आज तक के संपादक रोहित को इतना जहर बोने क्यों दे रहे हैं?

Sanjaya Kumar Singh : एक मशहूर टेलीविजन एंकर के बारे में Dilip Mandal की यह पोस्ट पढ़ने लायक है।

अंग्रेजी अखबार भी खबर की जगह लोरी छापते हैं!

Sanjaya Kumar Singh : कानपुर में पकड़े गए 92 करोड़ रुपए के पुराने नोट वाली खबर का फॉलो अप आज हिन्दुस्तान टाइम्स में भी छपा है। मैं अंग्रेजी अखबारों को हिन्दी वालों के मुकाबले थोड़ा गंभीर मानता हूं और दिल्ली में टाइम्स ऑफ इंडिया के मुकाबले हिन्दुस्तान टाइम्स को। पर ये भी सरकार के भोंपू का ही काम करते हैं।

क्या अमित शाह का इस्तीफा नहीं होना चाहिए?

Sanjay Kumar Singh : सीबीआई जज बीएच लोया की मौत के मामले की स्वतंत्र जांच कराने की याचिका पर जब सुनवाई हो रही है तो क्या भारतीय जनता पार्टी का यह नैतिक दायित्व नहीं है कि वह अपने अध्यक्ष अमित शाह से इस्तीफा मांग ले। जैसा कि कहा जाता है न्याय होना ही नहीं चाहिए, होता हुआ दिखना भी चाहिए। इसी तरह जनता की सेवा का दावा करने वाली पार्टी को क्या न्यूनतम आदर्शों का पालन नहीं करना चाहिए उसपर अमल करते हुए नजर भी आना चाहिए।

नौकरी दिलाने वाले एक नामी पोर्टल ने प्रोफाइल बनाने के लिए इस वरिष्ठ पत्रकार से 5,000 रुपए लिए..

Sanjaya Kumar Singh : चपरासी की नौकरी और विधायक के बेटे की सफलता…  70 साल कुछ नहीं हुआ बनाम चार साल खूब काम हुआ… 2002 में जनसत्ता की नौकरी छोड़ने के बाद मुझ नौकरी ढूंढ़ने या करने की जरूरत ही नहीं महसूस हुई। 2011 में साथी Yashwant Singh ने bhadas4media के लिए बीता साल कैसे गुजरा पर लिखने की अपील की थी। तब मैंने लिखा था, “मेरे लिए बीता साल इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण है कि इस साल एक ज्ञान हुआ और मुझे सबसे ज्यादा खुशी इसी से हुई। अभी तक मैं मानता था कि जितना खर्च हो उतना कमाया जा सकता है। 1987 में नौकरी शुरू करने के बाद से इसी फार्मूले पर चल रहा था। खर्च पहले करता था कमाने की बाद में सोचता था। संयोग से गाड़ी ठीक-ठाक चलती रही। …. पर गुजरे साल लगा कि खर्च बढ़ गया है या पैसे कम आ रहे हैं। हो सकता है ऐसा दुनिया भर में चली मंदी के खत्म होते-होते भी हुआ हो।

जीएसटी के खिलाफ लगातार लिखने वाले पत्रकार संजय कुमार सिंह की फर्म का चालू खाता बैंक ने ब्लॉक किया

जीएसटी की प्रयोगशाला की अपनी अंतिम किस्त लिख चुका हैं. यह 100 वीं किस्त है. इसी दरम्यान पता चला कि एचडीएफसी बैंक ने केवाईसी के चक्कर में (मतलब, जीएसटी जैसा कोई पंजीकरण हो) मेरी फर्म का चालू खाता ब्लॉक कर दिया है जबकि नियमतः मुझे किसी पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है। लेकिन अब आयकर रिटर्न व टीडीएस चालू खाता चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है। फिर भी हमें डिजिटल लेन-देन करना है। अभी उससे निपटना है।

लेखक, पत्रकार, चित्रकार, फ्रीलांसर… सब जीएसटी के दायरे में!

