Samarendra Singh : आज सरकार महात्मा गांधी का 150वां जन्मदिन मना रही है. देश भर में जलसे हो रहे हैं. जलसे हिंदुत्ववादी सरकार कर रही है. जिसके पूर्वजों पर गांधी की हत्या का आरोप है. वो ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्या उनका हृदय परिवर्तित हो गया है? क्या गांधी को लेकर उनकी सोच बदल …
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पार्ट (1) : आखिर गोडसे की जमात कब समझेगी कि गांधी और बुद्ध मरा नहीं करते!
Samarendra Singh : मोहनदास करमचंद गांधी को हम एमके गांधी, मिस्टर गांधी, महात्मा गांधी कहें, या बापू और राष्ट्रपिता कहें, या फिर कुछ न कहें इससे उन्हें क्या फर्क पड़ता है? वो तो काफी पहले इस दुनिया से जा चुके है. अब उन्हें प्रेम करना है या नफरत यह हमको तय करना है. देश और …
महात्मा गांधी के बारे में यह सब लिखकर टीवी पत्रकार अभिषेक साबित क्या करना चाहते हैं?
तेजतर्रार टीवी पत्रकार अभिषेक उपाध्याय इन दिनों अपने फेसबुक वॉल पर गांधी जी को लेकर एक सिरीज लिख रहे हैं. इसमें बस गांधीजी के बारे में वो बातें बताई जा रही हैं जो उनकी छवि को नकारात्मकता से भर दे. सवाल है कि अभिषेक के इस तरह से सेलेक्टेड लेखन का मकसद क्या है? हम …
एक राष्ट्र-एक भाषा का समाधान गांधी दर्शन में
भारत विभिन्नताओं में एक एकता के सूत्र से संचालित राष्ट्र है, जहाँ बोली, खानपान, संस्कृति, समाज एवं जातिगत व्यवस्थाओं का जो ताना-बाना बना हुआ है वह अनेकता में एकता के दर्शन करवाता हैं। ऐसे में हिंदी दिवस के दिन विज्ञान भवन से भारत के वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह द्वारा एक राष्ट्र-एक भाषा के महत्व को …
गांधी को जन-जन के दिल से निकालने का ये अंदाज कितना ‘स्वच्छ’ है?
…तो क्या ये समझा जाए कि गांधी को लोगों के दिल से निकालने की रणनीति पर केंद्र सरकार कामयाब हो रही है… ये सवाल इस वजह से परेशान कर रहा है क्योंकि सरकार ने गांधी जयंती पर स्वच्छता अभियान की चोचलेबाज़ी पाल ली है जो कि सिर्फ दो अक्टूबर और प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर ही याद आती है… मज़ेदार बात तो ये है कि सरकार ने गांधी के नाम को गिराने के लिए भी गांधी का ही सहारा लिया और उनको स्वच्छता की श्रद्धांजलि का ढोंग रचा…
अपनी नाकामी छिपाने के लिए गांधी-जगजीवन की निंदा करते हैं दलित!
-इं राजेन्द्र प्रसाद-
आज गाँधी की निंदा और उनके विरुद्ध अपशब्दों का प्रयोग करने वाले दलित नेताओं और उनके युवा अनुयायियों की संख्या बढ़ रही है। वे अपनी सभी समस्याओं के निदान में बाधक पूना-पैक्ट को मानते हैं। कुछ लोग जोर-शोर से ऐसा ही दुष्प्रचारित भी करते हैं। ऐसे लोगों में से अधिकतर पूना-पैक्ट की धाराओं को न तो जानते हैं और न जानने-समझने की चेष्टा करते हैं। उनका एकमात्र काम दलितों के बीच गाँधी की निन्दा करना होता है। आज गाँधी की निन्दा की बजाय गाँधी के समग्र कार्यों की समीक्षा की जानी चाहिए। साथ ही दलित अपने कथनी-करनी का भी आकलन करें। तभी हम गाँधी का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन कर सकते हैं। अन्यथा यह एकतरफा गैर-जिम्मेदाराना वक्तब्यों के अलावा और कुछ नहीं है।
गांधी जी के नग्न स्टैच्यू-विवाद की जांच सात माह बाद शुरू
ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कभी महात्मा गांधी को धोती पहनने पर अर्धनग्न फकीर से संबोधित किया था. लेकिन गुजरात के गांधीनगर में जनवरी 2015 में आयोजित प्रवासी दिवस में गांधीजी की नग्न मूर्तियों के प्रदर्शन को लेकर जो विवाद उठा था अब उसकी जांच सात महीने के बाद प्रारंभ की जा रही है. गौरतलब है कि गांधीनगर के सेक्टर 7 में जांच के आदेश दिए गए हैं और यह जांच भी बार-बार एक सूचना कार्यकर्ता के फरियाद करने पर की जा रही है.
