पत्रिका ग्वालियर के संपादक अमित मंडलोई रिपोर्टरों की मीटिंग में सीनियर रिपोर्टर राजेंद्र तलेगांवकर से किसी खबर को लेकर भिड़ गए। वे काफी देर तक तेज आवज में अनाप-शनाप बोलते रहे। जब तलेगांवकर की बर्दाश्त के बाहर हो गया तो वे यह कहते हुए केबिन से बाहर चले गए कि आपने सिर्फ कुछ लोगों को निशाना बना रखा है। ऐसे माहौल मे काम करना संभव नहीं है। मैं इस्तीफा दे रहा हूं। बिना नौकरी के मैं भूखों नहीं मर जाऊंगा। लोगों के समझाने के बाद भी वे अपना सामान लेकर ऑफिस के बाहर चले गए।
केबिन के बाहर जब अन्य साथी लामबंद होने लगे तो मंडलोई ने रंग बदलते हुए तलेगांवकर को बुलाया और तुरंत माफी मांग ली। इसके बाद मामला शांत हुआ। सूत्रों का कहना है कि तलेगांवकर काफी सीनियर, मिलनसार और जिम्मेदार व्यक्ति हैं। करीब एक माह पूर्व उज्जैन से ग्वालियर आए मंडलोई आफिस के ही कुछ लोगों के कहे पर चल रहे हैं जिससे ऑफिस का माहौल खराब और अखबार का सत्यानाश हो रहा है।
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।
Comments on “पत्रिका के संपादक की निकल गयी हेकड़ी, रिपोर्टर से मांगनी पड़ी माफी”
अमित मंडलोई के बारे में गलत सूचना दी गई है। वे बेहद मिलनसार और सौम्य व्यक्ति हैं। आपकी खबर खुद बता रही है कि उन्हेांने बडप्पन दिखाया नहीं तो नौकरी छोडता है तो छोड दे साला रिपोर्टर ही है की तर्ज पर कई संपादक झुकना पसंद नहीं करतेा अमितजी सुलझे हुए वे संपादक तो अब बने हैं वे उम्दा रिपोर्टर भी रहे हैं।
sampak ji naye hai chplhsi pasand bhi ye to hona hi tha waise patrika main ad aise hi log milenge jinhe patrikarita ki adcd bhi nahi aati.
चुतियों की कमी नहीं है देश में अबे ये सब जो अमित मंडलोई की बुराई कर रहे हो, पढ़ें कहां तक हो बे।
ग्वार साले तुमको नौकरी तो मिल नहीं सकती, क्योंकि या तो तुम पर नकली डिग्री है या तुम केवल चापलूसी से पत्रकार की नौकरी पर लग गए हो। क्योंकि पत्रकारिता में पत्रकारिता की डिग्री वाले ही बेहद कम हैं। और तुम तो वैसे ही अपने बापों की तरह चोर हो, धूस खाने वाले जैसे तुम्हारे बाप थे अब तुम वैसा नहीं कमा पा रहे क्योंकि बाप तुम्हारे सरकारी नौकरी में चोरी करते थे और तुम पत्रकारिता के नाम पर…
तुम तो दलाल हो दलाल…
her vykti ka manpratishdaa hoti hai sampadak sala apne aap ko kya samjhta hai ….. bas off me baith ker bahs karna janta hai
अमित मंडलोई पत्रिका के स्टेट एडिटर अरूण चौहान का चमचा है, इसके अलावा उसकी कोई और योग्यता नहीं है। पत्रिका ने सारा साम्राज्य अरूण चौहान को सौंप रखा है और इस कारण ही चौहान ने सभी जगह अपने चमचे बैठा रखे हैं। अगर कोई चमचागिरी नहीं करे तो उसकी इतनी कार सेवा की जाती है कि बेचार संपादक नहीं रहता है। इस कारण ही करोडो रुपए खर्च करने के बाद भी पत्रिका का अब सर्कुलेशन नहीं बढ़ रहा है। सब एक दूसरे को उल्लू बना रहे हैं। बस
पत्रिका मध्य प्रदेश के स्टेट हेड अरुण चौहन ने सारे डिफाल्टर और चोर लोगों को संपादक बनाया है, जो उन्हें रुपये कमाकर दे सकें। इंदौर में भी एक महिला पत्रकार को मोहरा बनाकर चौहान ने करोड़ों रुपये कमाए हैं। पता नहीं हेड आफिस तक ये बाते क्यों नहीं पहुंचती हैं। अमित मंडलोई को तो भास्कर पहले ही डिफाल्टर घोषित कर किसी खबर के लेनदेन में पांच लोगों को एक साथ बाहर का रास्ता दिखाया था। सुना है गवालियर में आजकल वो दो दलाल पत्रकारों के साथ पैसा कमाने का पूरा जाल तैयार कर रहे हैं।