संजय कुमार सिंह
दिल्ली में भयंकर प्रदूषण है। इसे इस तरह समझिये कि जो सिगरेट-बीड़ी नहीं फूंकता है वह भी धूम्रपान कर रहा है। सबको पता है कि इससे स्वास्थ्य खराब होता है और अगर कोई व्यक्ति मजबूरन लगातार महीनों, वर्षों से सिगरेट बीड़ी पी रहा है तो उसका क्या होगा। वैसे तो दिल्ली में प्रदूषण रहता ही है, दीवाली के समय बहुत ज्यादा हो जाता है। इसे रोकने, कम करने के उपाय और उसका प्रभाव सर्वविदित है। ऐसे में दिल्ली में आतिशबाजी प्रतिबंधित है। इसके बावजूद कल लोगों ने खूब आतिशबाजी की जबकि प्रतिबंध नहीं होने पर भी लोगों को स्वयं इससे बचना चाहिये था। और बात पटाखों की ही नहीं है पूजा के नाम पर अगरबत्ती से धुंआ कम नहीं होता है पर हमें तो मच्छर भगाने के लिए भी अगरबत्ती चाहिये। खाने के ठेलों पर मक्खी भगाने के लिए भी धुंआ किया जाता है। पर ध्यान गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण पर है।
तृणमूल पार्टी के प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य साकेत गोखले ने दीवाली की रात ही टवीट कर कहा कि उनके पड़ोसी भाजपा के सांसद और मंत्री (जनप्रतिनिधि) दिल्ली में पटाखों पर प्रतिबंध के बावजूद पटाखे चला रहे हैं। आज उन्होंने लिखा है कि दिल्ली पुलिस को बताना चाहिये कि ऐसा कैसे हुआ और हम सब लोगों के लिये गैस चैम्बर में सांस लेने की मजबूरी की जिम्मेदारी लेनी चाहिये। तकनीकी तौर पर गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, गुड़गांव, दिल्ली से अलग हैं। यहां प्रतिबंध है कि नहीं मैं नहीं जानता। हालांकि मैंने जानने की कोशिश भी नहीं की। पर जब पंजाब में पराली जलाने से दिल्ली में प्रदूषण होता है तो गाजियाबाद या गुड़गांव की आतिशबाजी से भी होता ही होगा। पर आतिशबाजी कहीं कम नहीं थी। पहले के वर्षों से कम रही हो पर स्वीकार्य स्तर के मुकाबले तो बहुत ज्यादा थी। यहां दिलचस्प यह भी है कुछ लोगों के लिए प्रदूषण मुद्दा नहीं है इसका कारण पराली है या आतिशबाजी – यह है। उनका तर्क है कि दीवाली है तो पटाखे चलायेंगे ही।
होना यह चाहिये कि सरकार से मांग की जाये कि जो जरूरी है करे, प्रदूषण कम हो। पराली न जलाये जायें, उसक वैकल्पिक उपाय या बगैर उपाय उसे रोकना भी सरकार का काम है। सरकार का काम था कि सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध को लागू कराया जाता पर नेता जनता मिलकर पटाखे चलाते रहे। अब चर्चा यह है कि पहले से कम था या पराली के कारण था। इसकी चिन्ता बहुत कम लोगों को है कि भाजपा राज में भाजपा के लोग, सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद पटाखे चलाना रोक नहीं पाये और खुद भी चलाये। यह लोगों की मानसिकता बताती है और अगर लोगों को पसंद है तो कोई उपाय नहीं है। और इसे भी समझने-समझाने की जरूरत है। आज अखबार नहीं आये हैं लेकिन लीपापोती वाली खबरें हैं और जो कह रहा है कि प्रदूषण है उसके पीछे ट्रोल भी हैं। और अच्छे दिन का मतलब शायद यही है। साकेत गोखले के मुताबिक आज सुबह दिल्ली में एक्यूआई 999 से ज्यादा था। उन्होंने ज्यादा ही लिखा है पर तथ्य यह है कि घरों में हवा साफ करने के लिए आजकल उपयोग की जाने वाली मशीन आमतौर पर तीन अंकों में ही पठन देती है और 1000 से ज्यादा भी लिखा जा सकता था पर कितना ज्यादा यह आम लोगों को पता नहीं है।
