राजीव गांधी द्वारा जन्मभूमि का ताला खुलवाने से कांग्रेस से बिदके थे मुसलमान
अजय कुमार, लखनऊ
उत्तर प्रदेश की सियासत में भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या से जुड़ी तीन बातों ने पिछले 30 वर्षों में खूब सुर्खिंया बटोरी हैं। इन तीन बातों ने प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया तो कहीं न कहीं समाज को बांटने का भी काम किया। तीनों ही बातें भगवान राम की नगरी अयोध्या से ताल्लुक रखती हैं और इन तीनों बातों के पीछे तीन राजनैतिक दलों ने ही मुख्य किरदार निभाया। यह तीन बातें चुनावी मौसम में हमेशा ही सुर्खिंयों की वजह बन जाती हैं, जैसा कि इस बार भी देखने को मिल रहा है। इन बातों को क्रमशः समझा जाये तो कहा जा सकता है कि 1986 में रामजन्म भूमि स्थान का ताला खुलवाने में जहां कांग्रेस का अहम किरदार रहा थो तो अस्सी-नब्बे के दशक में समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने बीजेपी की सोच के विपरीत अपनी सियासी गोटियां सेंकने के लिये अयोध्या मसले को खूब हवा दी।
जब भी बीजेपी वाले और हिन्दूवादी संगठन कहते कि ”राम लला हम आयेंगे और मंदिर वहीं बनवायेंगे” तो मुलायम कहने लगते कि बीजेपी वालों का आना तो दूर जन्म स्थल पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। फिर भी 1992 में बीजेपी और हिन्दूवादी दलों की मौजूदगी में विवादित बाबरी मस्जिद ढांचा गिरा दिया गया जो अयोध्या सियासत की एक अहम और दुखद घटना थी। अयोध्या का इतिहास उठाकर देखा जाये तो रामजन्म भूमि/बाबरी मस्जिद विवाद करीब पांच सौ वर्ष पुराना है, लेकिन इस मसले ने पहली बार सियासी शक्ल तब अख्तियार की जब 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश दे दिया।
राजीव गांधी का यह आदेश सोची-समझी सियासी रणनीति का हिस्सा था। अतीत पर नजर दौड़ाई जाये तो याद आता है कि इससे पूर्व 1984 से, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) मंदिर के ताले खुलवाने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन चला रहा था। इसी बीच फैजाबाद के जिला दंडाधिकारी ने 01 फरवरी, 1986 को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के द्वार पर लगा ताला खोलने का आदेश पारित कर दिया। उस समय उत्तर प्रदेश और केन्द्र दोंनो ही जगह कांग्रेस की सरकारें थीं। यूपी के मुख्यमंत्री थे श्री वीर बहादुर सिंह और देश के प्रधानमंत्री थे श्री राजीव गांधी थे। जिला अदालत के फैसले के खिलाफ दोंनो ही सरकारों ने ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाना जरूरी नहीं समझा। 1986 में राजीव गांधी की सरकार ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का ताला खोल देने का आदेश दिया।
कांग्रेस ने रामजन्म स्थान का ताला खुलवाया तो सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने मुसलमानों को चुभने वाली यह बात कभी भूलने नहीं दी कि कांग्रेस ने ताला खुलवाया था। इसी वजह से मुसलमान 1986 के बाद कभी कांग्रेस के साथ पूरे मन से नहीं खड़ा हो पाया। इसके अलावा भी मुसलमानों को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिये मुलायम वह सब कुछ करते रहे जो उन्हें अपनी सियासत चमकाने के लिये करना जरूरी था। एक समय तो मुसलमानों को खुश करने के लिये उन्होंने कारसेवकों पर गोली भी चलवा दी जिसमें 16 कारसेवक मारे गये थे। यह कारसेवक विश्व हिन्दू परिषद और भारतीय जनता पार्टी द्वारा चलाये जा रहे उस आंदोलन का हिस्सा थे, जो मंदिर निर्माण के लिये चलाया जा रहा था, जिसमें नारे लगते थे, ‘राम लला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनवायेंगे।’
