जीएसटी का सच (30) अतिथि देवो भव: के बाद अब हिसाब से लूटो
संजय कुमार सिंह
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जीएसटी पर आज तीसवीं किस्त लिखते हुए कह सकता हूं कि इसे आसान बनाने की कोई कोशिश नहीं की गई लगती है। दूसरे शब्दों में जीएसटी – टैक्स कम, गलती करने और फंसाने का जाल या झंझट ज्यादा लगता है। और तो और, विदेशी पर्यटकों के मामले में भी अतिथि देवो भव: का ख्याल नहीं रखा गया है। देश के लिए विदेशी मुद्रा और रोजगार की अच्छी संभावना बनाने वाले इस उद्योग को कोई रियायत नहीं दी गई है।
पर्यटन उद्योग के लिए जीएसटी की चार दरें हैं – 5%, 12%, 18% और 28%। ये क्रम से दूरसंचार, बीमा, होटल और रेस्त्रां के लिए हैं। यही नहीं, गैर एयरकंडीशन रेस्त्रां के लिए एक दर 12 प्रतिशत की भी है। 18 प्रतिशत शराब परोसने वाले एसी रेस्त्रां के लिए है। पता नहीं, शराब परोसने वाले गैर एसी रेस्त्रां के लिए कोई अलग दर है कि नहीं। टैक्स की यह दर जब विदेशियों पर लागू होनी है तो दूसरे देशों जैसे म्यामार, थाईलैंड, सिंगापुर इंडोनेशिया की टैक्स दर भी जान लीजिए जो 5 से 10 प्रतिशत के बीच ही है। हम 28 प्रतिशत यानी दूसरे देशों के अधिकतम के मुकाबले हमारा अधिकतम तीन गुना ज्यादा है। समूह में किसी पर्यटन एजेंट या फर्म के जरिए भारत घूमने आने वाले पर्यटक को टैक्स की इन अलग दरों से पाला नहीं पड़ेगा लेकिन कोई विदेशी खुद नकद या कार्ड से भुगतान करे तो जो सेवाएं लेगा उसपर टैक्स की अलग-अलग दर सुनकर ही पगला सकता है। टैक्स की भारी दर जो दुख देगी वह अलग।
जीएसटी के तहत 1000 रुपए प्रति दिन किराए वाले होटल / लॉज जीएसटी से मुक्त होंगे जबकि 2000 रुपए प्रति दिन वाले 12 प्रतिशत जीएसटी लेंगे, 2500 से 5000 वाले 18 प्रतिशत लेंगे और 5000 रुपए से ऊपर वाले 28 प्रतिशत जीएसटी लेंगे। अब, दो से 2500 रुपए प्रतिदिन वाले का क्या होगा मैंने पता नहीं किया। हो सकता है ऊपर 2000 की जगह 2500 हो या 2500 की जगह 2000 – हालांकि वह महत्वपूर्ण नहीं है। मैं देख रहा हूं कि मेरी खोज में सरकारी दस्तावेज सामने नहीं आ रहे हैं और जो इधर-उधर से बाते लिखी हुई हैं उनके साथ यह नोट लगा है कि तथ्यों की सत्यता के लिए लेखक जिम्मेदार नहीं है। पाठकों से आग्रह है कि मेरे लिखे को भी मोटी सूचना की तरह पढ़ें और मोटी जानकारी की तरह लें। इनके आधार पर किसी से शर्त ना लगाएं। तथ्य सिर्फ अनुमान और यह बताने के लिए हैं कि इन्हें आसान बनाया जाना चाहिए था।
हाल यह है कि एक देश एक टैक्स के दावे के बीच मनोरंजन कर का विलय सर्विस टैक्स में हो गया है और मनोरंजन पर कुल 28 प्रतिशत जीएसटी है। सिनेमा हॉल के लिए प्रस्तावित टैक्स दर पहले के 40% से 55% की तुलना में कम है पर इससे टिकट की कीमत कम नहीं होगी क्योंकि राज्यों के पास इस पर स्थानीय शुल्क लगाने का अधिकार है। यह सब जानना सुनना परेशान करने और आपको अपनी लाचारी बताने के अलावा कुछ नहीं करता है। दूसरी ओर, नोटबंदी के बाद गोमांस और फिर मांसाहारी भोजन को लकर विवाद, हाईवे पर शराब बेचने की मनाही और फिर पर्यटन मंत्री का कहना कि विदेशी गाय का मांस खाकर आएं और उससे पहले एक अन्य मंत्री द्वारा विदेशी महिलाओं को ड्रेस पहनने के बारे में सीख देना – किसी को भी नाजार या दुखी करने के लिए काफी है। उसपर तुर्रा यह है पांच सितारा होटलों पर 28 प्रतिशत टैक्स।
भारतीय अर्थव्यवस्था में ट्रैवेल एंड टूरिज्म क्षेत्र का अच्छा खासा महत्व है क्योंक यह कई तरह के सामाजिक-आर्थिक लाभ मुहैया कराता है। रोजगार के मौकों के साथ विदेशी मुद्रा का भी यह अच्छा स्रोत है। इसके बावजूद विदेशी पर्यटकों के लिए भारत आने का कोई आकर्षण नहीं है। टैक्स के अलावा कतिपय विनिर्दिष्ट लक्जरी पर अधिकतम 12 प्रतिशत का सेस भी लगाया जा सकता है।
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