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महाराष्ट्र

अब कोई बहाना नहीं जिसकी आड़ में हम तकनीकी माध्यमों पर हिंदी में काम करने से बचें: बालेन्दु शर्मा दाधीच

मुंबई में गत दिनों आयोजित वैश्विक हिंदी सम्मेलन के दौरान हिंदी भाषा के चहुंमुखी विकास और प्रसार के संदर्भ में गंभीर विचार-विमर्श किया गया। देश विदेश से जुटे विद्वानों, विशेषज्ञों और हिंदी प्रेमियों ने हिंदी का उज्ज्वल वर्तमान और भविष्य सुनिश्चित करने के लिए कई त्वरित तथा दीर्घकालीन कदम सुझाए। आम सम्मेलनों की तुलना में मुंबई सम्मेलन का रुझान सकारात्मक प्रतीत हुआ और दिन भर की मंत्रणा के बाद यह आयोजन हिंदी की सामर्थ्य तथा समृद्धि के प्रति आश्वस्ति का उद्घोष करते हुए संपन्न हुआ। दक्षिण अफ्रीका से आए हिंदी प्रेमियों की उपस्थिति सम्मेलन के दौरान खास तौर पर आकर्षण का केंद्र थी, जो पूरे उत्साह के साथ बड़ी संख्या में शामिल हुए। वैश्विक हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन गोवा की राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा ने किया।

<p>मुंबई में गत दिनों आयोजित वैश्विक हिंदी सम्मेलन के दौरान हिंदी भाषा के चहुंमुखी विकास और प्रसार के संदर्भ में गंभीर विचार-विमर्श किया गया। देश विदेश से जुटे विद्वानों, विशेषज्ञों और हिंदी प्रेमियों ने हिंदी का उज्ज्वल वर्तमान और भविष्य सुनिश्चित करने के लिए कई त्वरित तथा दीर्घकालीन कदम सुझाए। आम सम्मेलनों की तुलना में मुंबई सम्मेलन का रुझान सकारात्मक प्रतीत हुआ और दिन भर की मंत्रणा के बाद यह आयोजन हिंदी की सामर्थ्य तथा समृद्धि के प्रति आश्वस्ति का उद्घोष करते हुए संपन्न हुआ। दक्षिण अफ्रीका से आए हिंदी प्रेमियों की उपस्थिति सम्मेलन के दौरान खास तौर पर आकर्षण का केंद्र थी, जो पूरे उत्साह के साथ बड़ी संख्या में शामिल हुए। वैश्विक हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन गोवा की राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा ने किया।</p>

मुंबई में गत दिनों आयोजित वैश्विक हिंदी सम्मेलन के दौरान हिंदी भाषा के चहुंमुखी विकास और प्रसार के संदर्भ में गंभीर विचार-विमर्श किया गया। देश विदेश से जुटे विद्वानों, विशेषज्ञों और हिंदी प्रेमियों ने हिंदी का उज्ज्वल वर्तमान और भविष्य सुनिश्चित करने के लिए कई त्वरित तथा दीर्घकालीन कदम सुझाए। आम सम्मेलनों की तुलना में मुंबई सम्मेलन का रुझान सकारात्मक प्रतीत हुआ और दिन भर की मंत्रणा के बाद यह आयोजन हिंदी की सामर्थ्य तथा समृद्धि के प्रति आश्वस्ति का उद्घोष करते हुए संपन्न हुआ। दक्षिण अफ्रीका से आए हिंदी प्रेमियों की उपस्थिति सम्मेलन के दौरान खास तौर पर आकर्षण का केंद्र थी, जो पूरे उत्साह के साथ बड़ी संख्या में शामिल हुए। वैश्विक हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन गोवा की राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा ने किया।

सम्मेलन के दौरान गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा के हाथों प्रभासाक्षी डॉट कॉम के समूह संपादक बालेन्दु शर्मा दाधीच को ‘भारतीय भाषा प्रौद्योगिकी सम्मान’ से अलंकृत किया गया। उनके अतिरिक्त मालती रामबली (दक्षिण अफ्रीका) को वैश्विक हिन्दी सेवा सम्मान, प्रवीण जैन को भारतीय भाषा सक्रिय सेवा सम्मान एवं डॉ. सुधाकर मिश्र को आजीवन हिन्दी साहित्य सेवा सम्मान से विभूषित किया गया।
 
