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मजीठिया : हिंदुस्‍तान, अमर उजाला, पंजाब केसरी के साथियों, इतिहास आपको कभी माफ नहीं करेगा

मजीठिया की लड़ाई निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है, उसके बावजूद अपने जायज हक के लिए आवाज न उठाने के लिए पत्रकारिता के इतिहास में हिंदुस्‍तान, अमर उजाला, पंजाब केसरी जैसे अखबारों में कार्यरत साथियों का नाम काले अक्षरों में लिखा जाएगा। यह बहुत ही शर्म की बात है कि अंदर कार्यरत साथियों को तो छोड़ों, जो रिटायर या नौकरी बदल चुके हैं उन्‍होंने भी अभी तक रिकवरी का क्‍लेम नहीं लगाया है।

<p>मजीठिया की लड़ाई निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है, उसके बावजूद अपने जायज हक के लिए आवाज न उठाने के लिए पत्रकारिता के इतिहास में हिंदुस्‍तान, अमर उजाला, पंजाब केसरी जैसे अखबारों में कार्यरत साथियों का नाम काले अक्षरों में लिखा जाएगा। यह बहुत ही शर्म की बात है कि अंदर कार्यरत साथियों को तो छोड़ों, जो रिटायर या नौकरी बदल चुके हैं उन्‍होंने भी अभी तक रिकवरी का क्‍लेम नहीं लगाया है।</p>

मजीठिया की लड़ाई निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है, उसके बावजूद अपने जायज हक के लिए आवाज न उठाने के लिए पत्रकारिता के इतिहास में हिंदुस्‍तान, अमर उजाला, पंजाब केसरी जैसे अखबारों में कार्यरत साथियों का नाम काले अक्षरों में लिखा जाएगा। यह बहुत ही शर्म की बात है कि अंदर कार्यरत साथियों को तो छोड़ों, जो रिटायर या नौकरी बदल चुके हैं उन्‍होंने भी अभी तक रिकवरी का क्‍लेम नहीं लगाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने तो फरवरी 2014 में ही आपको मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार वेतनमान देने का फैसला दे दिया था। अब तो लड़ाई उस आदेश को पूरी तरह से अमलीजामा पहनाने के लिए लड़ी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्थिति स्‍पष्‍ट होती जा रही है कि कैसे संस्‍थान कर्मचारियों का हक मारे बैठे हैं और उसके बार-बार के आदेश के बावजूद हमारे साथी क्‍लेम लगाने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। राज्‍यों सरकारों के श्रमायुक्‍तों की रिपोर्टें कुछ ऐसा ही कह रही हैं।

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ऐसे में वीरों और शहीदों की भू‍मि कहलाने वाले हिमाचल प्रदेश, उत्‍तराखंड और उत्‍तरप्रदेश (अपवाद स्‍वरुप नोएडा जागरण को छोड़कर) से साथियों का अपने हक के लिए आगे न आना शर्म से डूबने वाली बात है। पहले हम बात करते हैं अमर उजाला के रणबांकुरों की, हिमाचल प्रदेश को छोड़कर कहीं से भी अपने हक को बुलंद करने की आवाज नहीं आ रही है। जिन दो-चार ने केस भी किए उन्‍होंने कंपनी की बातों में आकर छोटे-छोटे स्‍वार्थों के लिए अपने हक का छोड़ दिया। केवल इनमें से एक धर्मशाला से रविंद्र अग्रवाल इस पूरी लड़ाई का अकेला सेनापति और सैनिक बनकर उभरा है। वह पूरे जोश से अपने हक के लिए लड़ रहा है और विभिन्‍न मंचों पर अपनी बात रख रहा है। अन्‍य राज्‍यों से कोई सुगबुगाहट नहीं है।

कैटेगरी के मामले में अमर उजाला ने जैसा कहा सभी कर्मियों ने वैसा ही मान लिया। जबकि अमर उजाला कम से कम बी ग्रेड की कंपनी है (यदि किसी के पास इसके नए टर्नओवर की जानकारी है तो कृपया कर जनहित में जारी करें) और एक्‍ट के अनुसार इसे अपनी कन्‍याकुमारी से लेकर कश्‍मीर तक की सभी यूनिटों में एक जैसे ही ग्रेड के अनुसार वेतन देना पड़ेगा। जबकि यह सभी यूनिटों का ग्रेड अलग-अलग दिखाकर अपने को बचाने की कोशिश में लगी हुई है। खैर इसको भी एक दिन सभी कर्मियों का जायज हक देना ही पड़ेगा। इसके लिए आपको भी आगे आना होगा, विशेषकर रिटायर और नौकरी बदल कर जा चुके कर्मियों को तो कोई दिक्‍कत नहीं होनी चाहिए।

