Chandan Srivastava : तारेक फतह का एक लेख पढ़ा जिसमें वे लिखते हैं कि…
”वे टोरंटो (कैनाडा) जहाँ वे रहते हैं, जुम्मे के नमाज को मस्जिद में जाना पसंद नहीं करते. उसमें से एक कारण ये है कि नमाज शुरू हो उसके पहले जो भी रस्मी दुआएं अता की जाती है उसमें एक दुआ “मुसलमानों की काफिरों की कौम पर जीत हो” इस अर्थ की भी होती है. बतौर तारेक फतह, यह दुआ सिर्फ टोरंटो ही नहीं लेकिन दुनियाभर में की जाती है. अब आप को पता ही है काफ़िर में तो सभी गौर मुस्लिम आते हैं – यहूदी, इसाई, हिन्दू, बौद्ध, सिख और निरीश्वरवादी भी. यह दुआ अपरिहार्य नहीं है. इसके बिना भी जुम्मे की नमाज की पवित्रता में कोई कमी नहीं होगी.”
आगे तारेक फतह के शब्दों में:
”मैंने अपने रुढीचुस्त मुसलमान मित्रों से चर्चा – विवाद किया कि चूँकि हम सब गैर मुस्लिम देशों में रहते हैं, तो यह दुआ नहीं करनी चाहिए. वे सभी सहमत होते तो हैं, लेकिन बिल्ली के गले में घंटा बांधे कौन? गत शुक्रवार, जब दुनिया जब शार्ली एब्दो के हादसे से उबरी भी नहीं थी तब और एक हमले की खबर आई कि एक जिहादी आतंकवादी ने एक यहूदी मार्किट में एक यहूदी को गोली मार दी है. मैंने सोचा, बस बहुत हो चुका अब. सो मैंने अपने मित्रों से कहा कि ये चुनौती अब हम ही उठाते हैं, चलिए “I am Charlie Hebdo” लिखे बोर्ड ले कर खड़े हो जाते है अपने लोकल मस्जिद के बाहर. गिनती के चार लोग आये. बाकी सभी मेरे इस्लामी जूनून से जिंदगीभर लड़ते साथी भी अखरी मिनट को डर कर भाग गए. और आतंक की निंदा करने के बजाय इमाम साहब दहाड़े कि इस्लाम इस मुल्क मैं सभी धर्मों के ऊपर स्थापित होगा. और मस्जिद के भीतर, मुझे उम्मीद थी कि अभी अभी ये हादसा ताजा है तो मुल्ला जी अक्ल से काम लेंगे और इस वक़्त गैर मुस्लिमों को दुश्मन करार नहीं देंगे, लेकिन मेरी उम्मीदों को टूटना ही नसीब था. आतंकियों की निंदा करना तो दूर की बात. इमाम साहब इंग्लिश में दहाड़े कि इस्लाम “will become established in the land, over all other religions, although the ‘Disbelievers’ (Jews, Christians, Hindus and Atheists) hate that.” मुझे मेरे कानों पर यकीन नहीं हो रहा था. उसी सुबह एक फ्रेच जिहादी ने यहूदियों को बंधक बनाने की खबर आई थी, उस पर भी कोई नाराजगी नहीं जताई उन्होंने. इमाम साहब ने हम सभी को कह कि अपमान पर प्रतिक्रिया के समय हम सभी मुसलमान रसूल के नक्शेकदम पर चलें. अब ये सुझाव के साथ दिक्कत ये है कि ऐसे कुछ मौकों पर रसूल ने उनका उपहास करनेवालों को माफ़ किया था, लेकिन कई ऐसे भी मौके हैं जहाँ उन्होंने ऐसे लोगों को मार डालने के भी निर्देश दिए थे. खुतबे के आखिर में इमाम साहब ने वो दुआ फिर से दोहराई जिसमें अल्लाह से दुआ की जाती है कि वे मुसलमानों को काफिरों की कौम पर फतह दिला दे. फिर हम सभी साफ़ सुथरी कतारों खड़े हुए, और मक्का की तरफ मुंह कर के सब ने इमाम साहब के निर्देश में जुम्मे की नमाज अता की. मस्जिद से जब निकला तब मैंने ठान ली थी कि मैं तो वहां वापस नहीं जानेवाला.”
नोट- पोस्ट कॉपी किया हुआ है जो कि इंग्लिश आर्टिकल का हिन्दी अनुवाद है. मूल आर्टिकल का लिंक ये है:
http://www.meforum.org/4974/muslims-shouldnt-pray-to-defeat-non-muslims
आपको खतरे का अहसास अब से हो जाय इसलिए मेहनत की जा रही है.
लखनऊ के पत्रकार चंदन श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.
mp
January 26, 2015 at 12:05 pm
तारेक फतेह अाप साधुवाद के सलाम के लायक है इस तरह की सोच और कर्म के लिए।अापकी कौम में सबसे बड़ी समस्या यही है की अाप की कौम पर जाहील,अनपठ़,जड़ और मुर्ख मौलवी और कादरी,हाज़ीओं की पकड़ है लोग उनकी हर बात धर्म के नाम पर मान लेते है।वे लोग हमारे मंदिरों मे अपने अाप बन बैठे़ गोड़मेन जैसे है।अत्यंत दुख की बात यह है की ये लोग अापके पढे़-लिखे नौजवानोंका ब्रेइनवोश कर दे ते है और ये लोग देश की बर्बादी ,अातंकवाद मे लुप्त हो जाते है। परंतु अाप जैसे लोग से अाश बनी रहती है भगवान,अल्लाह ये अाशा बनाए रखे और अाप जैसे लोगों को सलामत रखे। अामीन……
Bakhtawar singh
May 21, 2015 at 7:49 pm
क्या बात है आपने देश और हिंदुत्व की सेवा की है ये अनुवाद करके।
ऊपर एक सूअर ने मौलवियों को हिन्दू साधुओं से compare करदिया। कैसे कैसे भरे पड़े हैं
Shahnawaz Pahat
February 20, 2017 at 6:31 am
इस प्रकार के लेखो पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाए, ये इस्लाम को बदनाम करने का प्रयास है ।या तो ये लोग साबित करे, या इन्हे जेल भेज दिया जाए ।
Qasim
September 29, 2020 at 5:09 am
Sach kadwa hi hota he
Qasim