथ बताया है कि अवनी ने भारत छोड़ दिया जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया ने कहा है कि सरकार ने उसे भारत छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया। उसने 18 अप्रैल को वीजा फी का भुगतान किया था और उसी दिन उसका वीजा जून के अंत तक बढ़ा दिया गया था। आप समझ सकते हैं कि 70-75 दिन का वीजा लेकर काम करना कितना मुश्किल या आसान है या सामान्य है या मामला क्या होगा। पर खबरों की प्रस्तुति या अधिकारियों का दवा तो रेखांकित करने लायक है ही। पढ़ते रहिये मेरे साथ रोज सात अखबार। दो हिन्दी, पांच अंग्रेजी।