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अब बात करते हैं पंजाब केसरी के साथियों की, इनको तो जैसे सांप ही सूंध गया है। इनकी कंपनी हमारी जानकारी के अनुसार कम से कम बी ग्रेड की है और हमारी अब तक की जानकारी के अनुसार इनमें से एक भी साथी ने अपना क्‍लेम नहीं डाला है। कारण क्‍या है ये तो वो ही बेहतर जान सकते हैं, परंतु ये अपनी कायरता से पंजाब और हिमाचल प्रदेश के वीरों को शर्मिंदा कर रहे हैं। हमारी जानकारी यदि सही है तो जालंधर पंजाब केसरी के पूरे ग्रुप का टर्नओवर 700 करोड़ से ऊपर का है। जिसमें उर्दू, पंजाबी, नवोदय टाइम्‍स आदि तक शामिल हैं। ऐसे में इनका एरियर आज की तारीख में 15-20 लाख से कहीं ऊपर बन रहा है और इनका अपने हक के लिए आवाज न उठाना आश्‍चर्यजनक है।

उत्‍तराखंड में यही हाल दैनिक जागरण, हिंदुस्‍तान, अमर उजाला आदि का भी है। यहां के साथी भी क्‍लेम लगाने के लिए आगे आने से कतरा रहे हैं। यही हाल उत्‍तरप्रदेश में हिंदुस्‍तान, अमर उजाला आदि के साथियों का है। शायद वे मानकर चल रहे हैं कि जो सबके साथ होगा वह हमारे साथ भी होगा। ऐसे में किसी के भी आगे न आने की वजह से उत्‍तराखंड के श्रमायुक्‍त ने 04 अक्‍टूबर 2016 की सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट में जमा अपनी रिपोर्ट में अमर उजाला और हिंदुस्‍तान में मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशें पूरी तरह से लागू होने की बात कही है। उत्‍तराखंड ने अपनी रिपोर्ट में केवल हिंदुस्‍तान, दैनिक जागरण, अमर उजाला, उत्‍तर उजाला और राष्‍ट्रीय सहारा का ही जिक्र है। शायद उनके अनुसार राज्‍य में अन्‍य कोई अखबार नहीं है जो मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अंतर्गत आता हो, जबकि सालाना एक करोड़ से ऊपर के टर्नओवर वाले सभी अखबार, पञिकाएं और न्‍यूज एजेंसियां वेजबोर्ड में आती हैं।

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वहीं, सुप्रीम कोर्ट की आफिस रिपोर्ट में उत्‍तर प्रदेश में हिंदुस्‍तान के लखनऊ, मेरठ, मुरादाबाद, अलीगढ़, बरेली, नोएडा, वाराणसी, इलाहाबाद और कानपुर में मजीठिया वेजबोर्ड को लागू माना गया है। वहीं, इंडियन एक्‍सप्रेस का मामला कुछ और ही इशारा कर रहा है, रिपोर्ट के अनुसार मजीठिया वेजबोर्ड संस्‍थान की लखनऊ यूनिट में तो लागू है, परंतु इसकी नोएडा यूनिट में यह पूरी तरह से लागू नहीं है।

ऐसा कैसे संभव हो सकता है, जबकि सच यह है कि इंडियन एक्‍सप्रेस ने भी अपने यहां मजीठिया की सिफारिशें पूरी तरह से लागू नहीं की हैं। रिपोर्ट में अमर उजाला की लखनऊ, मेरठ, मुरादाबाद, गोरखपुर, अलीगढ़, बरेली, आगरा, नोएडा, वाराणसी, इलाहाबाद और कानपुर में इसको पूरी तरह लागू नहीं बताया गया है। रिपोर्ट में शाह टाइम्‍स की मुजफ्फरनगर यूनिट के आगे Yes लिखा हुआ है। क्‍या आपको लगता है शाह टाइम्‍स ने अपने कर्मियों को मजीठिया दे दिया होगा।

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इस मामले में मध्‍यप्रदेश में कुछ स्थिति ठीक है यहां कर्मियों का संघर्ष रंग लाता हुआ नजर आ रहा है। इसका ही नतीजा है कि यहां रिकवरियां भी क‍टी हैं और कई अखबारों पर जुर्माना भी लगा है। मध्‍यप्रदेश की तीसरी स्थिति रिपोर्ट जो सुप्रीम कोर्ट में जमा हुई है उसके अनुसार केवल इंदौर में फ्री प्रेस और हिंदुस्‍तान टाइम्‍स ने लागू होने की रिपोर्ट (31-07-2015) सौंपी है, जिसकी लेबर विभाग द्वारा जांच की जा रही है। हिंदुस्‍तान टाइम्‍स पर 250 रुपये जुर्माना भी लगाया गया है। रिपोर्ट में पूरे प्रदेश की बाकी अन्‍य अखबारों के आगे नहीं लिखा हुआ है।