संजय कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

वैसे तो मीडिया संस्थान, अस्पताल और शिक्षा संस्थान अपने मूल कार्यों के लिए जीएसटी से मुक्त हैं पर ज्यादातर मामलों में अन्य संबंधित सेवाएं देने या प्राप्त करने के लिए जीएसटी पंजीकरण आवश्यक है। बहुत सारे लेखक पत्रकार अभी तक यह माने बैठे हैं कि जीएसटी उनके लिए नहीं है। पर है और बहुत स्पष्ट रूप से है। असल में आरएनआई से पंजीकृत मीडिया संस्थान जीएसटी में नहीं हैं और अखबार या पत्रिकाओं (उत्पाद) पर जीएसटी नहीं है इसलिए जीएसटी की आंच फ्रीलांसर्स तक पहुंचने में अभी समय लगेगा। मेरे ज्यादातर ग्राहक कॉरपोरेट और पीआर एजेंसी हैं इसलिए मुझे सबसे पहले काम मिलना बंद हो गया। जुलाई में जो काम हुआ उसका पर्चेज ऑर्डर अब आना शुरू हुआ है। और काम नहीं आ रहा है सो अलग। संक्षेप में यही समझिए कि गाड़ी पूरी तरह पटरी से उतर चुकी है।

पत्रकारिता फील्ड में आने वालों, इस किताब को पढ़ लो… फिर न कहना- ‘ये कहां फंस गए हम!’

पत्रकारिता की दुनिया को ‘संजय’ की नजर से देखने-समझने के लिए ‘पत्रकारिता – जो मैंने देखा, जाना, समझा’ को पढें…

वरिष्ठ पत्रकार और उद्यमी संजय कुमार सिंह की पुस्तक “पत्रकारिता – जो मैंने देखा, जाना, समझा“ उन तमाम लोगों के लिए आंख खोलने वाली है, जो आज भी पत्रकारों में बाबूराव विष्णु पड़ारकर या गणेश शंकर विद्यार्थी देखते हैं और जो ग्लैमर से प्रभावित होकर पत्रकारिता को पेशा बनाना चाहते हैं। यह सच है कि चीजें जैसी दिखाई पड़ती हैं, उनको वैसी ही वही मान ले सकता है जिसके पास अंतर्दृष्टि नहीं होगी। पर जिसके पास अंतर्दृष्टि है वह चीजों को उसके अंतिम छोर तक देखता है। चीजें जैसी दिखती हैं, वह उसे उसी रूप में कदापि स्वीकार नहीं करता। चिंतन-मनन करता है और अपनी अंतर्दृष्टि से सत्य की तलाश करता है।

क्या एनडीटीवी पर नियंत्रण के लिए कॉरपोरेट तख्तापलट की कोशिश की जा रही है?

Sanjaya Kumar Singh : क्या एनडीटीवी पर नियंत्रण के लिए क्या कॉरपोरेट तख्ता पलट की कोशिश की जा रही है? शुक्रवार की सुबह एनडीटीवी के बिक जाने की खबर पढ़कर मुझे याद आया कि प्रणय राय को अगर कंपनी बेचनी ही होती तो वे आईसीआईसीआई बैंक के 48 करोड़ रुपए के लिए पड़े सीबीआई के छापे के बाद प्रेस कांफ्रेंस क्यों करते। क्यों कहते कि झुकेंगे नहीं। मुझे इंडियन एक्सप्रेस की खबर पर यकीन नहीं हुआ।

जीएसटी का सच (पार्ट 25 से 36 तक) : छोटे अखबारों पर डीएवीपी के जरिए जीएसटी की मार

जीएसटी से बेरोजगारी की कगार पर खड़े एक पत्रकार की डायरी

जीएसटी का सच (25) सरकार की डीएवीपी पॉलिसी 2016 और जीएसटी के कारण 90 फीसदी अखबार बंद होने की कगार पर हैं

