Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

‘हाय ईसाई-हाय ईसाई’ !

संघ प्रमुख मोहन भागवत इन दिनों ”हाय ईसाई-हाय ईसाई” के दर्द से पीड़ितहैं। उनके दर्द की दवा भारत के किसी धर्म में नहीं है । मोहन भागवत की खूबी यह हैकि वे निजीतौर पर ”हाय ईसाई” की पीड़ा से परेशान नहीं है वे सांगठनिक तौर पर परेशान हैं !राजनीतिकतौर पर परेशान हैं ! ”हाय ईसाई” धीमा बुखार है। जो भागवतियोंको बारह महीने रहता है ! कभी-कभी पारा कुछ ज्यादा चढ़ जाता है !  खासकर उस समय पारा ज्यादा चढ़ जाता है जब वे ईसाईयों को गरीबों की सेवा करते देखते हैं ,स्कूल चलाते देखते हैं ।अस्पताल चलाते देखते हैं। आम लोगों के घरों में ईसा मसीह की तस्वीर देखते हैं अथवा किसी ईसाई संत को देखते हैं ।

<p>संघ प्रमुख मोहन भागवत इन दिनों ''हाय ईसाई-हाय ईसाई'' के दर्द से पीड़ितहैं। उनके दर्द की दवा भारत के किसी धर्म में नहीं है । मोहन भागवत की खूबी यह हैकि वे निजीतौर पर ''हाय ईसाई'' की पीड़ा से परेशान नहीं है वे सांगठनिक तौर पर परेशान हैं !राजनीतिकतौर पर परेशान हैं ! ''हाय ईसाई'' धीमा बुखार है। जो भागवतियोंको बारह महीने रहता है ! कभी-कभी पारा कुछ ज्यादा चढ़ जाता है !  खासकर उस समय पारा ज्यादा चढ़ जाता है जब वे ईसाईयों को गरीबों की सेवा करते देखते हैं ,स्कूल चलाते देखते हैं ।अस्पताल चलाते देखते हैं। आम लोगों के घरों में ईसा मसीह की तस्वीर देखते हैं अथवा किसी ईसाई संत को देखते हैं ।</p>

संघ प्रमुख मोहन भागवत इन दिनों ”हाय ईसाई-हाय ईसाई” के दर्द से पीड़ितहैं। उनके दर्द की दवा भारत के किसी धर्म में नहीं है । मोहन भागवत की खूबी यह हैकि वे निजीतौर पर ”हाय ईसाई” की पीड़ा से परेशान नहीं है वे सांगठनिक तौर पर परेशान हैं !राजनीतिकतौर पर परेशान हैं ! ”हाय ईसाई” धीमा बुखार है। जो भागवतियोंको बारह महीने रहता है ! कभी-कभी पारा कुछ ज्यादा चढ़ जाता है !  खासकर उस समय पारा ज्यादा चढ़ जाता है जब वे ईसाईयों को गरीबों की सेवा करते देखते हैं ,स्कूल चलाते देखते हैं ।अस्पताल चलाते देखते हैं। आम लोगों के घरों में ईसा मसीह की तस्वीर देखते हैं अथवा किसी ईसाई संत को देखते हैं ।

कोढ़ियों की सेवा या अति गरीबों की सेवा का कामसंघ भी कर सकता है उसे किसने रोका है, उन्होंने यह काम क्यों नहीं किया ?  बतर्जमोहन भागवत, देश तो हिन्दुओं का है ! फिर दुखी-असहाय हिन्दुओं को ये संघी लोग मदद क्यों नहीं करते ? क्यों ईसाई मिशनरी के लोग ही यह काम करते हैं ? क्या हमें लज्जा नहीं आती कि देश हमारा है और सेवा बाहर से आया धर्म और व्यक्ति कर रहे हैं । हमें हिन्दूधर्म के मठाधीशों की अमानवीय, अकर्मण्य और संवेदनहीन मनोदशाओं को आलोचनात्मक नजरिए से देखना चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