उद्घाटन गोवा की मुख्य सूचना आयुक्त लीना महेंदले, हिंदी शिक्षा संघ (दक्षिण अफ्रीका) की अध्यक्ष मालती रामबली, महाराष्ट्र के अपर पुलिस महानिदेशक एस.पी. गुप्ता, बीएसएनएल के मुख्य महाप्रबंधक एम.के. जैन, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के फील्ड महाप्रबंधक राजकिरण राय और हिंदुस्तानी प्रचार सभा के सचिव फिरोज पैच आदि की मौजूदगी में हुआ। श्रीमती मृदुला सिन्हा, जो कि स्वयं भी हिंदी की प्रसिद्ध साहित्यकार हैं, ने रुचिकर अंदाज में कहा कि हिंदी की लोकप्रियता का दौर लौट रहा है। भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं है बल्कि हमारे संस्कारों और संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा है। लीना महेंदले ने कहा कि रोमन पद्धति से हिंदी में टाइप करने की तकनीक (ट्रांसलिटरेशन) हिंदी भाषा के अनुकूल नहीं है। वह हमारे सोचने-समझने के तरीके को प्रभावित कर रही है। हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में काम करने के लिए इनस्क्रिप्ट नामक मानक कीबोर्ड पद्धति का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मालती रामबली ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका में कई पीढ़ियों पूर्व पहुँचे परिवार भी हिंदी के साथ जुड़े हुए हैं। वे अपनी नई पीढ़ियों को इस भाषा के साथ जोड़ने की निरंतर कोशिश कर रहे हैं जो भारतीय संस्कृति के साथ उनके संपर्क की बेहद मजबूत कड़ी है। उन्होंने कहा कि हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है, हालाँकि इसे लोकप्रिय बनाने के लिए देश-विदेश में फैले हिंदी-प्रेमियों को नए जोश के साथ जुट जाने की जरूरत है। वैश्विक हिंदी सम्मेलन संस्था के अध्यक्ष डॉ. एम.एल.गुप्ता ने सम्मेलन का प्रस्ताव रखते हुए कहा कि हिंदी व भारतीय भाषाओं का प्रयोग व प्रसार बढ़ाने के लिए भाषा-टैक्नोलोजी को अपनाते हुए शिक्षा, साहित्य, मीडिया, मनोरंजन, व्यवसाय व उद्योग जगत सहित सभी देशवासियों को साथ आना होगा। सभी के सहयोग से ही हिंदी की गाड़ी आगे बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि सम्मेलन का उद्देश्य हिंदी तथा भारतीय भाषाओं के प्रयोग व प्रसार के कार्य को आगे बढ़ाने के उपायों पर विचार-विमर्श करना है।

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सम्मेलन के ‘भाषा प्रौद्योगिकी’ पर आधारित प्रथम सत्र में बालेंदु शर्मा दाधीच ने कहा कि तकनीकी संदर्भों में हिंदी प्रयोक्ता लंबे समय तक इसी बात पर आपत्ति प्रकट करता रहा है कि उसके पास इस भाषा के अनुकूल तकनीकी युक्तियाँ और टेक्स्ट इनपुट की सुविधाएँ मौजूद नहीं हैं। अब जबकि यूनिकोड की लोकप्रियता के साथ ही देवनागरी में टेक्स्ट इनपुट की समस्या लगभग समाप्त हो गई है, हमें उस कार्य की ओर बढ़ने की जरूरत है, जिसके लिए हम इन सीमाओं का जिक्र करते रहे हैं। यह कार्य हैं- हिंदी में कन्टेन्ट (विषयवस्तु), तकनीकी सेवाओं, संचार सुविधाओं, ई-शिक्षा, ई-प्रशासन आदि से संबंधित कदम उठाने का। उन्होंने एंड्रोइड मोबाइल फोन पर देवनागरी में टाइप करने के लिए उपलब्ध कराई गई सुविधा का मंच पर प्रदर्शन किया और उपस्थित लोगों को उसके प्रयोग का तरीका सिखाया। दाधीच ने कहा कि अब हमारे पास ऐसा कोई बहाना नहीं रह गया है जिसकी आड़ में हम हिंदी में तकनीकी माध्यमों पर काम करने से बचें। देवनागरी में न जाने कितने तरीकों से टाइप करना संभव है तो बोलकर टाइप करने, अपनी हस्तलिपि में लिखी हुई इबारत को कंप्यूटर पाठ में बदलने, छपी हुई किताबों को ओसीआर के माध्यम से टाइप किए गए संपादन-योग्य पाठ में बदलना और विभिन्न भाषाओं के बीच मशीनी अनुवाद संभव हो गया है। ये सभी हिंदी में टेक्स्ट इनपुट के तरीके हैं। ऐसे में टाइपिंग की बुनियादी समस्या से आगे बढ़कर काम में जुटने की जरूरत है। हिंदी के तकनीकी अभियानों का लक्ष्य महज टाइपिंग तक ही अटक कर नहीं रह जाना चाहिए।
 
