आज 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस है। पत्रकार होने पर गर्व का अनुभव हम सभी पत्रकार गण करते है और करते रहेंगे। लेकिन क्या सचमुच बिहार में पत्रकारिता है? जबाब सुनकर आप और हम भी वर्षो से दंग है। कहानी अचरज भरी है। वर्ष 2005 में दैनिक जागरण के प्रखंड रिपोर्टर के तौर पर कार्य का आरम्भ किया था। जब कार्य आरम्भ किया तो अपने को काफी बलवान मानता था, कारण कि बिहार में पत्रकारों की तूती बोलती थी। लेकिन एक दिन की बात है जब किसी पुलिस वाले ने वाहन चेकिंग के दौरान रोक दिया और परिचय पत्र की मांग शायद इसलिए कर दी कारण था कि वाहन पर प्रेस लिखा हुआ था।
प्रेस कार्ड का न होना और अपने को एक सफल पत्रकार मानने का घमंड ने एक दूसरे के वार्तालाप में गरमाहट का समावेश कर दिया। अपने ब्यूरो को कह कर वहां से मुक्त हुआ। अगले दिन जिले भर के संबंधित समाचार पत्र के रिपेार्टरों की बैठक में इस बात को उठाया तो ब्यूरो का जवाब मिला कि प्रबंधन परिचय कार्ड नहीं दे सकता है। कारण कि परिचय कार्ड मिल जाने के बाद आप संबंधित समाचार पत्र के कर्मी हो जायेंगे और भविष्य में कभी भी संबंधित समाचार पत्र पर अपने कार्य के एवज में रकम को लेकर उलझ जायेंगे।
फिर क्या था पत्रकार होने का सारा घमंड चूरचूर हो गया और बगैर परिचय पत्र के पांच साल तक रिपोर्टर के तौर पर कार्य किया। खबर प्रकाशित होने की गिनती के आधार पर प्रति खबर दस रूपये मिला करता था। वर्ष 2011 में दैनिक जागरण को अलविदा इसलिए कह दिया कि उसने न तो परिचय कार्ड दिया और न ही प्रमोशन। हिन्दुस्तान समाचार पत्र से बुलावा आया और अनुमंडल रिपोर्टर का पद मिला। यहां प्रखंड में बीडीओ एवं दरोगा से बड़े अधिकारी एसडीओ एवं एसडीपीओ स्तर के अधिकारी की खबर एवं अन्य खबर लिखने का मौका मिला। लेकिन चार साल में यहां भी प्रति खबर 12 रूपये के हिसाब से मिलता था। परिचय कार्ड चार साल में कभी मिला नहीं।
अपने पहचान के बदौलत वाहन पर प्रेस लिखा कर चलने की आदत बनी रही। मार्च 2015 में एक मासिक पत्रिका आईना समस्तीपुर तथा दिसम्बर 2015 में एक समाचार पत्र पाक्षिक संजीवनी बिहार निकालना आरम्भ कर दिया। दस साल की यह कहानी शायद इसलिए लिखनी पड़ी कारण कि बिहार में जो लोग पत्रकार कहे जाते हैं, इनमें से अधिकांश …दसटकिया या फिर बारहटकिया रिपोर्टर होते हैं। जिनके पास अपने परिचय के लिए न तो संबंधित समाचार पत्र का प्रेस कार्ड होता है और न ही पत्रकारिता की कोई डिग्री। इस प्रकार के समाचार पत्रों की भरमार है। इस कारण नन मैट्रिक पास भी पत्रकार होते हैं। दो मरे तीन घायल की खबरें इसलिए प्रकाशित करते हैं कारण कि हर खबर पर दस से बारह रूपये आसानी से मिल जाते हैं। क्या सचमुच यही पत्रकारिता है?
यह बड़ा सवाल है, लेकिन इस सवाल का केवल यह जवाब है कि बेरोजगारी में है लाचारी….. इसलिए कर रहे हैं बेगारी। पत्रकारिता दिवस के मौके पर हम सभी समाचार पत्र के प्रबंधन से एक बात की गुजारिश अवश्य करना चाहेंगे कि अपने समाचार पत्र में वैसे लोगों को लगाये जो कम से कम आनर्स की योग्यता रखते हों। इस लेख में वैसे तो हमने किसी का अहित नहीं किया है, फिर भी अगर किन्ही तथाकथित पत्रकार को लगे की हमारा अनहित हो रहा है तो वे अपना हित अपने ढ़ग से तय कर लें!
संजीव कुमार सिंह
संपादक, आईना समस्तीपुर और संजीवनी बिहार पाक्षिक समाचार पत्र
सम्पर्क सूत्र -9955644631
chandramanisingh940@gmail.com
Comments on “दस टकिया और बारह टकिया रिपोर्टर बिहार में कहलाते हैं पत्रकार!”
तीन-चार साल पहले की बात है एक अखबार ने पंचायतों पर फोकस करते हुए विशेषांक निकाली थी। मेरे गांव के मुखिया के बारे में खूब अच्छी-भली लिखा देखा। अगले दिन मुखिया जी मिल गए, मैने पूछा -बड़ा कमाल कर रहे हो। अखबारों में खूब जगह मिल रही है। उन्होंने चवन्नी मुस्कान के साथ मुंह में खैनी रखते हुए कहा-नहीं जानते हैं ये चोटा पत्रकरवा सब को 200 से 300 रुपया दे दीजिए जो लिखवा दीजिए। वो मुखिया जी फिर से चुनाव जीतने वाले हैं। सोचा रिजल्ट निकलते ही बधाई दे दूंगा। काम करें न करे कम से कम अखबारों में यूं ही छपते रहे। गांव का नाम अखबारों में तो आ रहा है।