हमें सवाल खड़े करने चाहिए कि हिन्दूधर्म के ठेकेदारों ने अति-गरीबों की उपेक्षा क्यों की ? आम जनता में बढ़ती गरीबी-अशिक्षा-बीमारियों की बाढ़ से धर्म के ठेकेदारों के दिल क्यों नहीं पसीजे ? शंकराचार्य सेलेकर संघ तक सभी का यह दायित्व बनता है कि वे देस में गरीबों की निःशुल्क चिकित्सा व्यवस्था कराएं, हिन्दू कारपोरेट घरानों से कहें कि हिन्दुओं के हितार्थ धन दें ! लेकिन अफसोस है कि आज तक संघ ने हिन्दुओं की मुफ्त चिकित्सा का कोई बड़ा प्रकल्प  अपने हाथ में नहीं लिया ? कोढ़ियों की मुक्ति का कोई बड़ा हिन्दू नायक पैदा नहीं किया! किसने रोका था संघ को अति गरीबों की सेवा करने से । किसने रोका था गरीबों के लिए शिक्षा संस्थान खड़े करने से ? संघ ने  हिन्दू मंदिरों से होने वाली आमदनी को विकास कार्यों में खर्च करने की कोई मुहिम क्यों नहीं चलायी ?

संघ के संरक्षण में सैंकड़ों अखाड़े हैं, हजारों संन्यासी हैं जिनका वे ख्याल रखते हैं। सैंकड़ों मंदिर और सम्प्रदाय हैं जो मंदिरों से धन उठाते हैं , मंदिर बनवाते हैं या भवन बनवाते हैं या फिर संघका ” हम हिन्दू हम हिन्दू”  प्रचार  करते हैं। प्रचार से धर्म नहीं बचता। धर्म बचता है जनता की सेवा से। हिन्दू धर्म को बचाना है तो संघ के लोग सेवा करना सीखें। धर्म में सेवा का महत्व है। प्रेम का महत्व है। मुश्किल यह है कि संघ को सेवा और प्रेम से कोई लेना-देना नहीं है। उलटे इन चीजों से ऩफरत करते हैं। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

संघ पर बातें करते समय संघ के  समग्र आचरण को देखें , उसमें निजी कार्य करने वालों को नहीं। संघ की समग्रता में जो भूमिका रही है वह सारी दुनिया में चिन्ता पैदा कर रही है। संघ ने ईसाई और इस्लाम के खिलाफ जिस तरह मोर्चे खोले हुए हैं उससे देश में सामाजिक घृणा बढ़ रही है। सामान्य मध्यवर्ग के लोगों में ईसाईयों और इस्लाम के खिलाफ नफरत बढ़ी है। फेसबुक पर समझदार लोग भी ”हाय ईसाई –हाय ईसाई” कर रहे हैं ! यह बेहद चिन्ताजनक स्थिति है।

”हाय ईसाई हाय ईसाई”का नारा धार्मिक असहिष्णुता बढ़ाने वाला है और सामान्य सामाजिक परिवेश को घृणा सेभर रहा है। यह संविधान की मूल भावना पर हमला है। असल में मोहन भागवत और उनकी हिन्दूभजन मंडली बुनियादी तौर इस तरह के प्रसंगों को उठाकर  संविधान की मूल धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक भावना को घायल कर रही है। वे ईसाईयों और मुसलमानों के बारे में आधारहीन और काल्पनिक बातों को प्रचारित करते हैं और फिर उन पर विश्वास  पैदा करने के लिए मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

घृणा के प्रचारकों की यह विशेषता रही है कि उसको सत्य से नफरत होती है। मोहन भागवत की भी यही समस्या है, वे सत्य कम बोलते हैं और असत्य अधिक बोलते हैं। किसी संगठन का सरगना यदि असत्य बोले और उसको ही काल्पनिक कहानियों के जरिए प्रचारित करे तो उसे हम एक ही तरीके से रोक सकते हैं, हम उसका प्रतिवाद करें । जिस तरह ‘हाय ईसाई हाय ईसाई’ का नारा काल्पनिक है और असत्य पर आधारित है, वैसे ही संघ का ‘हम हिन्दू सब हिन्दू’ का नारा काल्पनिक है।

भारत आधुनिक देश में इसमें नागरिक रहते हैं, हिन्दू-ईसाई आदि नहीं रहते। संविधान ने हमें नागरिक की पहचान दी है। हमें नागरिकों के हक दिए हैं। हिन्दुओं या ईसाईयों के पास उनके धर्म के दिए सीमित अधिकार हैं। असल अधिकार तो वे हैं जिन्हें हम नागरिक अधिकार कहते हैं। देश नागरिक अधिकारों में जीता है, धर्म में नहीं। हम धार्मिक नहीं, नागरिक हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

 (ब्लॉग ‘नया जमाना’ से साभार)

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement