Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

बढ़ती साम्प्रदायिकता पर सियासी संवेदनशीलता के मायने

लोकसभा चुनाव से पहले और लोकसभा चुनाव के बाद के हालात बताते है कि साम्प्रदायिक हिंसा चुनावी राजनीति के लिये सबसे बेहतरीन हथियार हो गया है। सिर्फ मई-जून में समूचे देश में 113 जगहो पर सांप्रदायिक झडपें हुईं। जिसमें 15 लोगों की मौत हुई और 318 लोग घायल हुये। वहीं महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड जहां ढाई महीने बाद चुनाव होने है वहां कुल 33 मामले सांप्रदायिक हिंसा के दर्ज किये गये। जबकि इसके सामांनातर यूपी को सांप्रदायिकता का नया सियासी प्रयोगशाला बनाया जा रहा है क्योंकि यूपी के जरीये समूचे देश में राजनीतिक संकेत कहीं तेजी से दिये जा सकते हैं और चुनावी जीत पर असर भी डाला जा सकता है। तो मई 2012 से मार्च 2014 के बीच जहा यूपी में सवा सौ सांप्रदायिक दंगे हुये वहीं बीते तीन महीनों में यानी मई से जुलाई के बीच चार सौ के करीब सांप्रदायिक हिंसा यूपी के 18 जिलो में हुई।

लोकसभा चुनाव से पहले और लोकसभा चुनाव के बाद के हालात बताते है कि साम्प्रदायिक हिंसा चुनावी राजनीति के लिये सबसे बेहतरीन हथियार हो गया है। सिर्फ मई-जून में समूचे देश में 113 जगहो पर सांप्रदायिक झडपें हुईं। जिसमें 15 लोगों की मौत हुई और 318 लोग घायल हुये। वहीं महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड जहां ढाई महीने बाद चुनाव होने है वहां कुल 33 मामले सांप्रदायिक हिंसा के दर्ज किये गये। जबकि इसके सामांनातर यूपी को सांप्रदायिकता का नया सियासी प्रयोगशाला बनाया जा रहा है क्योंकि यूपी के जरीये समूचे देश में राजनीतिक संकेत कहीं तेजी से दिये जा सकते हैं और चुनावी जीत पर असर भी डाला जा सकता है। तो मई 2012 से मार्च 2014 के बीच जहा यूपी में सवा सौ सांप्रदायिक दंगे हुये वहीं बीते तीन महीनों में यानी मई से जुलाई के बीच चार सौ के करीब सांप्रदायिक हिंसा यूपी के 18 जिलो में हुई।

तो सवाल अब सीधा है कि क्या लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ही नहीं मौलाना मुलायम से लेकर लालू या किसी भी क्षत्रप का मिथ दंगों के दौरान मुस्लिमो में ही अपनी सुरक्षा को लेकर टूट गया है। और इसी दौर में जातियों में बंटे बहुसंख्यक तबके के भीतर यह एहसास जागा कि अल्पसंख्यक राजनीति को साधने वालो को भेदा जा सकता है। अगर ऐसा हो रहा है तो पहला सवाल दोहरा है कि राजनीतिक सत्ता को बनाने के लिये या फिर सत्ता पाने के लिये कानून व्यवस्था को सियासी तौर पर संभालना मुश्किल है या राजनीतिक तौर पर सांप्रदायिकता को साधना आसान काम हो चला है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ध्यान दें तो सांप्रदायिकता को लेकर संसद के भीतर बाहर के राजनीतिक बयान या कहें प्रधानमंत्री मोदी को लेकर संसद के भीतर बाहर के बयान भी चुनावी राजनीति को ध्यान में रखकर ही दिये जा रहे हैं। और सांप्रदायिकता को कटघरे में खड़ा करने की जगह सियासत भी दो धुरी पर चल पड़ी है। कांग्रेस का मानना है कि यह मुद्दा देश में बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा का है, जिस पर मोदी सरकार बोलने नहीं देती। लेकिन बीजेपी का मानना है कि मुद्दा राहुल गांधी के नेतृत्व की खत्म होती साख का है। तो खुद को सक्रिय दिखाने-बताने के लिये राहुल गांधी सांप्रदायिकता के सवाल को सनसनीखेज बनाकर उठाना चाहते हैं। दोनों राजनीतिक परिभाषा है। लेकिन इन्हीं दोनों परिभाषाओं के साये में देश का सच क्या है?

