Sanjay Tiwari : एक बार गांधी जी भी काशी गये थे. तब जब वे देश के आंदोलन का हिस्सा नहीं हुए थे. इन दिनों वे दक्षिण अफ्रीका में गिरमिटिया आंदोलन को गति दे रहे थे और उसी सिलसिले में समर्थन जुटाने के लिए भारत भ्रमण कर रहे थे. इसी कड़ी में वे काशी भी पहुंचे थे. बाबा विश्वनाथ का आशिर्वाद लेने के बाद बाहर निकले तो एक पंडा आशिर्वाद देने पर अड़ गया. मोहनदास गांधी ने जेब से निकालकर एक आना पकड़ा दिया. पंडा जी को भला एक पैसे से कैसे संतोष होता? आशिर्वाद देने की जगह बुरा भला कहना शुरू कर दिया और पैसा उठाकर जमीन पर पटक दिया.
मोहनदास तो ठहरे मोहनदास. उन्होंने वह एक पैसा उठाकर जेब में रख लिया और आगे बढ़ने को हुए कि पंडा चिल्लाया ‘क्या करता है अधर्मी.’ मोहनदास ने कहा आपको इतनी कम दक्षिणा नहीं चाहिए और मैं इससे ज्यादा दूंगा नहीं. झट पंडे ने पैंतरा बदला, एक तो कम दक्षिणा देकर तू खुद नर्क का भागी बन रहा है. तो क्या मैं भी इंकार करके तेरी तरह नर्क का भागी बन जाऊ. गांधी जी ने वह एक आना पंडे को पकड़ा दिया और वहां से बाहर आ गये.
वेब जर्नलिस्ट संजय तिवारी के फेसबुक वॉल से.