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दिल्ली

नाटक समूह की अभिव्यक्ति है : स्वयं प्रकाश

दिल्ली।  ‘कहानी लिखना एक व्यक्ति की निजी गतिविधि हो सकती है लेकिन नाटक और रंगमंच के साथ ऐसा नहीं है। नाटक रंगमंच पर आकर अपना वास्तविक आकार ग्रहण करता है जिसमें निर्देशक और नाटक से जुड़े तमाम लोग अर्थ भरते हैं।’  हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार और नाटककार स्वयं प्रकाश ने हिन्दू कालेज की हिंदी नाट्य संस्था ‘अभिरंग’ के उद्घाटन समारोह में कहा कि युवा पीढी नाटक के क्षेत्र में भी रुचि लेकर आगे आ रही है यह सचमुच उल्लेखनीय बात है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।

<p>दिल्ली।  'कहानी लिखना एक व्यक्ति की निजी गतिविधि हो सकती है लेकिन नाटक और रंगमंच के साथ ऐसा नहीं है। नाटक रंगमंच पर आकर अपना वास्तविक आकार ग्रहण करता है जिसमें निर्देशक और नाटक से जुड़े तमाम लोग अर्थ भरते हैं।'  हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार और नाटककार स्वयं प्रकाश ने हिन्दू कालेज की हिंदी नाट्य संस्था 'अभिरंग' के उद्घाटन समारोह में कहा कि युवा पीढी नाटक के क्षेत्र में भी रुचि लेकर आगे आ रही है यह सचमुच उल्लेखनीय बात है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।</p>

दिल्ली।  ‘कहानी लिखना एक व्यक्ति की निजी गतिविधि हो सकती है लेकिन नाटक और रंगमंच के साथ ऐसा नहीं है। नाटक रंगमंच पर आकर अपना वास्तविक आकार ग्रहण करता है जिसमें निर्देशक और नाटक से जुड़े तमाम लोग अर्थ भरते हैं।’  हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार और नाटककार स्वयं प्रकाश ने हिन्दू कालेज की हिंदी नाट्य संस्था ‘अभिरंग’ के उद्घाटन समारोह में कहा कि युवा पीढी नाटक के क्षेत्र में भी रुचि लेकर आगे आ रही है यह सचमुच उल्लेखनीय बात है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।

उन्होंने इस अवसर पर अपनी चर्चित कहानी ‘गौरी का गुस्सा’ का पाठ किया जिसमें उपभोगवादी नयी जीवन व्यवस्था पर गहरा व्यंग्य किया गया है। कहानी पाठ के बाद पूछे गए एक सवाल के जवाब में स्वयं प्रकाश ने कहा कि मैं पिछले पैंतालीस साल से कहानियां लिख रहा हूँ और एक दिन अचानक लिखते लिखते मुझे ख्याल आया की वह क्या चीज़ है जो लोककथाओं को बरसों बरस जिंदा रखती है ? मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि एक तो लोककथाओं का कथ्य सर्वकालिक होता है अर्थात किसी भी समय का आदमी उसके साथ जुडाव महसूस कर सकता है। दूसरे उसे कहने का ढंग इतना रोचक होता है की सुनने वाले का ध्यान इधर-उधर न भटके। कथा एक सीध में चलती हैण् उसमें फालतू के भटकाव या पेंच नहीं होते और उसका प्रवाह निरंतर बना रहता है और उसमें कुछ कुतूहल का तत्व भी होता है। तो मुझे लगा कि ये गुण तो हमारी कहानी में भी हो सकते हैं। इनमें ऐसा क्या है जिसे हम साध नहीं सकते? उन्होंने कहा कि जिस देश मैं अट्ठारह पुराण उपलब्ध हों वहां जादुई  यथार्थवाद की बात  करना कहाँ तक संगत है ? कहानी को सभागार में उपस्थित श्रोताओं की भरपूर सराहना मिली।   

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इस अवसर पर अभिरंग से जुड़े एक विद्यार्थी त्रिलेख आनंद के असामयिक निधन पर श्रद्धांजलि दी गई। उनकी कुछ कविताओं का पाठ अभिरंग के युवा अभिनेताओं चंचल सचान, शिवानी शर्मा, शशि उज्ज्वल गुप्ता और आशुतोष कुमार शुक्ल ने किया। साथ ही त्रिलेख आनंद की कविताओं पर पोस्टर भी सभागार में प्रदर्शित किए गए थे। इससे पूर्व स्वयं प्रकाश ने अभिरंग के सूचना पट्ट का अनावरण किया। अभिरंग के परामर्शदाता डॉ पल्लव ने अभिरंग के इतिहास तथा अभिरंग की गतिविधियों के बार में बताया। आयोजन की अध्यक्षता कर रहे विभाग के वरिष्ठ आचार्य डॉ अभय रंजन ने फूलों से कथाकार स्वयं प्रकाश का स्वागत किया। आयोजन में हिंदी विभाग के डॉ हरींद्र कुमार, डॉ रचना सिंह सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी और शोधार्थी उपस्थित थे। अंत में अभिरंहग की तरफ से पूजा पांचाल ने सभी का आभार माना।

आशुतोष कुमार शुक्ल
संयोजक
अभिरंग, हिन्दू कालेज, दिल्ली

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