लोकसभा चुनाव परिणाम से एन पहले और चुनाव परिमाम आने के 40 दिन बाद तक के हालात बताते है कि यूपी, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, बिहार, झारखंड और हरियाणा में कुल सौ मामले दर्ज किये गये। जिसमें झारखंड और हरियाणा में तो सिर्फ दो-दो मामले ही सांप्रदायिक हि्ंसा के दर्ज हुये लेकिन बाकी राज्यों में दस से तीस तक मामले दर्ज हुये है। यानी कांग्रेस जो आरोप लगा रही है अगर उसे चुनावी राजनीति के दायरे में समझे तो बीजेपी ने जिस तरह लोकसभा चुनाव परिमाम में बहुमत पाकर यह संदेश दिया कि मुस्लिम वोट बैंक उनकी जीत को प्रभावित नहीं कर सकता।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह कांग्रेस के लिये संकट का सबब बन गया है क्योंकि सांप्रदायिकता के आईने में हर राजनीतिक समीकरण अगर बीजेपी को लाभ पहुंचा रहा है तो फिर कांग्रेस क्या करें। क्योंकि यह हालात देश भर में बने तो फिर कांग्रेस की सियासत पर खतरा मंडराने लगेगा। लेकिन जनता के लिये यह अपने आप में मुद्दा है कि क्या राजनीतिक लाभ-हानी के दायरे में ही अब सांप्रदायिक हिंसा या सांप्रदायिक सौहार्द मायने रखता है। क्योंकि मनमोहन सरकार के दौर में बीजेपी कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही। और अब मोदी सरकार के दौर में सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप बीजेपी पर कांग्रेस लगा रही है। और सांप्रदायिक हिंसा का मुद्दा भी नेताओ की राजनीतिक पहल से जुड़ गया है।

बीजेपी की माने तो कांग्रेस के राजनीतिक संकट के मद्देनजर राहुल गांधी सांप्रदायिकता के मुद्दे को हवा देते हुये खुद के नेतृत्व की साख बनाने में लगे है। यानी कांग्रेस के भीतर जिस तरह राहुल गांधी के कामकाज के तौर तरीको पर अंगुली उठ रही है और प्रियंका गांधी को लाने की मांग उठने लगी है उसने राहुल गांधी के सामन राजनीतिक संकट पैदा कर दिया है। वही काग्रेस अब संसद के भीतर और बाहर प्रधानमंत्री मोदी के इफ्तार पार्टी और ईद मिलन से दूर रहने से लेकर मंदिर मंदिर घूमने को ही सांप्रदायिकता को बढ़ाने वाले हालात के कटघरे में खड़ा करने से नहीं कतरा रही है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस हालात को समझने से पहले सांप्रदायिकता के दायरे में यूपी के उस राजनीतिक समीकरण को समझ लें जिसने मुलायम-मायावती की राजनीतिक बिसात ही उलट दी है। ध्यान दें तो बीते बीस बरस का सच यही है कि यूपी में सत्ता कभी भी किसी की रही हो लेकिन उसमें मुस्लिम वोटर सबसे अहम रहे हैं। मुलायम के लिये एमवाय यानी मुस्लिम यादव समीरकण और मायावती के लिये डीएम यानी दलित मुस्लिम समीकरण ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों को राजनीतिक तौर पर हाशिये पर ढकेल दिया। लेकिन लोकसभा चुनाव में जिस तरह बीजेपी को बंपर जीत मिली और मुलायम-मायवती तक के वोट बैंक में सेंध लग गयी।

