Siddharth Tabish-
चार हज़ार (4000) साल से यहूदी स्वयं को “खुदा द्वारा चुनी हुई नस्ल” मानते हैं.. और चुने लोग कभी “भीड़” की शक्ल में नहीं होते हैं.. इसीलिए यहूदियों ने अपने धर्म को बाहरी लोगों के लिए बंद रखा.. क्योंकि उनका धर्म ही उनकी “नस्ल” है.. आप सिर्फ़ जन्म से यहूदी हो सकते हैं.. यहूदी धर्म कभी भीड़ का धर्म नहीं रहा.. और इन्होंने अपनी “सोच दूषित” नहीं की
स्वयं को चुना हुआ या सौभाग्यपूर्ण मानना वैसे ही है जैसे शाहरुख खान स्वयं को “बेस्ट” कहते हैं.. वो हमेशा कहते हैं कि वो फिल्म इंडस्ट्री पर राज करने के लिए पैदा हुवे थे और उन्होंने ये कर दिखाया.. आपको ये घमंड लगे, बेवकूफी लगे या कुछ भी लगे.. मगर ये है.
यहूदियों के भीतर ये आत्मविश्वास कहां से आया, ये बताना तो संभव नहीं है मगर स्वयं को सौभाग्यपूर्ण और उन्नत नस्ल बताने का ये दावा उनका कभी “झूठा” साबित नहीं हुआ है.. 200 से अधिक विज्ञान का नोबेल जीतने वाली ये मुट्ठी भर लोगों की कौम उन्नत सोच और बेहतर नस्ल का दावा ऐसे ही नहीं करती है.. गूगल से लेकर फेसबुक बनाने वाले यहूदी अगर आज न होते तो शायद दुनिया वैसी न होती जैसी अभी है.. यहूदी वैज्ञानिक आइंस्टीन की वजह से ही आज के एटम बॉम से लेकर राकेट और सुदूर अंतरिक्ष का सफर हमारे लिए संभव हो पाया है.. इसलिए जो कौम आपको इतनी ऊंचाई तक पहुंचा सकती है वो हिंसक क्रूर और बेवकूफ़ नस्लों को भी काबू में करने का हुनर भी जानती है.
आतंकवाद से दुनिया अभी तक जिस तरह से निपट रही थी वो नाकाफ़ी था.. इसलिए प्रकृति किसी न किसी को खड़ा ही करेगी जो अगुवाई करेगा और तमाम नस्लों को आजादी दिलाएगा.. आपको और हमको सऊदी और ईरान समेत जैसे देश “इंसानों” के रहने लायक़ देश लगें मगर दरअसल ये हैं नहीं.. खुमैनी जैसा एक सनकी बूढ़ा करोड़ों औरतों पर राज करके उन्हें हिजाब पहनने पर मजबूर करता है और जो आवाज उठाए उसे जेल में ठूंस देता है.. सिर्फ़ इसलिए क्योंकि औरतें सिर पर एक कपड़ा नहीं लपेट रही हैं जो इस सनकी बूढ़े के हिसाब से खुदा का फरमान है.. दुनिया की दूसरी जगहों पर रहने वाला कोई भी इंसान, यहां तक कि रिफ्यूजी भी सऊदी में बसना नहीं चाहते हैं क्योंकि वो देश नहीं जेल है इंसानों के लिए.. और एक पूरी नस्ल जो सदियों से वहां पैदा होती जा रही है, “आज़ाद” होने का अर्थ ही नहीं जानती है.
तो इस मानसिकता को आज नहीं तो कल ख़त्म ही होना होगा.. और यहूदियों से बेहतर इस से और कोई नहीं लड़ पाएगा.. हमास जो कर रहा है वो भी ज़रूरी है क्योंकि वो ये अगर नहीं करेगा तो सारी दुनिया ऐसे ही सोती रहेगी और ये “नासूर” समूची पृथ्वी को लील लेगा.. हमास यहूदियों और बाकी लोगों को भड़काए, ये ज़रूरी है.. क्योंकि अब “फाइनल काउंटडाउन” का समय है. प्रकृति ने एक मुट्ठी बराबर देश को ऐसे नहीं “बेलगाम” नस्लों के पास जगह दी है.. प्रकृति के नियम बड़े “क्रूर” हैं.
“हमास” नाम एक धोखा और छलावा है सारी दुनिया के लोगों को बेवकूफ बनाने का..