रिपोर्ट के अनुसार ग्‍वालियर में जागरण की यूनिट नई दुनिया, दैनिक आचरण व दैनिक स्‍वदेश पर 200-200 रुपये, जबलपुर में जबलपुर एक्‍सप्रेस दैनिक समाचार पत्र, दैनिक दबंग दुनिया, दैनिक जनप्रकाश समाचार, नव भारत प्रेस भोपाल, राज एक्‍सप्रेस, नई दुनिया, प्रदेश टूडे व दैनिक यंग ब्‍लड पर 200-200 रुपये, अरली मोर्निंग पर 500 रुपये और हितकरनी प्रकाशन प्रा लि‍मिटेड पर 600 रुपये का जुर्माना लगाया गया है। रिपोर्ट में 16 रिकवरी काटने का भी जिक्र है, जिनमें से सबसे ज्‍यादा भोपाल उप श्रमायुक्‍त द्वारा 19-09-2016 में काटी गईं हैं-

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भोपाल में कटी रिकवरियां

समाचार पत्र – कर्मचारी का नाम – रिकवरी की राशि

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राजस्‍थान पत्रिका, भोपाल – कौशल किशोर – 9,06,108

नई दुनिया, इंदौर – लोमेश कुमार गौड़ – 21,75,895

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दैनिक भास्‍कर, भोपाल – विकास – 9,60,671

दैनिक भास्‍कर, भोपाल – जीवन सिंह – 8,23,728

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दैनिक भास्‍कर, भोपाल –  धीरेंद्र प्रताप सिंह – 11,36,161

दैनिक भास्‍कर, भोपाल – प्रकाश सिंह – 8,70,928

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दैनिक भास्‍कर, भोपाल – बलराम सिंह राजपूत – 7,86,068

दैनिक भास्‍कर, भोपाल – मुरारीलाल – 7,93,285

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दैनिक भास्‍कर, भोपाल – के सिंह राजपूत – 7,35,528

दैनिक भास्‍कर, भोपाल – ब्रजेश शाहू – 9,40,901

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दैनिक भास्‍कर, भोपाल – जयराम – 9,02,392

दैनिक भास्‍कर, भोपाल – देव नारायण – 8,33,728

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दैनिक भास्‍कर, भोपाल – योगेश सिंह – 7,77,056

दैनिक भास्‍कर, भोपाल – भावगत सिंह तोमर – 8,76,560

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दैनिक भास्‍कर, भोपाल – मदन सिंह – 8,64,687

वहीं ग्‍वालियर में 31-08-2016 को एक रिकवरी कटी है।

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राजस्‍थान पत्रिका, ग्‍व‍ालियर – मदन सिंह – 21,46,945

रिपोर्ट में इंदौर के दैनिक भास्‍कर के संजय कुमार चौहान का जबरन इस्‍तीफे का केस है, जिसे लेबर कोर्ट में रेफर कर दिया गया है। दिल्‍ली द्वारा पिछली बार भी एक नई रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा करवाई गई है, जिसके अनुसार सेंट्रल दिल्ली में M/s Bennet Coleman and company ltd. के 60, अमृत इंडिया प्रकाश लि‍मिटेड, जागरण प्रकाशन, लोक माया डेली व द पोलिटिक्‍ल एंड बिजनेस डेली के एक-एक और दैनिक भास्‍कर के 11 कर्मचारियों का जिक्र है।

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वहीं, नई‍ दिल्‍ली उप श्रम कार्यालय की रिपोर्ट में जागरण के 200 कर्मचारियों के आगे हाई कोर्ट के 6 जून 2016 के स्‍टे का जिक्र किया गया है और सुनवाई की अगली तिथि 7-10-2016 लिखा है। उसके नीचे ही धनंजय कुमार, अभिषेक रावत नई दुनिया (जागरण प्रकाशन) एवं दलीप, ज्‍योति धमीजा व रामजीवन गुप्‍ता दैनिक जागरण के कर्मियों के आगे As the matter of Dainik Jagran v/s Vikas Chowdhary & Anr. Is sub-judice, no further proceeding has been done. लिखा हुआ है और सुनवाई की अगली तिथि का कोई जिक्र नहीं किया गया है।

उसके ठीक नीचे ही दैनिक जागरण के ही कुमार संजय, अनंतानंद, पूजा झा, भरत कुमार, अजीत सिंह, विजय कुमार व रामनाथ राजेश के आगे भी As the matter of Dainik Jagran v/s Vikas Chowdhary & Anr. Is sub-judice, no further proceeding has been done. लिखा हुआ है, परंतु उनके आगे सुनवाई की तिथि 7-10-2016 लिखी हुई है। इसमें ही नए केस के रुप में सत्‍यम शिवम का नाम दिखा गया है। जिन्‍होंने केस 19-09-2016 को फाइल किया है।