इन लोकसभा चुनाव परिणोमों ने पहली बार यूपी के मुस्लिमों के सामने भी यह सवाल खड़ा कर दिया कि कभी यादव तो कभी दलित वोट के साथ खड़े होकर मुस्लिम हमेशा सत्ता की मलाई नहीं खा सकता है। यानी मुसलिमों की नुमाइंदगी करने वाले सियासतदानों के सामने यह संकट पहली बार मंडराया कि अगर सांप्रदायिकता के आधार पर यूपी का वोटर बंट गया तो लोकसभा की किसी भी सीट पर मुसलिम वोट मायने नहीं रखेंगे। जो लोकसभा चुनाव के परिमामो में नजर भी आया। लेकिन अब सवाल है कि क्या विधानसभा चुनाव में भी कुछ ऐसा हो सकता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अगर ध्यान दें तो यूपी की कुल 403 सीटो में से सिर्फ 54 सीट ऐसी है जहां मुस्लिम वोटर जिसे चाहे उसे जीता सकती। और 125 सीट ऐसी है जहां मुस्लिम वोट बैंक किसी भी 10 फिसदी वाले वोट बैंक से साथ जुड़ जाये तो जीत उसकी पक्की है। यानी बीते 20 बरस से मुलायम या मायावती के पास ही सत्ता इसीलिये रही क्योकि मुस्लिम वोट बैंक ने यूपी की सत्ता कांग्रेस को देनी नहीं चाही और बीजेपी की राजनीति जातीय राजनीति में अपनी सोशल इंजीनियरिंग से सेंघ लगाने में कभी सफल हो नहीं पायी। कल्याण सिंह के दौर में हिन्दुत्व और सोशल इंजीनियरिंग का काकटेल था इसलिये बीजेपी को सत्ता मिली।

लेकिन अब जिस तरह लगातार यूपी में सांप्रदायिक झड़पों में तेजी आयी है उसने 12 सीटो पर होने वाले उपचुनाव से आगे देश भर में यूपी के जरीये राजनीतिक संकेत देने शुरु कर दिये है कि अब ना तो मंडल से निकली जातीय राजनीति मायने रखेगी ना ही सोशल इंजीनियरिंग। और इस सियासी मोड़ पर अगर गले में रुद्राक्ष की माला और भगवा वस्त्र में लिपटे नेपाल की सड़क पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नजर आये तो कांग्रेस के मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति को यह उकसायेगा भी और डरायेगा भी। हो जो भी लेकिन पहली बार देश की समूची सिय़ासत ही कैसे साप्रदायिक हो चली है और शांति कायम करने का समूचा नजरिया ही कैसे चुनावी जनादेश को सांप्रदायिकता के कटघरे में खड़ा कर राजनीति लाभ हानि देख रहे हैं, यह संसद में राजनीतिक दलो की सियासी मशकक्त से समझा जा सकता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कांग्रेस के सांसद अब लोकसभा में इस मुद्दे पर बहस चाहते है कि प्रधानमंत्री मोदी सिर्फ मंदिर-मंदिर दर्शन क्यों कर रहे हैं। मोदी सरकार बनने के बाद देश में सांप्रदायिक झड़पों की तादाद में क्यों तेजी आ रही है। और बीजेपी को भी इससे कोई गिला शिकवा नहीं है कि संसद में साम्प्रदायिकता की मानसिकता पर बहस हो ही जाये। क्योंकि संघ परिवार के सामाजिक शुद्दिकरण का एक रास्ता हिन्दु-मुस्लिम सियासत पर सीधे संवाद से भी पूरा होता है। जिसके दायरे में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट या फिर दलित-आदिवासियों से लेकर ग्रामीण भारत का न्यूनतम को लेकर संघर्ष का मुद्दा भी बेमानी हो जायेगा और खनिज संसाधनो की लूट के जरीये विकास की कारपोरेट नीति भी छुप जायेगी। और समूचे देश को यही लगेगा कि देश की नुमाइन्दगी करने वाली संसद वाकई देश को लेकर सबसे ज्यादा संवेदनशील है।

वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी के ब्लॉक से साभार।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement