गोलीबारी और सर्जिकल स्ट्राइक कर सिर्फ गाल बजाने से काम नहीं चलेगा मोदी जी

आतंकी हमले नहीं होंगे, यह कौन सुनिश्चित करेगा… जम्मू के सुंजवान में शनिवार तड़के आतंकियों ने एक बार फिर नापाक हरकत की। सुंजवान सैन्य शिविर में केवल सैनिक ही नहीं बल्कि उनके परिजन भी थे। इस हमले का संदेह जैश-ए-मोहम्मद पर ही जा रहा है। इससे पहले उरी और पठानकोट पर भी आतंकियों ने इसी तरह हमला किया था। पिछले साल सेना ने 213  आतंकियों को मार गिराया, यह उनकी हताशा का परिचायक है। लेकिन इस तथ्य से मन को बहलाया नहीं जा सकता है। पाकिस्तान की ओर से सीमा पर गोलीबारी, घुसपैठ का सिलसिला थम नहीं रहा है। शायद ही कोई दिन बीतता हो, जब हमारे जवान शहीद न होते हों। इस बार हमले में शहीद हुए लेफ्टिनेंट मदन लाल चोधरी की एक रिश्तेदार गर्भवती थीं, वे भी घायल हुई पर उन्हें किसी तरह बचाया गया और उन्होंने एक बच्ची को जन्म दिया।

आतंकी संगठनों से भी खतरनाक है इंडियन मेडिकल एसोशियेशन!

तीन दिन पहले गया मेडिकल कालेज के जूनियर डाक्टर और अस्पताल के पास के दुकानदारो के बीच जमकर मारपीट हुई, डाक्टरों ने दुकानों में घुसकर तोड़फोड़ की और उसके बाद दुकानदारो ने भी हॉस्टल में तोड़फोड़ करके अस्पताल की संपति को क्षति पहुचाई फिर जुनियर डाक्टरों ने चिकित्सा सेवा ठप्प कर दी। घटना का कारण कुछ जूनियर डाक्टरों द्वारा शराब पीकर एक दुकानदार के साथ मारपीट है। पूर्व में भी ऐसी अनेको घटनाये हो चुकी हैं जब किसी मरीज के इलाज में लापरवाही बरतने पर हुई नोकझोक के कारण जूनियर डाक्टरों ने हंगामा किया और चिकित्सा सेवा ठप्प कर दी। इस तरह की जब भी स्थिति पैदा हुई है डाक्टरों के संगठन IMA ने यथार्थ से हटकर जूनियर डाक्टरों की तरफदारी की है पुरी तरफ असंवेदनशील है यह संगठन अगर आमजन की भाषा में कहें तो यह अपराधियो का, माफियाओ के संगठन की तरह कार्य करता है।

हम तो ‘ऐसे’ चैनलों के भी आलोचक और ‘ऐसी’ सरकार के भी

याकूब मेमन फांसी अध्‍याय की ”अप्रिय” कवरेज पर केंद्र सरकार से हिंदी के तीन समाचार चैनलों एबीपी, आजतक और एनडीटीवी को मिले नोटिस पर कुछ संपादकों-पत्रकारों की चिंताएं देखने में आ रही हैं। मैं इन चिंताओं को लेकर चिंतित हूं। हम सब लगातार देख रहे हैं कि समाचार चैनलों ने बीते एक साल में किस तरह सरकार का प्रवक्‍ता बनना स्‍वेच्‍छा से चुना है। 

बेलगाम न्यूज चैनल : आतंकी से यारी, पड़ेगी भारी !

आतंकी याकूब मेनन की फाँसी की रात कुछ इलेक्ट्रानिक मीडिया की कवरेज वाकई आपत्तिजनक थी ! अब केंद्र सरकार ने कुछ चैनलो को नोटिस देकर जवाब माँगा है ! इसमें आज तक, ए बी पी न्यूज़ और एनडी टीवी शामिल है !

आतंक के खेल में एक मासूम के जिंदा पकड़े जाने का मीडिया टेरर

कुछ मित्रों ने जिंदा पकड़े गए आतंकवादी यानी कसब पर मेरी राय जाननी चाही है. मैंने मना किया तो कहने लगे कि लिखने से डरते हैं. अब ये हाल भी नहीं है कि कोई मुझे कुछ कहकर उकसा ले. पर अगर आप सुनना ही चाहते हैं तो लीजिए सुनिए….

गोरखपुर अमर उजाला में एडिटर और एनई के आतंक से भगदड़

गोरखपुर अमर उजाला में इन दिनो संपादक प्रभात सिंह और न्यूज एडिटर मृगांक सिंह के आतंक से मीडिया कर्मियों में भगदड़ सी मची हुई है। कई लोग तीन से छह महीने तक की मेडिकल छुट्टी पर चले गए हैं। कई पत्रकार अन्य अखबारों में चुपचाप नौकरियां खोजने में लगे हुए हैं। ब्यूरो स्तर पर कई जिलों में स्ट्रिंगरों में भी असंतोष बताया जाता है। मेन पॉवर डिस्टर्व होने से कार्यरत लोगों के जरूरी अवकाश भी मंजूर नहीं किए जा रहे हैं।  

नमाज शुरू होने से पहले रस्मी दुआ “मुसलमानों की काफिरों की कौम पर जीत हो” का मतलब क्या है?

