नई दिल्ली। इस देश में अगर आप पावरफुल है तो आपको कानून की उपेक्षा करने, उसके साथ खिलवाड़ करने का स्पेशल मौलिक अधिकार मिल जाता है। स्थिति विडम्बनापूर्ण है, अधिकरण के अधिनिर्णय को घोषित हुए ढाई साल हो गए हैं लेकिन उस पर अमल नहीं हो रहा है। जिन्हे फैसले का पालन करना है वो ऐसे चुप्पी मार कर बैठे हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं। ऐसा ही मजीठिया वेज बार्ड की सिफारिशों को लागू करने के संबंध में भी देखा जा रहा है जहां संबंधित मीडिया संस्थान खुले आम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
मामला हिन्दुस्तान टाइम्स लि. का है जिसने 03 अक्टूबर, 2004 को अचानक अपने कुछ कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया था। पीड़ित कर्मचारियों ने कंपनी द्वारा की गई इस नाइंसाफी को 05 फरवरी, 2005 को औद्योगिक अधिकरण(इंडस्ट्रियल ट्राईब्यूनल) में चुनौती दी थी। अधिकरण ने 23 जनवरी 2012 को अपना अधिनिर्णय घोषित करते हुए हिन्दुस्तान टाइम्स लि. के प्रबंधन को निर्देश दिया कि वो निकाले गए 272 कर्मचारियों को बहाल करे। बहाली के बाद सभी कर्मचारियों की स्थिति वही होगी जो उनके निष्कासन से पहले थी और उन्हे सतत रुप से सेवा में माना जाएगा।
औद्योगिक अधिकरण के इस अभिनिर्णय को घोषित हुए ढ़ाई साल हो चुका है। हिन्दुस्तान ने अभी तक कर्मचारियों को वापस नहीं लिया है। अधिकरण के निर्णय की प्रति लिए केस जीत चुके सभी कर्मचारी कनॉट प्लेस स्थित हिन्दुस्तान टाइम्स की बिल्डिंग के बाहर धरना भी दे रहे हैं। फिलहाल लोकतंत्र के चौथे खंभे की एक जानी मानी इकाई के कानों पर जूं भी नहीं रेंग रही है।
औद्योगिक अधिकरण के अधिनिर्णय के कुछ महत्वपूर्ण अंश
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