संजय कुमार सिंह
sanjaya_singh@hotmail.com

जीएसटी से छोटे अखबार भी परेशान हैं। सरकारी विज्ञापनों पर आश्रित इन अखबारों को डीएवीपी (विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय) के जरिए विज्ञापन दिए जाते हैं। केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद डीएवीपी ने विज्ञापन जारी करने के नियमों में सख्ती लाई है और इससे कई प्रकाशन पहले से मुश्किल में हैं। अब उनपर जीएसटी का डंडा भी चल रहा है। खास बात यह है कि डीएवीपी 20 लाख से कम टर्नओवर वाले प्रकाशकों पर भी जीएसटी पंजीकरण कराने के लिए दबाव डाल रहा है। डीएवीपी का कहना है कि बिना जीएसटी में पंजीकृत हुए सरकारी विज्ञापन उपलब्ध नहीं कराया जा सकता है। दूसरी ओर, एक छोटी पत्रिका के संपादक के मुताबिक जनवरी 2017 से अब तक मात्र 250 सेंटीमीटर विज्ञापन दिया गया है, जिसकी कीमत सर्कुलेशन के आधार पर 1500 सौ से 5000 रुपये है। ऐसे में डीएवीपी जीएसटी को लेकर छोटे अखबारों से क्यों जबरदस्ती कर रहा है यह प्रकाशकों की समझ से बाहर है। वो भी तब जब उनका टर्नओवर ही ढाई-तीन लाख से दस-बारह लाख तक ही है, और इसकी सीए ऑडिट, वार्षिक विवरणी हर साल ऑनलाइन और फिजिकली डीएवीपी को भेजी जाती है।

‘कॉमेडी नाइट्स विद कपिल’ वाले कीकू शारदा की गिरफ्तारी बाबा राम रहीम की ताकत दिखाने के लिए हुई थी!

Sanjaya Kumar Singh : क्या ये सच नहीं है कि कीकू शारदा की गिरफ्तारी तब बाबा राम रहीम की ताकत बताने के लिए की गई थी… धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की शिकायत पर टीवी अभिनेता कीकू शारदा के खिलाफ कार्रवाई करने वाली पुलिस को क्या यह पता नहीं था कि गुरमीत सिंह पर बलात्कार के आरोप हैं और उसकी जांच चल रही है। पुलिस जब बलात्कार के मामलों में कार्रवाई नहीं करती है और धार्मिक आस्था भड़काने की शिकायत पर कार्रवाई करेगी तो भक्त पगलाएंगे ही। जांच होनी चाहिए कि पुलिस ने इस मामले में कार्रवाई किसके कहने पर की? हरियाणा पुलिस जब कीकू को गिरफ्तार कर मुंबई से ले आई थी तब स्थानीय मीडिया का काम था कि वह याद दिलाती कि बाबा बलात्कार के मामले में अभियुक्त है और पुलिस की फुर्ती असाधारण है। अगर मीडिया ने अपना यह मामूली सा काम किया होता और सरकार ने इस घटना से सीख ली होती तो पुलिस को भी जान रही होती।

रजत शर्मा के सिर पर बालों की खेती अच्छी हो गई है!

Sanjaya Kumar Singh : इंडिया टीवी पर आप की अदालत में सोनू निगम थे। सोनू निगम के कारण आज मोदी वाले एपिसोड के बाद रजत शर्मा को देखा। बालों की खेती अच्छी हो गई है। पर फिलहाल मुद्दा यह है कि एक सवाल के जवाब में सोनू ने कहा कि मैं भिखारी बनकर यह देखना समझना चाहता था कि बिना प्रचार, ब्रांडिंग और माइक आदि के सिर्फ मेरी आवाज का क्या महत्व है। और सत्तर साल के एक भिखारी के रूप में मैंने महसूस किया कि मेरी आवाज वही कोई 12-14 रुपए की है जो उस दिन उसे मिले थे। जिसे सोनू निगम ने फ्रेम करवाकर ऑफिस में रखा है। सोनू ने स्पष्ट किया कि आदमी पर सिर्फ उसकी योग्यता का नहीं और भी बहुत सारी चीजों का असर होता है।

भाजपा के पक्ष में प्रायोजित तरीके से लिखने वाले प्रदीप सिंह कोई अकेले पत्रकार नहीं हैं