Chandan Srivastava : तारेक फतह का एक लेख पढ़ा जिसमें वे लिखते हैं कि… 

”वे टोरंटो (कैनाडा) जहाँ वे रहते हैं, जुम्मे के नमाज को मस्जिद में जाना पसंद नहीं करते. उसमें से एक कारण ये है कि नमाज शुरू हो उसके पहले जो भी रस्मी दुआएं अता की जाती है उसमें एक दुआ “मुसलमानों की काफिरों की कौम पर जीत हो” इस अर्थ की भी होती है. बतौर तारेक फतह, यह दुआ सिर्फ टोरंटो ही नहीं लेकिन दुनियाभर में की जाती है. अब आप को पता ही है काफ़िर में तो सभी गौर मुस्लिम आते हैं – यहूदी, इसाई, हिन्दू, बौद्ध, सिख और निरीश्वरवादी भी. यह दुआ अपरिहार्य नहीं है. इसके बिना भी जुम्मे की नमाज की पवित्रता में कोई कमी नहीं होगी.”

आज़म खान का आतंकवाद को समर्थन! पढ़िए ये उर्दू अखबार

भाई यशवंत, उत्तर प्रदेश के नगर विकास मंत्री आज़म खान ने तमाम हदें पार करते हुए  पेरिस में हुए आतंकी हमले का समर्थन किया है  लेकिन किसी पत्रकार के कान पर जूं नहीं रेंग रही है । उर्दू के कई समाचार पत्रों में आज़म खान का यह वक्तव्य छपा है जिस में आज़म ने कहा है  कि पेरिस की मैगज़ीन के पत्रकारों ने किया था उस का बदला उन को मिल गया।  इस ब्यान में आज़म ने दहशत गर्दों की निंदा करने के बजाय यह कहा है कि किसी भी धर्म के अवतारों का अपमान नहीं किया जाना चाहिए।  आज़म खान का ब्यान पढ़ कर लगता है कि उन के दिल में दहशत गर्दों के लिए कितनी हमदर्दी है। 

शार्ली अब्‍दो की महिला पत्रकार से आतंकियों ने कहा था- इस्लाम धर्म अपना कर कुरान पढ़ोगी, इस शर्त पर जिंदा छोड़ रहे हैं

पेरिस। फ्रेंच पत्रिका शार्ली अब्दो में आतंकियों का निशाना बनने से बचे पत्रकारों ने आंखों देखा हाल सुनाया। दिल दहला देने वाली इस वारदात को शुरू-शुरू में सभी ने कहीं आतिशबाजी होना समझा था। लेकिन थोड़ी ही देर में पत्रकारों का नाम पूछकर उन्हें मारा जाने लगा। इनमें से जीवित बची एक महिला पत्रकार का कहना है कि उसे इसलिए जिंदा छोड़ा गया कि वह महिला है। महिला रिपोर्टर सिंगोलेन विनसन ने बताया कि आतंकियों ने उसे ये कह कर छोड़ दिया कि वह महिला है। लेकिन उसे बुर्का पहनने को कहा। साथ ही उसे हिदायत दी कि वह उसे इस शर्त पर जिंदा छोड़ रहे हैं कि वह इस्लाम धर्म को अपना ले और कुरान पढ़े।

50 से ज्यादा मासूमों-गरीबों के हत्यारे ये बोडो वाले ‘आतंकवादी’ ना होकर ‘उग्रवादी’ बने रहते हैं!

Nadim S. Akhter : सिर्फ पाकिस्तान, कश्मीर, अमेरिका और मुंबई जैसी जगहों पर लोगों के मरने पर इस देश के लोगों का खून खौलता है. बाकी टाइम देश में शांति छाई रहती है. अमन-चैन कायम रहता है. मीडिया-सरकार-सोशल मीडिया, हर जगह. कोई शर्मिंदिगी नहीं जताता, कोई अफसोस नहीं करता, कोई कविता नहीं लिखता, कोई मोमबत्ती की फोटुक नहीं लगाता, कोई अपनी जातीय-मजहबी पहचान को लेकर पश्चाताप-संताप नहीं करता.

युवा लेखक विक्रम सिंह बालँगण की पाकिस्तान पर लिखी छोटी-सी कहानी ‘इंतिहां!’ पढ़ें

घने कोहरे और ठण्ड़ के चलते रज्जाक अभी रजाई में ही दुबका पड़ा था। मन ही मन अपनी आंखें मूंदे शायद यह सोच रहा था कि आज स्कूल न जाना पड़े और छुट्टी का कोई बहाना मिल जाये। मगर अम्मीजान के बनाए परांठों की महक आते ही तपाक से उठ खड़ा हुआ। अब कोई बहाना नहीं था..देर सबेर अपना बस्ता तैयार करता रज्जाक फिर भी न जाने कितने बहाने कर रहा होगा स्कूल न जाने के। कभी अब्बूजान के चक्कर लगाता तो कभी बहन नज़मा के इर्द गिर्द मिन्नतें करता रहा कि कैसे भी हो कोई बहाना मिल जाए उसे, आज तो अल्लाह से भी कई बार दुआ कर चुका था। अपने स्कूल के दिनों शायद हर कोई ऐसे ही नाटक करता है।