गांधी और नेहरू को सोशल मीडिया पर बदनाम करने की गहरी साजिश का भंडाफोड़
Rajesh Singh Shrinet : फेसबुक पर किस तरह अपने देश और देश के पुराने नेताओं के बदनाम करने की साजिश रची जा रही है, वह इन दो फोटोग्राफ से जाहिर हो जाता है। मेरी अपील है कि इस तरह की साजिश का हिस्सा न बनें। या तो इसका सही जवाब दें या फिर ऐसे गलत फेसबुकिया दोस्तों को अनफ्रेंड कर दें।
गांधी की टेक
भारतीय समाज में पिता की मौजूदगी जितनी जरूरी होती है, शायद उनका नहीं रहना उन्हें और भी जरूरी बना देता है. ऐसे ही हैं हमारे बापू. बापू अर्थात महात्मा गांधी. आज बापू को हमसे बिछड़े बरसों-बरस गुज़र गये लेकिन जैसे जैसे समय गुजरता गया, उनकी जरूरत हमें और ज्यादा महसूस होने लगी. एक आम आदमी के लिये बापू आदर्श की प्रतिमूर्ति बने हुये हैं तो राजनीतिक दल वर्षों से उन्हें अपने अपने लाभ के लिये, अपनी अपनी तरह से उपयोग करते दिखे हैं. अब तो गांधी के नाम की टेक पर सब नाम कमा लेना चाहते हैं. मुझे स्मरण हो आता है कि कोई पांच साल पहले कोई पांचवीं कक्षा की विद्यार्थी ने सूचना के अधिकार के तहत जानना चाहा था कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा किस कानून के तहत दिया गया? बच्ची का यह सवाल चौंकाने वाला था लेकिन तब खबर नहीं थी कि उसने अपने एक बेहूदा सवाल से पूरे समाज को गांधी की एक ऐसी टेक दे दी है जिसे सहारा बनाकर नाम कमाया जा सकता है अथवा विवादों में आकर स्वयं को चर्चा में रखा जा सकता है.
शहीद दिवस के बहाने ‘भगत, गांधी, अंबेडकर और जिन्ना’ पर सुमंत भट्टाचार्य ने छेड़ी गंभीर बहस
‘एक भी दलित चिंतक ने भगत की शहादत को याद नहीं किया’, अपने इन शब्दों के साथ शहीद दिवस के बहाने संक्षिप्ततः अपनी बात रखकर वरिष्ठ पत्रकार सुमंत भट्टाचार्य ने फेसबुक पर ‘भगत, गांधी, अंबेडकर और जिन्ना’ संदर्भित एक गंभीर बहस को मुखर कर दिया। भगत सिंह की शहादत को याद न करने के उल्लेख के साथ उन्होंने लिखा- ”गोडसे को तब भी माफ किया जा सकता है..क्योंकि गांधी संभवतः अपनी पारी खेल चुके थे। पर गांधी को इस बिंदु पर माफ करना भारत के साथ अन्याय होगा। भगत सिंह पर उनकी चुप्पी ने नियति का काम आसान कर दिया, ताकि नियति भारत के भावी नायक को भारत से छीन ले। यहीं आकर मैं गांधी के प्रति दुराग्रह से भर उठता हूं। पर जिन्नाह और अंबेडकर तो हिंसावादी थे..एक मुंबई में गोलबंद होकर मारपीट करते थे, दूसरे डायरेक्ट एक्शन के प्रवर्तक। इनकी चुप्पी पर भी सवाल उठने चाहिए। शाम तक इंतजार के बाद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है, एक भी दलित चिंतक ने भगत की शहादत को याद नहीं किया…..क्यों..?”