जब हमास के नाम पर आधा गाज़ा ख़त्म हो जाएगा तब कोई एक और संगठन निकल कर आएगा “हमास रिटर्न्स”.. उसे ख़त्म कीजियेगा फिर “हिजबुल्लाह”, “फ़लाने उल्लाह”, “धिमाके उल्लाह”, “रफ़ी उल्लाह”, “शफ़ी उल्लाह”, “तालिबान”, “अल-क़ायदा”, “बेक़ायदा”, “उल्टा-क़ायदा”, “सीधा-क़ायदा”.. ये सब मशरूम की तरह निकलते रहेंगे और आप उन्हें ख़त्म करते रहेंगे इस आस में कि शायद आप आतंकवाद ख़त्म कर रहे हैं.. भारत और अमेरिका समेत जाने कितने देश लगभग “पचास” सालों से यही कर रहे हैं.
हमास और कोई नहीं बल्कि “गाज़ा” के नागरिक हैं.. ये आम घरों में पले हैं, वहीँ बड़े होते हैं और वहीँ जा कर छिपते हैं.. एक घर में दो भाई हैं जिनमे से एक हमास बना हुआ है दूसरा हिजबुल्लाह.. इनका कहीं कोई ऑफिस या कोई हेडक्वार्टर नहीं होता है.. इसलिए इन्हें मारने के लिए आपको आम नागरिक ठिकानों पर ही हमला करना पड़ेगा.. जो लोग ये वकालत कर रहे हैं कि इस्राईल गाज़ा के निवासियों पर हमला कर रहा है वो ये बताने का कष्ट करें कि “हमास” को नागरिकों के बीच से पहचान कर कैसे मारा जाय? एक बेटा है जो अपने पड़ोसियों को मिलिर्ट्री ट्रेनिंग दे रहा था, इस्रायिलियों को मारने के लिए, और अब अपनी माँ की छाती से लिपटा अपने फ्लैट में बैठा है, उसे कैसे ढूंढ के मारा जाएगा? उसकी माँ और उसका परिवार सब जानता है और वो उसे छिपाए बैठा है.. कैसे मारेगी मिलिट्री उसे ये बताईये?
सीरिया, अफगानिस्तान समेत सभी देशों का यही हाल था.. नागरिक ही आतंकी थे.. कश्मीर का भी यही हाल है.. जिस दिन कश्मीर के नागरिक ठान लेंगे, आतंकवाद ख़त्म हो जाएगा.. मगर वो ठानेंगे क्यूँ? वो ठानेंगे ही नहीं कभी.. उनकी “आइडियोलॉजी” उन्हें ठानने ही नहीं देगी.
इरान से लेकर हमास, सब एक किताब, एक आइडियोलॉजी के मानने वाले हैं.. बस कब किसको कहाँ और कैसे “पॉवर” मिल जाए, इन्हें इसी का इंतज़ार रहता है.. अगर कभी हमास ने भारत पर अटैक किया, तो ये जो इस्राईल में उनके नरसंहार पर खुश हैं, क्या हमारे और आपके साथ खड़े होंगे? नहीं.. ये कहेंगे मोदी और योगी ज़ालिम थे और “हमास” उनका “ज़ुल्म” ख़त्म करने आया है.. और फिर आपको यहीं हजारों हज़ारों “हमास” देखने को मिलेंगे. जो भी हमास के साथ खडा है यहाँ या कहीं भी, वो “हमास” ही है.
जो गाज़ा निवासियों से बहुत प्यार करती थी उसे गाज़ा वाले’हमास’ ने बेहद क्रूरता पूर्वक मार डाला
इयाल वाल्डमैन, एक इसराइली बिजनेसमैन जो कि मेलानॉक्स (Mellanox) कंपनी के फाउंडर हैं, उन्होंने अपनी कंपनी में सैकड़ों फिलिस्तीनी इंजीनियरों को नौकरी पर रखा.. क्योंकि उनका ये मानना था कि एक दूसरे के साथ रिश्ते एक दूसरे को इस तरह से सपोर्ट करके सुधारे जा सकते हैं.. उन्होंने गाज़ा के पश्चिमी हिस्से में कंपनी का रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर बनाया ताकि वो ज़्यादा से ज़्यादा गाज़ा निवासियों को तकनीकी द्वारा शिक्षित कर सकें और उन्हें स्वावलंबी बना सकें.. सन 2019 में ग्राफिक प्रोसेसर बनाने वाली कंपनी एनवीडिया (Nvidia) ने मेलानॉक्स का 6.9 बिलियन डॉलर में अधिग्रहण कर लिया इयाल वाल्डमैन के इस समझौते के साथ, कि वो उन सैकड़ों गाज़ा नागरिकों को इस कंपनी से कभी नहीं निकालेगी और गाज़ा पट्टी पर स्थित रिसर्च और डेवलपमेंट सेंटर उसी तरह काम करता रहेगा.
