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हलाल प्रमाणन पर प्रतिबंध के मायने, कारोबार-व्यापार तो प्रभावित होगा ही

संजय कुमार सिंह

आज के अखबारों में एक चौंकाने वाली खबर है, उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में हलाल प्रमाणित उत्पाद पर प्रतिबंध लगाया, सिर्फ निर्यात अपवाद है। सरकार ने प्रतिबंध लगाया है तो उसके अपने कारण हैं और मैं उन पर नहीं जाउंगा। मैं इस खबर के महत्व और इस कारण इससे संबंधित तथ्य बताना चाहूंगा जो आज के अखबारों में प्रमुखता से नहीं मिले। मेरा मानना है कि कोई भी प्रमाणन गैर कानूनी नहीं हो सकता है जबकि एक वर्ग के लिए जरूरी हो सकता है। उदाहरण के लिए वाद-विवाद प्रतियोगिता में अच्छा करना वाला ऐसे विषय पर अच्छा बोल सकता है जो सरकार को पसंद नहीं हो या सरकार के खिलाफ हो। इसके लिए प्रतियोगिता पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा।  

प्रतियोगिता आयोजित करने वाला अच्छा बोलने वाले को पुरस्कृत या प्रमाणित कर सकता है और इसका मतलब यह नहीं हुआ कि इस प्रमाणपत्र की किसी को जरूरत नहीं है, ऐसी प्रतियोगिता आयोजित करना सरकार का विरोध है या जो विजयी हुआ वह सरकार का विरोधी है। इसके बावजूद प्रमाणन के अपने महत्व हैं और उसे गैर जरूरी नहीं कहा जा सकता है। उससे कुछ भेदभाव होता हो तब भी। इसके अलावा, कहा यह भी जाता है कि प्रमाणन एजेंसियां प्राप्त धन का उपयोग आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए कर सकती है। लेकिन उसके लिए कानून व उपाय हैं और उसपर दुनिया भर की नजर है।  

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इंडियन एक्सप्रेस, हिन्दुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया में आज यह खबर पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। मेरा मानना है कि यह कारोबार-व्यापार पर असर करने वाला निर्णय है और इस आदेश भर से तत्काल लाखों के उत्पाद गैर कानूनी हो गये हैं जबकि पैकेट भर बदलने से ठीक हो जायेंगे। इसे इस रूप में भी देखा जाना चाहिये कि यह प्रतिबंध अचानक लगाया गया है और प्रमाणन करने वाली एजेंसियों को भी नामित किया गया है। इसलिए एजेंसियां यह काम नहीं कर पायेंगी और एक ऐसे काम के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है जो जरूरी है या अपराध नहीं है। फैसला होने तक स्थिति मुश्किल वाली रहेगी सो अलग। मैं नहीं जानता किन कारणों से इस मामले को इतना जरूरी और द्रुत निर्णय वाला माना गया। हालांकि, प्रतिबंध लगाने के कारण खबर में बताये गये हैं पर हम जानते हैं कि इससे महत्वपूर्ण कई मामलों पर कार्रवाई नहीं होती है और वर्षों से लंबित हैं। पर वह अलग मुद्दा है।

फिलहाल तो यही मानिये कि हलाल प्रमाणन से उपभोक्ताओं का वर्ग उत्पाद की गुणवत्ता को लेकर आश्वस्त होता है तो इसे बंद करना क्यों जरूरी है। वैसे भी हमारे यहां पूजा के सामानों पर तो लिखा ही होता है कि यह पूजा का सामान है। यही नहीं, पूजा के घी पर लिखा होता है कि खाने लायक नहीं है। ऐसे में पूजा के उत्पादों का प्रमाणन और गंगा जल 300 रुपये लीटर से ऊपर बेचा जाना, इस आधार पर उसपर जीएसटी नहीं लिया जाना – सब हो रहा है। ऐसे में हलाल प्रमाणित उत्पादों के मामले में जल्दबाजी में लिया गया निर्णय न जनहित में है और ना व्यापार-कारोबार हित में। अखबारों की खबरों में यह सब नहीं है। आइये इस बहाने इस मुद्दे को समझने की कोशिश करते हैं। इस विषय पर मैं फेसबुक पर लिखता रहा हूं और कुछ बाते उनमें हैं या वहीं से ली गई हैं।

