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दिल्ली

हंस की वार्षिक संगोष्ठी 31 जुलाई को : विषय- ‘वैकल्पिक राजनीति की तलाश’

हर बार की तरह इस बार भी प्रेमचंद जयंती के अवसर पर 31 जुलाई को हंस पत्रिका द्वारा वार्षिक संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है. इस बार का विषय है- ‘वैकल्पिक राजनीति की तलाश’. पिछले वर्षों के दौरान मुख्यधारा की राजनीति के प्रति आम लोगों में निराशा का एक व्यापक माहौल सहज ही देखा जाने लगा है. यहाँ तक कि अल्पसंख्यक-पिछड़ा-दलित एजेंडे पर एक समय में काफी मुखर रहे स्वर भी राजनीतिक जड़ता या अवसरवाद के घनचक्कर में शामिल दिखाई देने लगे हैं. ऐसे में वास्तविक मुद्दों और हाशिए पर छूटे समुदायों की बाबत परिदृश्य में वास्तविक बदलाव कैसे आए; विभिन्न विषयों पर सक्रिय अलग-अलग विचारधाराओं के लोग इस बारे में क्या अनुभव रखते हैं, इन्हीं सब पर इस बार की संगोष्ठी में बात की जाएगी. वक्ता होंगे- अरुणा राय, योगेन्द्र यादव, जगमती, डीपी त्रिपाठी, मुकुल केशवन.

<p>हर बार की तरह इस बार भी प्रेमचंद जयंती के अवसर पर 31 जुलाई को हंस पत्रिका द्वारा वार्षिक संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है. इस बार का विषय है- 'वैकल्पिक राजनीति की तलाश'. पिछले वर्षों के दौरान मुख्यधारा की राजनीति के प्रति आम लोगों में निराशा का एक व्यापक माहौल सहज ही देखा जाने लगा है. यहाँ तक कि अल्पसंख्यक-पिछड़ा-दलित एजेंडे पर एक समय में काफी मुखर रहे स्वर भी राजनीतिक जड़ता या अवसरवाद के घनचक्कर में शामिल दिखाई देने लगे हैं. ऐसे में वास्तविक मुद्दों और हाशिए पर छूटे समुदायों की बाबत परिदृश्य में वास्तविक बदलाव कैसे आए; विभिन्न विषयों पर सक्रिय अलग-अलग विचारधाराओं के लोग इस बारे में क्या अनुभव रखते हैं, इन्हीं सब पर इस बार की संगोष्ठी में बात की जाएगी. वक्ता होंगे- अरुणा राय, योगेन्द्र यादव, जगमती, डीपी त्रिपाठी, मुकुल केशवन.</p>

हर बार की तरह इस बार भी प्रेमचंद जयंती के अवसर पर 31 जुलाई को हंस पत्रिका द्वारा वार्षिक संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है. इस बार का विषय है- ‘वैकल्पिक राजनीति की तलाश’. पिछले वर्षों के दौरान मुख्यधारा की राजनीति के प्रति आम लोगों में निराशा का एक व्यापक माहौल सहज ही देखा जाने लगा है. यहाँ तक कि अल्पसंख्यक-पिछड़ा-दलित एजेंडे पर एक समय में काफी मुखर रहे स्वर भी राजनीतिक जड़ता या अवसरवाद के घनचक्कर में शामिल दिखाई देने लगे हैं. ऐसे में वास्तविक मुद्दों और हाशिए पर छूटे समुदायों की बाबत परिदृश्य में वास्तविक बदलाव कैसे आए; विभिन्न विषयों पर सक्रिय अलग-अलग विचारधाराओं के लोग इस बारे में क्या अनुभव रखते हैं, इन्हीं सब पर इस बार की संगोष्ठी में बात की जाएगी. वक्ता होंगे- अरुणा राय, योगेन्द्र यादव, जगमती, डीपी त्रिपाठी, मुकुल केशवन.

इस बार की संगोष्ठी पिछले 29 वर्षों की निरंतरता में पहली होगी, जिसमें राजेन्द्र यादव हमारे बीच नहीं होंगे. 28 साल पहले हंस की स्थापना के वक्त से ही अपने वक्त के अहम मुद्दों को उन्होंने अबाध चली आई इस संगोष्ठी में स्वर दिया. साहित्यिक पत्रिका के रूप में हंस की निरंतरता की चर्चा अक्सर होती है, लेकिन इस सालाना संगोष्ठी की नियमितता को भी हिंदी की विचारशीलता में एक महत्त्वपूर्ण घटना के तौर पर देखा जाना चाहिए. राजेन्द्र यादव की अनुपस्थिति में भी गोष्ठी की निरंतरता बनी रहे और वृहत्तर हिंदी समाज की भागीदारी इसमें उसी तरह हो यही आयोजकों की अपेक्षा है. संगोष्ठी 31 जुलाई को शाम पाँच बजे ऐवाने गालिब सभागार (माता सुंदरी रोड, बाल भवन के पीछे) में होगी.

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