संजय कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

Sanjaya Kumar Singh : चुनाव जीतने की भाजपाई चालें, मीडिया और मीडिया वाले… उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपने सारे घोड़े खोल दिए हैं। भक्त, सेवक, कार्यकर्ता, प्रचारक सब अपनी सेवा भक्ति-भाव से मुहैया करा रहे हैं। इसमें ना कुछ बुरा है ना गलत। बस मीडिया और मीडिया वालों की भूमिका देखने लायक है। नए और मीडिया को बाहर से देखने वालों को शायद स्थिति की गंभीरता समझ न आए पर जिस ढंग से पत्रकारों का स्वयंसेवक दल भाजपा के पक्ष में लगा हुआ है वह देश के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि भाजपा एक सांप्रादियक पार्टी है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था का पालन मजबूरी में ही करती है।

घटिया और लचर है प्रधानमंत्री का मीडिया मैनेजमेंट

Sanjaya Kumar Singh : घटिया और लचर है प्रधानमंत्री का मीडिया मैनेजमेंट… खादी एंड विलेज इंडस्ट्रीज कमीशन की डायरी और कैलेंडर पर महात्मा गांधी की फोटो हटाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फोटो लगाए जाने के सवाल पर भक्त मीडिया ने पता नहीं अधिकारियों की इच्छा या आदेश पर या अपने स्तर पर ही नया पैंतरा लिया है। और, इस मामले में प्रधानमंत्री की छवि को हो सकने वाले नुकसान को धोने की कोशिश है। तर्क वही कि फोटो के उपयोग से पहले प्रधानमंत्री कार्यालय से अनुमति नहीं ली गई थी। यहां, यह खबर जब पहली बार आई थी तो आधिकारिक तौर पर क्या कहा गया था, उल्लेखनीय है। इंडियन एक्सप्रेस की साइट पर मूल खबर के साथ पीएमओ की प्रतिक्रिया भी है और इसका उल्लेख शीर्षक में ही है, “विवाद अनावश्यक है”।

अपनी रिपोर्टर पूजा की आड़ क्यों ले रहे हो सुधीर चौधरी, साफ कहो नैतिक जिम्मेदारी मेरी है

Sanjaya Kumar Singh : गैर-जिम्मेदार रिपोर्टिंग पर एफआईआर हुई तो पढ़िए सुधीर चौधरी का बचाव। संपादक जी कह रहे हैं कि रिपोर्टर पूजा मेहता सिर्फ 25 साल की है। पूजा को ममता बनर्जी की असहिष्णुता झेलना पड़ रहा है जबकि पूजा अपने संपादक की नालायकी झेल रही है। ज़ी न्यूज संतुलित खबरें कर रहा होता तो खिलाफ खबरों पर भी एफआईआर नहीं होती है और संपादकी झाड़ने वाले मौका मिलते ही फंसा दिए जाते हैं – ये कौन नहीं जानता है। पूजा नहीं जानती होगी सुधीर चौधरी को तो पता ही है। अब पूजा की आड़ क्यों ले रहे हो। कहो, नैतिक जिम्मेदारी मेरी है। पूजा का नाम एफआईआर से हटा दिया जाए। पूजा की आड़ में खुद बचने का रास्ता क्यों खोज रहे हो।

मोदी के पीएम पद पर बने रहते हुए सबूत कैसे जुटाए जाएंगे माई लॉर्ड!

Sanjaya Kumar Singh : मामला पर्याप्त सबूत होने या न होने का नहीं है… मामला देश की सर्वोच्च अदालत में है और बड़े-बड़े लोग जुड़े हैं। मेरी कोई औकात नहीं कि इस मामले में टिप्पणी करूं पर जैन हवाला मामले को अच्छी तरह फॉलो करने के अपने अनुभव से कह सकता हूं कि सुप्रीम कोर्ट की चिन्ता जायज है। लेकिन यहां मामला पर्याप्त सबूत होने या न होने का नहीं है। मामला ठीक से जांच कराए जाने का है।