लखनऊ : वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सूर्यप्रताप सिंह को आज गंभीर धमकी मिली है। धमकी उनके शुभचिंतक के माध्यम से दिलवाई गई है। सूर्यप्रताप सिंह इन दिनों सरकार और शासन से किसी तरह की कार्रवाई की चिंता न करते हुए प्रदेश के पीड़ित किसानों, छात्रों और युवाओं पर बेबाक कलम चला रहे हैं। मौसम की मार से पस्त किसानों के दुख-दर्द को वह लगातार फेसबुक पर साझा कर रहे हैं। उन्हें धमकी भरे अंदाज में कहा गया है कि सरकार का विरोध मत करो वरना जान भी जा सकती है। अभी जो अखबार तुम्हारी बातें छाप रहे हैं, सरकार के ऐक्शन में आते ही सब साथ छोड़ जाएंगे।
सूर्यप्रताप सिंह ने सारी बात आज अपने एफबी वॉल पर सविस्तार बताते हुए अपनी राह पर अडिग रहने का निर्णय लिया है। उन्होंने अंदेशा जताते हुए लिखा है कि उन्हें कुचलने की तैयारी हो चुकी है, बस दिन और समय तय होना बाकी है। वह लिखते हैं –
” आज का वाकया : (धैर्य व ध्यान से पढ़कर प्रतिक्रिया निवेदित है)। आज एक अति प्रभावशाली शख्सियत से मेरी वार्ता हुई, जो बड़ी रोचक लगी । ये शख्स मेरे शुभचिंतक हैं। उन्होंने मुझसे कहा – ये सब लिखना बंद कर दो, यह सब ठीक नहीं, क्या मिलेगा, बहुत बड़ा नुकसान होने जा रहा है, आदि आदि ….। मैंने कहा- आप जानते हैं कि मैं आपका सम्मान करता हूँ तथा आपकी बातों को महत्व भी देता हूँ लेकिन यह बताइए कि आप मुझे परामर्श दे रहे हैं या मेरे शुभचिंतक होने के नाते एक सावधानीपूर्ण चेतावनी?
”उन्होंने ने कहा- शायद दोनों। फिर बोले व्यवस्था से क्या कोई टकरा कर जीत पाया है; जो मीडिया व अखबार आपको उकसा रहे हैं, जब आप पर व्यवस्था का तीखा वार होगा तो चार दिन साथ देकर सब भूल जायेंगे, ये बड़े …………. होते हैं। व्यवस्था में दोनों शक्ति होती है – वह अपार बलशाली है और उसे मूल्य भी लगाना आता है। डर और पैसा कलियुग में सबको नतमस्तक कर देता है, चाहे वह व्यक्ति हो या मीडिया। बिना व्यवस्था के समर्थन के कोई अखबार या चैनल नहीं चल सकता है। हाँ, उन्होंने यह भी चेताया कि छोटे कार्यकर्ता अपने ‘आकाओं’ के प्रति वफादारी सिद्ध करने की खातिर आपकी जान भी ले सकते हैं या बड़ी क्षति पहुंचा सकते हैं। जनता को तो कोई भी उल्लू बना देता है।
”उनसे मेरा प्रश्न था कि क्या मैं कुछ गलत कर रहा हूँ। मैं किसी व्यक्ति या पार्टी की आलोचना नहीं कर रहा। मैं स्वयं जिस व्यवस्था का अंग हूँ यानि प्रशासनिक व्यवस्था का दायित्व जन सामान्य के प्रति प्रथम है, बस वही याद दिलाने की कोशिश कर रहा हूँ। संविधान मैं ‘कल्याणकारी राज्य’ की परिकल्पना है, जिसका मतलब है कि प्रजातान्त्रिक व्यवस्था मैं सब कुछ ‘सामान्य जन ‘ के लिए है। जब कोई दैवी आपदा आती है तो उसके परिप्रेक्ष्य में दो कारक (two stakeholders) होते हैं – एक व्यवस्था तथा दूसरा पीड़ित वर्ग। यदि व्यवस्था पीड़ित वर्ग के प्रति संवेदनशील नहीं है तो हमें पीड़ित वर्ग ( जैसे वर्तमान में ओला वृष्टि से पीड़ित किसान) का साथ देना चाहिए। इसमें गलत क्या है? यदि विरोधाभास, विवशता व व्यंग के रूप में व्यवस्था की कमियों को उजागार करने के लिए सोशल मीडिया पर लिख दिया जाये तो इसे किसी व्यक्ति या व्यवस्था की आलोचना नहीं मानना चाहिए। प्रशासनिक व्यवस्था में किसी भी पद पर बैठा व्यक्ति, व्यक्ति नहीं अपितु ‘सेवक’ या रक्षक की भूमिका में होता है। अहंकारवश चाहे वह अपने को व्यक्ति ही मानता रहे। ‘नक़ल विरोधी’ अभियान चलाना, पीसीएस परीक्षा मैं पीड़ित वर्ग यानि ‘छात्र’ के साथ उसकी भावनाओ से जुड़ना या किसान की पीड़ा को संवेदनशीलता से दर्शाना, किसी की आलोचना की श्रेणी मैं कैसे आएगा?
”मैंने अपनी बात रखी और उन्होंने अपना परामर्श। ऐसी चर्चाओं में कोई निर्णय तो होता नहीं। फिर भी मैं उनका बहुत आभारी हूँ। उनकी बातों से लगा कि व्यवस्था ने शायद मुझे सबक सिखाने या कुचलने की तैयारी कर ली है। केवल समय तय होना है कब। परन्तु फिर भी मुझे ख़ुशी होगी कि मुझे सबक सिखाकर या कुचल कर व्यवस्थापकों का कुछ अहंकार तो कम होगा। मैं तो अखाड़े से बाहर खड़ा पीड़ित वर्ग के हित में ‘सविनय जागरूकता अभियान’ में मदद कर रहा हूँ। उनको मुक्का चलाने दो, जब मैं अखाड़े से बाहर हूँ तो मुझे मुक्का लगेगा कैसे? ईश्वर से प्रार्थना है कि उनका ही मुक्का उनके अहंकार पर लगे और वह कुछ कम हो जाये।
”हमारा प्रयास किसी जीत हार के लिए नहीं है, बस चलते रहने का है। किसी ने ठीक कहा है.. मंजिल मिल ही जाएगी, भटकने से ही सही, गुमराह तो वो लोग हैं जो घरों से निकले ही नहीं…..और… थक कर न बैठ…. ऐ मंजिल के मुसाफिर, तुझे मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा…।”