उपेक्षा का शिकार हो रहा है गांधी का सत्याग्रह आश्रम
गुजरात के पाटनगर गांधीनगर के महात्मा मंदिर में महात्मा गांधी के हिंद आगमन की शताब्दी प्रवासी भारतीय सम्मेलन के रुप में मनाई जा रही है, लेकिन देश में सत्तारुढ़ पार्टी हो या विपक्षी दल गांधी के नाम पर पिछले कई सालों से राजनीति करने वालों को शायद यह भी नहीं मालूम कि जब महात्मा गांधी अफ्रीका से गुजरात आए थे और 20 मई 1915 को अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना कर देश की आजादी का शंखनाद किया था, वह सत्याग्रह आश्रम उपेक्षा का शिकार हो रहा है. देश में साबरमती आश्रम के बारे में तो सबको मालूम है लेकिन सत्याग्रह की शुरुआत करने वाले गांधीजी के आश्रम को ना केवल कांग्रेस बल्कि देश की सत्तारुढ़ भाजपा सरकार ने भी भुला दिया है यही कारण है कि महात्मा गांधी के हिंद आगमन शताब्दी के आरंभ में और ना ही इन 100 सालों में इस सत्याग्रह आश्रम में अब तक कोई भी कार्यक्रम आयोजित नहीं हुआ.
गांधी जी की अपने बेटे को चिट्ठी : ”मनु ने बताया कि तुमने उससे आठ साल पहले दुष्कर्म किया था”
लंदन। महात्मा गांधी बड़े बेटे हरिलाल के चाल-चलन को लेकर खासे आहत थे। उन्होंने हरि को तीन विस्फोटक पत्र लिखे। जिनकी नीलामी अगले सप्ताह इंग्लैंड में की जाएगी। इन पत्रों में गांधी ने बेटे के व्यवहार पर गहरी चिंता जताई थी। नीलामीकर्ता ‘मुलोक’ को इन तीन पत्रों की नीलामी से 50 हजार पौंड (करीब 49 लाख रुपये) से 60 हजार पौंड (करीब 59 लाख रुपये) प्राप्त होने की उम्मीद है। ये पत्र राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जून, 1935 में लिखे थे।
गांधी जी को जब बनारस के एक पंडे ने काफी भला-बुरा कहा था…
Sanjay Tiwari : एक बार गांधी जी भी काशी गये थे. तब जब वे देश के आंदोलन का हिस्सा नहीं हुए थे. इन दिनों वे दक्षिण अफ्रीका में गिरमिटिया आंदोलन को गति दे रहे थे और उसी सिलसिले में समर्थन जुटाने के लिए भारत भ्रमण कर रहे थे. इसी कड़ी में वे काशी भी पहुंचे थे. बाबा विश्वनाथ का आशिर्वाद लेने के बाद बाहर निकले तो एक पंडा आशिर्वाद देने पर अड़ गया. मोहनदास गांधी ने जेब से निकालकर एक आना पकड़ा दिया. पंडा जी को भला एक पैसे से कैसे संतोष होता? आशिर्वाद देने की जगह बुरा भला कहना शुरू कर दिया और पैसा उठाकर जमीन पर पटक दिया.
सफाई के इस तमाम प्रचार अभियान में सफाईकर्मी ही गायब हैं
आज ही गांधी जी का जन्मदिन है. उनके कामों से और जो भी मतभेद हों पर गांधी जी अपना टॉयलेट अपने बड़े, बहुत बड़े व्यक्तित्व बन जाने तक खुद साफ़ करते थे। आज उन्ही के नाम पर सफाई की बातें हो रही हैं, पर बड़ी सफाई से सफाईकर्मियों के बदहाल जीवन की बातें इसमें बताई ही नहीं जा रही। सफाई के तमाम प्रचार अभियान में सफाईकर्मी का कोई चेहरा नहीं है। ऐसा कैसे हो जाता है! मूल मुद्दा गायब और कास्मेटिक मुद्दा हावी।
हिन्दी अंग्रेजी का स्थान ले तो मुझे अच्छा लगेगा, अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है लेकिन वह राष्ट्रभाषा नहीं हो सकती: महात्मा गांधी
महात्मा गांधी के सपनों के भारत में एक सपना राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को प्रतिष्ठित करने का भी था। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना कोई भी राष्ट्र गूँगा हो जाता है। हिन्दी को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में एक राजनीतिक शख्सियत के रूप में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। महात्मा गांधी की मातृभाषा गुजराती थी और उन्हें अंग्रेजी भाषा का उच्चकोटि का ज्ञान था किंतु सभी भारतीय भाषाओं के प्रति उनके मन में विशिष्ट सम्मान भावना थी। प्रत्येक व्यक्ति अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करे, उसमें कार्य करे किंतु देश में सर्वाधिक बोली जाने वाली हिन्दी भाषा भी वह सीखे, यह उनकी हार्दिक इच्छा थी।