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वहीं, हिंदुस्‍तान के कर्मचारियों विक्रम दत्‍त व पुरुषोत्‍तम के आगे हाई कोर्ट के स्‍टे का जिक्र किया गया है। नरेंद्र के आगे लिखा है कि इन्‍होंने पहले समझौता कर लिया था, परंतु अब इन्‍होंने फिर से फाइल खुलवाई है। हिंदुस्‍तान के शिव मोहन, राजेश कुमार और प्रेम चंद के आगे समझौते का जिक्र किया गया है। इनके बारे में ऐसी सूचना मिली है कि इन्‍होंने भी अपना केस फिर से खुलवाने की अर्जी दी है। इनका यह एक सही निर्णय है और ऐसे साथियों के लिए सीख है जो कंपनी द्वारा दिए गए ब्रांडों व कागजों पर हस्‍ताक्षर करके चुपचाप बैठे गए हैं।

साथियों आपको यह समझना होगा कि कोई भी समझौता आपके मजीठिया पाने के रास्‍ते में रोड़ा नहीं बन सकता। इन साथियों को भी मजीठिया के अनुसार पूरा एरियर नहीं मिला है। जैसे ही इन्‍हें कंपनी द्वारा अपने को गुमराह किए जाने का पता चला इन्‍होंने केस फि‍र से खुलवाने की अर्जी दे दी। साथियों यदि आपने कोई समझौता कर लिया है तो चुप न बैठे अपने हक के लिए 17(1) के तहत रिकवरी उपश्रमायुक्‍त कार्यालय में डाले। उन्‍हें आपका पक्ष सुनना ही पड़ेगा और एक्‍ट के अनुसार कार्यवाही करनी पड़ेगी और आपको न्‍याय मिलेगा ही।

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यहां उड़ीसा के एक अखबार कर्मी ने भी केस किया हुआ है जिसका नाम है शिशुपाल खरे, जिसकी कंपनी का नाम है प्रगतिवादी। इसका ब्‍यूरो कार्यालय दिल्‍ली में स्थित है। हमारा उन साथियों से विशेष अनुरोध है कि जिनके अखबारों के ब्‍यूरो कार्यालय दिल्‍ली में हैं, जबकि मुख्‍य कार्यालय अन्‍य राज्‍यों में, वे बिना हिचक के अपने क्‍लेम दिल्‍ली में लगाए उन्‍हें जरुर मजीठिया का हक मिलेगा। शिशुपाल खरे के बारे में हमें जो जानकारी मिली है उसके अनुसार वह लंबे समय से अपने संस्‍थान में ठेका कर्मी के रुप में कार्यरत था। अब उसने नई दिल्ली के उप श्रमायुक्‍त के यहां मजीठिया के अनुसार एरियर (लगभग 16 लाख रुपये) का क्‍लेम भी लगाया है और लंबे समय तक ठेके पर रहने को चुनौती देते हुए मजीठिया से पहले के अपने न्‍यूनतम वेतनमान के जायज हक की मांग के लिए अलग केस लड़ रहा है।

साथियों हमारा आपसे फिर से अनुरोध है कि दूसरों के कंधों पर अपनी हक की लड़ाई न छोड़े और आगे आएं। अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिंदुस्‍तान और अन्‍य अखबारों के कर्मी कैटेगरी के मुद्दे को वकीलों पर छोड़ क्‍लेम लगाएं, क्‍योंकि एक्‍ट से ऊपर वेजबोर्ड की सिफारिशें नहीं हो सकती है। साथियों आपको क्‍लेम लगाने में यदि किसी मदद की जरुरत है तो आप बेहिचक इनसे संपर्क कर सकते हैं-

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शशिकांत सिंह – 09322411335
[email protected]

महेश कुमार – 09873029029
[email protected]

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रविंद्र अग्रवाल
9816103265
[email protected]

बिजय – 09891079085
[email protected]

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राकेश वर्मा
9829266063

अंत में साथियों इस लेख से यदि किसी की भावनाएं आहत हुईं हो तो हम तहेदिल से उससे माफी मांगते हैं, परंतु आज की परिस्थिति में हम जनहित को ध्‍यान में रखते इस लेख को जारी करने से रोक नहीं सके। हमारा मकसद केवल और केवल मजीठिया की लड़ाई को आपके साथ मिलकर उसके अंतिम अंजाम तक पहुंचना है।

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लेखक महेश कुमार से संपर्क 09873029029 या [email protected] के जरिए कर सकते हैं.

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