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इसमें सबसे पहले देखिये – एक भोला सा सवाल, ‘बिना हलाल के हलाल प्रमाणीकरण कैसे होगा?’ जवाब में मेरा सवाल है, ‘आईएसओ 9001 प्रमाणन कैसे होता होगा?’ या भारत में बहुप्रचारित और पुरस्कार के रूप में बताये जाने वाले तमाम अन्य प्रमाणन पर कभी किसी ने ऐसा भोला सवाल किया? यह सवाल इसलिए कि मांस के लिए हलाल जानवरों के वध की एक विशेष धर्म के लोगों की प्रक्रिया है। दूसरे धर्म (बहुमत) के लोग जिस प्रक्रिया का पालन करते हैं उसे झटका कहा जाता है। ऐसे में तथ्य यह है कि हलाल प्रमाणन करने वाली एक एजेंसी होती है जो दूसरी ऐसी एजेंसी जैसी ही होती होगी। अभी वह मुद्दा नहीं है। तथ्य यह है कि हलाल प्रमाणन चावल, आटा, दाल, कॉस्मेटिक जैसी वस्तुओं का भी होता है और इसीलिए ऊपर वह भोला सवाल है।

भारत में इस विवाद को प्रचार मैकडोनल्ड्स के यह कहने से मिला था कि उसके सभी रेस्त्रां हलाल प्रमाणित हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि वह हलाल मटन का उपयोग करता है। हलाल दरअसल एक प्रमाणन है जो एक अलग एजेंसी देती है और ग्राहकों का एक बड़ा वर्ग इस प्रमाणन की मांग करता है या इसपर यकीन करता है। इसलिए कारोबार करने वालों की मजबूरी है कि वे हलाल प्रमाणित हों। यह आईएसआई या आईएसओ 9001 प्रमाणित होने की ही तरह है। हालांकि मैकडोनल्ड्स का मामला थोड़ा अलग है। आइए उसे भी जान लें। पुरानी खबरों के अनुसार 22 अगस्त 2019 को किसी ने ट्वीट कर मैकडोनल्ड्स इंडिया से पूछा कि क्या मैकडोनल्ड्स इंडिया हलाल प्रमाणित है?

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मैकडोनल्ड्स ने इसका दवाब ट्वीट के जरिए ही दो हिस्सों में दिया। दैनिक भास्कर ने इसका हिन्दी अनुवाद छापा था, “शख्स को जवाब देते हुए कंपनी ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, ‘वक्त निकालकर मैक्डोनल्ड इंडिया से संपर्क करने के लिए धन्यवाद। आपके सवाल का जवाब देने के लिए मिले इस मौके से हम बेहद खुश हैं। सभी रेस्टोरेंट्स में हम जो मीट इस्तेमाल करते हैं, वो उच्चतम गुणवत्ता वाला होता है और एचएसीसीपी सर्टिफिकेट रखने वाले सरकारी मान्यता प्राप्त आपूर्तिकर्ताओं से लिया जाता है।“

दूसरे हिस्से में लिखा था, “हमारे सभी रेस्टोरेंट्स हलाल सर्टिफिकेट्स प्राप्त हैं। आप अपनी संतुष्टि और पुष्टि के लिए संबंधित रेस्टोरेंट मैनेजर से प्रमाण पत्र दिखाने के लिए कह सकते हैं।” (अखबार में दोनों ट्वीट के स्क्रीन शॉट हैं। इनमें से एक को लोग दिखाकर कहते हैं कि मैकडोनल्ड्स हलाल मीट का उपयोग करता है जबकि लिखा हलाल प्रमाणन के लिए गया है और संभवतः इसलिए कि प्रश्नकर्ता मुस्लिम लगता/लगती है। पहले हिस्से में साफ लिखा है कि मांस एचएसीसीपी प्रमाणित होता है। हलाल प्रमाणित नहीं। आप इसका जो मतलब लगाइए, पर तथ्य यही है कि मैक्डोनल्ड्स ने हलाल प्रमाणित मांस के उपयोग की बात नहीं कही है बल्कि अपने रेस्त्रां को हलाल प्रमाणित होने का दावा किया है और दोनों बातों में भारी अंतर है। अब नए आदेश के बाद मैकडोनल्ड्स के बारे में सोचिये पर अभी वह मुद्दा नहीं है।

