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मोदी के फैसले से आर्थिक आपातकाल, देशभर में हाहाकार

40 प्रतिशत से ज्यादा कालेधन का है बाजार में चलन, सभी तरह का कारोबार पड़ा ठप

राजेश ज्वेल

इंदौर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मास्टर स्ट्रोक ने जहां आम आदमी को फिलहाल पसंद किया वहीं तमाम कारोबारी माथा पकड़कर बैठे हैं। 500-1000 रुपए के नोट बंद करने की घोषणा के साथ ही देशभर में हाहाकार मच गया और आर्थिक आपातकाल से हालात हो गए, क्योंकि साग-सब्जी वाला भी 500 रुपए का नोट लेने से इनकार कर रहा है और आज से तो वैसे भी ये बड़े नोट कागज के टुकड़े साबित हो गए हैं। देश की 40 प्रतिशत से ज्यादा इकॉनोमी कालेधन से ही चलती रही है। लिहाजा एकाएक इस पर ब्रेक लगा देने से हर तरह का कारोबार ठप पड़ जाएगा।

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40 प्रतिशत से ज्यादा कालेधन का है बाजार में चलन, सभी तरह का कारोबार पड़ा ठप

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राजेश ज्वेल

इंदौर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मास्टर स्ट्रोक ने जहां आम आदमी को फिलहाल पसंद किया वहीं तमाम कारोबारी माथा पकड़कर बैठे हैं। 500-1000 रुपए के नोट बंद करने की घोषणा के साथ ही देशभर में हाहाकार मच गया और आर्थिक आपातकाल से हालात हो गए, क्योंकि साग-सब्जी वाला भी 500 रुपए का नोट लेने से इनकार कर रहा है और आज से तो वैसे भी ये बड़े नोट कागज के टुकड़े साबित हो गए हैं। देश की 40 प्रतिशत से ज्यादा इकॉनोमी कालेधन से ही चलती रही है। लिहाजा एकाएक इस पर ब्रेक लगा देने से हर तरह का कारोबार ठप पड़ जाएगा।

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इसमें कोई शक नहीं कि कालेधन के केंसर ने देश को खोखला करना शुरू कर दिया, लेकिन आजादी के बाद से अभी तक बाजार में कालेधन का ही बोलबाला रहा है। जानकार लाख तर्क दें कि 500 और 1000 रुपए के नोट पहली मर्तबा बंद नहीं हुए हैं और इसके पहले की केन्द्र सरकार भी बड़े नोट बंद कर चुकी है। 38 साल पहले प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 1978 में 1000 रुपए के नोट बंद किए थे, मगर मैदानी हकीकत यह है कि नि 38 सालों में जहां देश ने जबरदस्त तरक्की की, वहीं कालेधन का प्रतिशत कई गुना बढ़ गया।

रियल इस्टेट में सबसे ज्यादा कालाधन खपा और उसी का परिणाम यह है कि आज इंदौर सहित देशभर में जो बड़ी-बड़ी चमचमाती बिल्डिंगें आधुनिकता और विकास का प्रतीक है, उनकी नीवों में कालाधन ही भरा गया है। 38 साल पहले 1000 रुपए के नोट बंद करने से इतना हाहाकार नहीं मचा, जितना अब मचा है, क्योंकि इन वर्षों में 40 प्रतिशत से अधिक बाजार कालेधन से ही चलने लगा है। एक मामूली ठेले-गुमटी लगाने वाले से लेकर किसानों का भी पूरा कामकाज नकद में ही होता है। यहां तक कि गली-मोहल्ले की किराना दुकानों से लेकर बड़े-बड़े शोरुमों में होने वाली खरीददारी नकद ही की जाती है। अब देश में जो आर्थिक आपातकाल के हालात निर्मित हो गए हैं उससे सभी तरह का कारोबार ठप पड़ जाएगा, क्योंकि लोग जब खरीदी ही नहीं करेंगे तो धंधा कैसे चलेगा और इसका असर अंतत: बड़े लोगों पर तो पड़ेगा ही, वहीं इससे जुड़े आम आदमी पर भी असर होगा।

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आने वाले दिनों में ही इस आर्थिक आपातकाल के असर बाजार में दिखने लगेंगे और जो जगमग इंदौर जैसे बड़े शहरों में नजर आती है वह भी घट जाएगी, क्योंकि आज बड़ी-बड़ी होटल में खाना खाने से लेकर मल्टी फ्लेक्स सिनेमा में जाने और बड़े-बड़े शोरुमों में खरीददारी करने के साथ-साथ पूरी जीवनशैली  जो आधुनिक हो गई है उसमें 40 प्रतिशत से ज्यादा कालेधन का इस्तेमाल ही किया जाता है और यह सब ठप हो जाने के कारण इनसे जुड़े लोग बुरी तरह के प्रभावित होंगे।

गरीब और मध्यम वर्ग पर भी बड़ा असर
आज भले ही गरीब और मध्यम वर्ग इस बात को सोचकर खुश हो रहा है कि बड़े लोगों के काम लग गए। अच्छा हुआ उनके पास 1000 और 500 रुपए के नोट नहीं रहे और इस तरह के तमाम संदेश व्हाट्सएप पर धड़ल्ले से आ भी रहे हैं, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि बाजार में चल रहे इस कालेधन का लाभ गरीब और आम आदमी मध्यम वर्ग तक पहुंचता है। मालिक के पास अगर पैसा होगा और वह उसे खर्च कर सकेगा तो इसका लाभ उसके ड्राइवर से लेकर घर के नौकर या दफ्तर में काम करने वाले कर्मचारी तक को मिलता है। अब अगर कालाधन बंद हो गया तो छोटे लोगों को जो लाभ मिलता है वे उससे भी वंचित हो जाएंगे। जब बाजार में धंधे-पानी ही चौपट होंगे तो उससे नीचला तबका भी प्रभावित तो होगा ही।

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इंदौर की मंडी में भी कामकाज रहा ठप
आज सुबह ही इंदौर की अनाज मंडी से लेकर सब्जी और फल-फ्रूट मंडी चोईथराम मंडी में ही कामकाज ठप हो गया। 80 प्रतिशत से ज्यादा कारोबारी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे, क्योंकि अधिकांश खरीददारों के पास हजार और 500 रुपए के नोट ही थे, जिसे विक्रेता लेने को तैयार नहीं हुए। मंडी का भी यह पूरा कारोबार नकद ही चलता है और जो व्यापारी अपना माल बेचकर दोपहर 2-3 बजे तक फ्री हो पाता था वह आज सुबह 8-9 बजे ही घर वापस आ गया और हजारों-लाखों किलो सब्जी, फल और अन्य सामग्री मंडी में पड़े-पड़े ही सड़ जाएगी। इस निर्णय से तमाम किसानों को भी बड़ा नुकसान हुआ है, क्योंकि उनकी उपज के दाम भी नकद ही मिलते हैं और कई किसानों के पास तो अपनी फसल को बेचने के बाद बड़ी नकद राशि पड़ी है। अब उन्हें बैंकों में जमा कराने पर कई तरह के जवाब देना पड़ेंगे।

लेखक राजेश ज्वेल से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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