हिंदुस्तान में सिर्फ़ पत्रकारिता ही ऐसा पेशा है जहां पूरे अधिकार से फ़ोकट में लिया जाता है काम
21वीं सदीं में इलेक्ट्रॉनिक युग के साथ चैनलों की भी भरमार हुई। डिजिटल इस युग में पत्रकारों की तादाद में भी खासा इज़ाफ़ा हुआ। लेकिन साल दर साल पत्रकारो की वकत कम होती चली गयी। सरकार से सवाल तक पूछने से कतराने वाला पत्रकार सरकार बनाने और गिराने तक की हैसियत तक तो ज़रूर पहुंच गया लेकिन उसका वकार दिन ब दिन गिरता ही चला जा रहा है और उसमें यूपी के जिले की पत्रकारों की हालत तो पूछिये ही मत। यहाँ तो चैनल वाले ही जिले के पत्रकारों को डकैत या दलाल से कम नही समझते है यही वजह है कि चैनल काम तो फटकार कर अधिकार स्वरूप कराते है लेकिन रुपये के नाम पर उल्टा वसूल कर लाने का फरमान सुना देते है।
हिंदी भाषीय कोई चैनल आवे उत्तर प्रदेश में जिलों में रखे जाने वालों जिलों के रिपोर्टर से रुपये लेकर उसे रखना अब चैनल का शगल बन गया है। मने आप पत्रकारिता का “प” भी न जानते हो शिक्षा के नाम पर शून्य हो लेकिन जेब में 20 हज़ार है तो समझ लीजिये अब बन गए ब्यूरो चीफ़।
चैनल वालो ने भी अब फंडा बना लिया जिले पर काम करने वालो को रुपया देना बंद कर दिया है बल्कि उनसे विज्ञापन के नाम पर दबाव बनाकर वसूली करवाने का प्रावधान शुरू कर दिया। कुछ चैनल जो रुपया दे रहे हैं वह अपवाद भर है।
इसमें सबसे ज्यादा नुकसान उन लोगों का हुआ जो लंबे वक्त से मीडिया से जुड़े हुए थे। वह ना तो वसूली कर सकते हैं और ना ही कोई ऐसा काम कर सकते हैं जिससे उनका अब गुजर-बसर ही हो सके और फोकट में काम करने वालों की कमी नहीं है।
हालात अगर यही रहे तो जिले की पत्रकारिता के दूरगामी परिणाम बेहद भयावह होंगे क्योंकि पत्रकार खत्म हो जाएंगे और सिर्फ दलाल फील्ड पर नजर आएंगे।
हालांकि तमाम पत्रकारों ने अब फोकट में काम कराने वाले चैनलों से रुखसत होने का फैसला लिया है उनमें से एक मैं भी हूं हालांकि मैं अब यही तक नहीं रुकने वाला बल्कि आगे इस मामले को कोर्ट तक भी ले जाने की तैयारी है जो कि एक पत्रकार का नैतिक कर्तव्य भी है।
फ़ैज़ी खान
पत्रकार
हरदोई
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