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अरबी में हलाल शब्द का मतलब ‘अनुमति’ है और हलाल सर्टिफिकेशन के मायने ऐसे प्रॉडक्ट से है, जिसे बनाने में इस्लामिक कानून को पूरी तरह माना गया हो। 3.2 लाख करोड़ डॉलर के ग्लोबल हलाल मार्केट में भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 2 फीसदी है। देश में हलाल कॉस्मेटिक्स का चलन शुरू ही हुआ है और अभी इस इंडस्ट्री का साइज 10 अरब डॉलर है (पुराना आंकड़ा है)। हलाल पर विवाद 2014-15 में गुजरात से शुरू हुआ था। फिर भी मेरा मानना है कि भारत में अगर हलाल प्रमाणन दिये-लिये जा रहे थे, भारतीय कंपनियां ऐसा प्रमाणन ले रही थीं तो भारत सरकार की जानकारी में हो रहा होगा और गलत नहीं होगा। फिर भी 2015 की ही एक खबर में कहा गया था, भारत में ‘हलाल’ शब्द का मतलब मीट या मीट प्रॉडक्ट्स से लगाया जाते हैं, लेकिन देश के कई पर्सनल केयर ब्रांड्स अपने प्रॉडक्ट्स के लिए हलाल सर्टिफिकेशन लेने में जुटे हैं। इस सर्टिफिकेशन का मतलब है कि उस खास प्रॉडक्ट को बनाने में किसी जानवर, केमिकल्स या अल्कोहल का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

प्रमाणन का महत्व इतना है कि आईटीसी, हल्दीराम को तो छोड़िए बाबा रामदेव का पतंजलि ब्रांड भी हलाल प्रमाणित है। एक खबर के अनुसार, पतंजलि ने हलाल प्रमाणपत्र अरब देशों में निर्यात के लिए प्राप्त किया है। कहने की जरूरत नहीं है कि उपभोक्ताओं के एक वर्ग में ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ रही है, जिसे बनाने में जानवरों के साथ कोई बदसलूकी नहीं की गई हो और जो पूरी तरह सुरक्षित हो। कॉस्मेटिक कंपनियों में इबा, इमामी, केविनकेयर, तेजस नेचरोपैथी, इंडस कॉस्मेटिकल्स, माजा हेल्थकेयर और वीकेयर ने अपने कई प्रॉडक्ट्स के लिए हलाल सर्टिफकेशन लिया है। हलाल सर्टिफिकेशन के तहत बनने वाले प्रॉडक्ट्स में एनिमल फैट या कीड़ों के रंग के अलावा दूध से बनी चीजों और बीवैक्स का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसके साथ ही वे इन कॉस्मेटिक की टेस्टिंग जानवरों पर नहीं कर सकते हैं। यानी जो प्रॉडक्ट्स हलाल सर्टिफिकेशन के तहत बनते हैं वो पूरी तरह शाकाहारी होते हैं। इसके बावजूद सिर्फ सर्टिफिकेशन का नाम हलाल होने से इसे मुसलमानों के मतलब का कहा जाता रहा है और अब तो डबल इंजन वाले उत्तर प्रदेश में इसपर प्रतिबंध लग गया।

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाल मजदूरी के खिलाफ ऐसा अभियान चल चुका है जब सामान खरीदने वाले इस बात पर जोर देते थे कि उत्पादन के निर्माण में किसी भी स्तर पर बाल श्रम का उपयोग नहीं हुआ है। हलाल प्रमाणन का यह अभियान पशु क्रूरता का खिलाफ है पर चूंकि यह नाम मांस के लिए जानवरों को काटने की मुसलमानों की एक विधि से मिलता है और शायद कुछ अन्य कारणों से भी इसे मुसलमानों से जोड़ दिया गया है जबकि हलाल उत्पाद का संबंध शुद्धता या पशु क्रूरता से मुक्त होना है। देश की हलाल सर्टिफाइंग बॉडी हलाल इंडिया के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर मोहम्मद जिन्ना ने कहा था, ‘हलाल सर्टिफिकेशन का मतलब है कि प्रॉडक्ट बनाने में क्लीन सप्लाई चेन और कम्प्लायंस का पूरा ध्यान रखा गया है, जिसमें सोर्सिंग से लेकर ट्रेड तक शामिल है। इस कॉन्सेप्ट के बारे में जागरूकता बढ़ने के बाद हम देख रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा कंपनियां हलाल सर्टिफिकेशन ले रही हैं।’ उम्मीद है अब पाठकों को समझ में आ जाएगा कि आटा, नमक या सत्तू क्यों हलाल प्रमाणित है और यह भी कि बिना हलाल किया हलाल प्रामाणित का सर्टिफिकेट कैसे बनता है। लेकिन प्रतिबंध की आज छपी खबर बताती है कि ऐसा हुआ नहीं।

कहने की जरूरत नहीं है कि भारत में हलाल प्रमाणन के खिलाफ लंबे समय तक अभियान चला है। उसके बारे में कार्रवाई की गुंजाइश ही नहीं रही और मेरे जैसे लोगों के लिखने की परवाह भी नहीं हुई। अब जो हुआ है वह इसी सब का असर है।

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