प्रौद्योगिकीविद् नरेन्द्र नायक ने ऐसे कुछ अनुप्रयोगों का प्रदर्शन किया, जिनका विकास अंग्रेजी वेबसाइटों का हिंदी इंटरफेस उपलब्ध कराने के लिए किया गया है। हिंदी सेवी प्रवीण जैन ने कहा कि हिंदी भाषियों को चाहिए कि न सिर्फ सामान्य जनजीवन में हिंदी का प्रचुरता से प्रयोग करें बल्कि प्रशासन के विभिन्न स्तंभों में हिंदी सामग्री की मांग करें। सूचनाओं को हिंदी में मांगें और तब तक चुप न बैठें जब तक कि संबंधित विभाग या संस्थान ऐसा न करे। उन्होंने सम्मेलन में मौजूद लोगों को एक संकल्प भी करवाया कि हम अपने दैनिक जीवन में हिंदी का प्रधानता से प्रयोग करेंगे। सत्र का संचालन जवाहर कर्नावट ने किया।

दूसरे सत्र में “शिक्षा व रोजगार में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाएं” पर बाल विश्वविद्यालय, गांधी नगर (गुजरात) के कुलपति हर्षद शाह ने कहा कि हिंदी देश को जोड़ने वाली भाषा है। इंदौर से आईं पूर्व जिलाधीश विजयलक्ष्मी जैन ने भारतीय भाषाओं की पुनर्स्थापना के लिए राष्ट्र-राज्य एवं जिला स्तर पर ठोस कार्ययोजना का खाका रखा ताकि हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं के नाम पर पिछले 67 सालों जारी जुबानी-जमाखर्च बंद हो और सच्चे अर्थों में देश में भारतीय भाषाओं की स्थापना हो सके। उन्होंने कहा कि हिंदी को जन-जन तक पहुँचाने के लिए उसी तरह के आंदोलन की जरूरत है, जैसा अन्ना हजारे ने चलाया था। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के अतुल कोठारी ने भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार को रोकने हेतु चल रहे कुत्सित षड्यंत्र के प्रति सभी को आगाह किया और कहा कि सभी देशी भाषाएँ सहेलियों जैसी हैं और हिन्दी के दक्षिण में होने वाले राजनैतिक विरोध को रेखांकित किया उन्होंने ऐसे झूठे विरोध का जमकर खंडन किया और शिक्षा-न्याय एवं शासन प्रशासन में भारतीय भाषाओं के लिए राष्ट्रव्यापी वैचारिक आन्दोलन पर बल दिया।

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सम्मेलन के मुख्य समन्वयक संजीव निगम के संचालन में “मीडिया व मनोरंजन में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाएं” पर आयोजित तृतीय सत्र में दोपहर का सामना के कार्यकारी संपादक प्रेम शुक्ल ने कहा कि मीडिया में आज सूचना, अपराध व मनोरंजन का बोलबाला है उसका प्रमुख कारक श्रोता व दर्शक है। उन्होने कहा कि हिंदी टीवी धारावाहिकों के कारण हिंदी का विकास काफी हुआ है। हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव ने हलके फुलके अंदाज में लोगों को हिंदी का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि हिंदी को जितना सरल और सुगम बनाया जाएगा उतना ही उसका विकास होगा और आम आदमी उसका प्रयोग करना पसंद करेंगे। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि इन दिनों मीडिया में जो हिंदी छायी हुई है वो अत्यंत प्रभावी तरीके से लोगों को प्रभावित कर रही है और अपनी ओर खींच रही है। मीडिया और मनोरंजन की वजह इस हिंदी का स्वरूप अब पूरी तरह से वैश्विक हो गया है।

“विश्व में हिंदी का प्रयोग व प्रसार” पर आयोजित चतुर्थ सत्र में दक्षिण अफ्रीका के हिंदी शिक्षा संघ की अध्यक्षा मालती रामबली, उपाध्यक्ष प्रो. उषा शुक्ला, समन्वयक डॉ. वीना लक्ष्मण तथा एस.एन.डी.टी. विश्वविद्यालय की पूर्व निदेशक व साहित्यकार डॉ. माधुरी छेड़ा ने अपने विचार रखे। सत्र का संचालन करते हुए “प्रवासी संसार” पत्रिका के संपादक राकेश पांडे ने कहा कि विदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार बड़ी तेजी से हो रहा है। इस संदर्भ में हमें दो बातों का ध्यान रखना होगा-पहला हिंदी का विकास कैसे हो और दूसरा विकास की हिंदी कैसी हो। चर्चा के मंच पर भारतीय रिजर्व बैंक के महाप्रबंधक (राजभाषा) डॉ. रमाकांत गुप्ता, हिंदी शिक्षण मंडल के अध्यक्ष डॉ. एस.पी. दुबे भी उपस्थित थे। इस अवसर पर अतुल अग्रवाल लिखित पुस्तक “बैल का दूध” तथा महावीर प्रसाद शर्मा द्वारा संपादित मासिक पत्रिका “मानव निर्माण” का विमोचन किया गया। साथ ही, संस्थाओं तथा कार्यालयों की गृह पत्रिकाओं की ई-प्रदर्शनी भी प्रस्तुत की गई।

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