अयोध्या विवाद को हवा देकर मुलायम ने मुस्लिम वोटरों के सौदागर बन गये तो बीजेपी के पीछे राम भक्त खड़े थे। मुलायम को जो भी सियासी मजबूती मिली थी, वह उन्होंने कांग्रेस को ‘रौंद’ कर हासिल की थी। यह लड़ाई सड़क से लेकर संसद तक और संसद से लेकर अदालत तक में लड़ी जा रही थी। हिन्दुस्तान की सियासत का पूरा तानाबाना रामजन्मभूमि/बाबरी मस्जिद विवाद के बीच थम सा गया था। कांग्रेस पूरे खेल में असहाय नजर आ रही थी और बीजेपी हिन्दुओं के बीच पकड़ बनाती जा रही थी। बीजेपी को कमजोर करने के लिये जनता दल के नेता और तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मंडल की सियासत खेल दी। मंडल यानी मंडल आयोग जिसने कुछ जातियों को पिछड़ा मान कर उन्हें दलितों के 22.5 प्रतिशत के अतिरिक्त 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करने की बात कही गई थी।
मंडल आयोग ने 1931 के जनगणना को अपनी रिपोर्ट का आधार बनाया और इसमें दलितों के अलावा कुछ अन्य जातियों को पिछड़ा वर्ग का दर्जा देते हुए उन्हें अतिरिक्त तौर पर 27 आरक्षण देने की बात कहीं थी जिसे वीपी सिंह सरकार ने मंजूरी दे दी। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होते ही हिन्दुओं में बिखराव पैदा हो गया। जगह-जगह आंदोलन होने लगे।ऐसे में जब बीजेपी को अपनी सियासत डगमगाती दिखी तो उसने कंमडल राग छेड़ मतलब रामजन्म भूमि विवाद को हवा दे दी। “वीपी का मंडल” “बीजेपी के कमंडल” के सामने फेल हो गया। मंडल-कमंडल के फेर में वीपी सिंह की सरकार चली गई।
इस पूरे खेल में मुलायम ने जो भी बढ़त बनाई उसके लिये कांग्रेस ने ही उन्हें मौके उपलब्ध कराये थे। मुलायम बार-बार मुसलमानों के सामने कांग्रेस की नियत पर सवाल खड़ा करते और पूछते आखिर राजीव गांधी ने क्यों विवादित स्थल का ताला खुलवाया। इसीलिये आज भी जब राहुल-अखिलेश की दोस्ती(गठबंधन) पर उनकी राय पूछी गई तो उन्होंने जो बातें कहीं उसका सार यही निकला कि विवादित स्थल का ताला खुलवाने वाली कांग्रेस से दोस्ती करके अखिलेश मुसलमानों के बीच कैसे अपनी विश्वसनीयता बचा पायेंगे। मुलायम को इस बात का भी अंदेशा है कि इसका अखिलेश की भविष्य की राजनीति पर काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है। मुलायम ने साफ कर दिया है कि वो सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए चुनाव प्रचार नहीं करेंगे। कांग्रेस के साथ गठबंधन से नाखुश मुलायम सिंह यादव का कड़ा रुख समाजवादी पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है।
मुलायम कहते है कि इस गठबंधन से हमारी पार्टी के नेताओं को नुकसान होगा। हमारे जो नेता क्षेत्र में काम कर रहे थे, उनके टिकट कट गए तो अब वह क्या करेंगे? उन्होंने तो अगले पांच साल के लिए मौका गंवा दिया। मुलायम सिंह यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी यूपी में अकेले चुनाव लड़ने और जीतने में सक्षम है। इसलिए पार्टी को किसी के साथ गठबंधन की कोई जरूरत नहीं थी। मैंने पहले भी प्रदेश में अकेले दम पर चुनाव लड़ा और बहुमत के साथ सरकार बनाई है। नेता जी राहुल गांधी और अखिलेश की साझा प्रेस कांफ्रेंस के बाद संयुक्त रोड शो निकालने से भी नाखुश दिखे। उन्होंने कहा कि मैं इस गठबंधन के पूरी तरह खिलाफ हूं। समाजवादी पार्टी ने हमेशा कांग्रेस का विरोध किया है, क्योंकि कांग्रेस ने अपने 70 साल के शासन में देश को पीछे ले जाने का ही काम किया है। लिहाजा वे इस गठबंधन के समर्थन में कहीं भी प्रचार करने नहीं जाएंगे।
लेखक अजय कुमार उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.