दूसरी ओर, उन्होंने आगे लिखा है, भाजपा के कई सांसद और मंत्री कल मेरे पड़ोस में अपनी दीवाली पार्टी के दौरान घंटों पटाखे चलाते देखे गये। उन्होंने दिल्ली के ज्वायंट सीपी, मुख्यालय से पूछा है कि दीवाली की रात आतिशबाजी चलाने के लिए कितने मामले दर्ज किये गये और क्या कार्रवाई की गई है। और भी कई सवाल है। कहने की जरूरत नहीं है कि बीच दिल्ली में भाजपा के नेता खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं। इसमें इस बात का कोई मतलब नहीं है कि वह दिल्ली में चुनाव हारती रही है, आम आदमी पार्टी की सरकार है लेकिन पुलिस पर भाजपा का ही नियंत्रण है। सवाल यह है कि जब उन्हें अपने और करीबियों के स्वास्थ्य की चिन्ता नहीं है (मेरा तो कोई नहीं है) तो वे आपके हमारे स्वास्थ्य और स्वास्थ्य ही नहीं, बेहतरी की चिन्ता क्यों करेंगे? अपनी कर रहे हैं, उदाहरण कई हैं। दिल्ली पुलिस ने अगर कार्रवाई नहीं की और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने में लापरवाह रही तो यह उसका सिरदर्द है। और नेता चाहें तो उसे ठीक किया जा सकता है पर पहले तो नेता ठीक हों। वह तो हमें और आपको करना है कि अच्छे लोगों को ही चुनें।
दिल्ली और दिल्ली ही क्यों, देश भर की हवा प्रदूषित नहीं होनी चाहिये। उसे ठीक करने की कार्रवाई प्राथमिकता के आधार पर होनी चाहिये लेकिन जो लोग खुद ही नियम कानून नहीं मानते हैं, जनता को अपनी परवाह नहीं है और नेताओं ने पटाखे चलाये तो जनता ने कहां कोई कसर रखी। जाहिर है, जनता को अपनी चिन्ता नहीं है। राजनेताओं या राजनीतिक दलों की बात करूं तो आप जानते हैं कि पहले दिल्ली में प्रदूषण पंजाब में पराली जलाने से होता था अब पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है और दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार भाजपा मनोनीत लाट साब चलाते हैं। ऐसे में पराली का मामला निपटना नहीं है लेकिन आज ही टेलीग्राफ की खबर है कि पराली जलाने वाले राज्यों में पंजाब के बाद मध्य प्रदेश का नंबर है और यह अब पता चला है।
एक अध्ययन के हवाले से लिखी इस रिपोर्ट के अनुसार देश में पराली जलाने वाला क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है और 2011 में यह तीन मिलियन (तीस लाख) हेक्टेयर था तो 2020 में 4.5 मिलियन (45 लाख) हेक्टेयर हो गया था। नेताओं ने या सरकारी विभागों ने ऐसा कोई अध्ययन कराया होता और इसके नतीजों के आधार पर योजना बन रही होती तो लगता कि कुछ काम हो रहा है और आपको चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। लेकिन स्थिति अलग है। आप को अपनी चिन्ता खुद करनी है। नेता तो दीये जलाकर रिकार्ड बनाने में व्यस्त हैं और उनका क्या है वे तो यह बताकर भी वोट पाने की उम्मीद कर रहे हैं हममे से 80 करोड़ लोग अगले पांच साल तक मुफ्त अनाज के मोहताज रहेंगे। समझना आपको है। मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि गिनीज बुक जनता के पैसे से दीये जलाने के रिकार्ड क्यों दर्ज कर रहा है और तेल के दीये जलाने का रिकार्ड र्ज हो सकता है तो कोई सरकार घी के दीये जलाने का कोई रिकार्ड क्यों नहीं बना रही है। इसमें कुछ लोगों ने कहा कि गोदी सेठ सरसो तेल बनाते हैं, घी नहीं। पर गोदी स्वामी तो घी बनाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या गोदी स्वामी पिछड़ गये हैं? मुझे तो लगता है कि घी और तेल में भी राजनीति छिड़ गई है। उसकी चर्चा फिर कभी।