इयाल वाल्डमैन की बेटी डेनियल वाल्डमैन और उसके ब्वॉयफ्रेंड को इन्हीं गाज़ा पट्टी वालों, जिन्हें इयाल ने नौकरी और सुरक्षा दी थी, ने मार डाला है.. उसको ऐसी दर्दनाक मौत दी है कि एनवीडिया के सीईओ से लेकर सारा व्यापार जगत सदमे में है.. उसे इन लोगों ने तब मारा जब वो एक म्यूजिकल फेस्टिवल में अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ नाच रही थी.. वहीं इन गाज़ा पट्टी वालों ने हमला करके उसे मार डाला.
इयाल वाल्डमैन कहते हैं कि मेरी बेटी को इन लोगों ने सिर्फ इसलिए मार डाला क्यों वो “इसराइली” थी.. जबकि वो इन गाज़ा निवासियों से बहुत प्यार करती थी और अपनी कंपनी में इन्हें ज़्यादा से ज़्यादा नौकरी देने की वकालत करती थी. डेनियल वाल्डमैन ने गाज़ा निवासियों से अपने प्रेम की कीमत अपनी जान देकर चुका दी है.
मिश्र ने अपने 12 किलो मीटर लम्बे गाजा बॉर्डर को और मज़बूत बना दिया है..
मिश्र ने इस बॉर्डर पर उसने हाई वोल्टेज बिजली के तारों के साथ साथ 60 फ़ीट गहरी ज़मीन खोद के कंक्रीट भर रखा है ताकि हमास समेत कोई भी गाज़ा निवासी सुरंग न बना सके मिस्र में घुसने के लिए.. 1979 में जब मिस्र और इजराइल के बीच शांति समझौता हुआ था जब मिस्र को “सिनाई प्रायद्वीप” लौटाने के बाद इजराइल ने उन्हें गाज़ा भी स्वयं रखने को बोला था मगर मिस्र ने गाज़ा नहीं लिया.. क्यूंकि कोई भी गाज़ा के लोगों को अपने यहाँ रखकर अपने देश की सुख और शांति भंग करवाना नहीं चाहता है.. अगर कोई भी गाज़ा निवासी बॉर्डर पार करने की कोशिश करता है तो मिस्र ने देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा है… ये है इनका ब्रदर हुड और ये है इनकी एकजुटता!
फैसल खान
October 16, 2023 at 10:33 pm
सिद्धार्थ ताबिश वाकई आपकी सोच आपकी शक्ल की तरह ही घटिया है, अक्ल से पैदल इंसान ही हो सिर्फ आप
Atul Gupta
October 16, 2023 at 10:55 pm
Siddharth Ji , Bahut hi Sundar aur sateek aalekh. Aapko koti koti Saadhu baad.
राशीद खान
October 16, 2023 at 11:02 pm
ऐसा लेख लिखकर आपने इज़राइल ओर यहूदियों को खुशकर दिया लेकिन आपकी ये मानसिकता हिंदुस्तानी नही क्योकि हिंदुस्तान ने सबसे पहले फलस्तीन का समर्थन किया था यूरोपियन मीडिया के नक्शेकदम पर चल तरह हो पर पूरी तरह झूठ और बस झूठ ये कहानी है इससे मालूम चलता है आप कॉपी पेस्ट करनेवालों में से हो इस्लाम की तो क्यसमझ रक्खोगी सनातन धर्मतक की समझ आपको नही है पूरी तरह से सिर्फ मुस्लिम विरोधी पोस्ट नफरत से भरपूर आपकी दिखाई दी में तो भड़ास को एक स्वतंत्र प्लेटफॉर्म मानता था यशवंत सर लेकिन आज आप भी नफरति भीड़ में।खड़े नजर आए,हो सके तो इस पोस्ट के लेखक ओर आप इस्लाम को पढ़िए।
VIJAY AHUJA
October 16, 2023 at 11:05 pm
अच्छा लिखा है।
KMS
October 17, 2023 at 4:22 am
घटिया आदमी घटिया विचार।
यह व्यक्ति कभी ढंग की बात करता बी नहीं। न ही इसे जानकारी है।
कोई इन महाशय से पूछे कि इजराइल में वहां के मूल निवासी यहूदी कितने हैं तथा बाहर से लाकर बसाए गए यहूदी कितने हैं? बस इसी बात से नस्ली शुद्धता के सिद्धांत की मुलम्मा उतर जाएगी।
journalist
October 17, 2023 at 6:44 am
सनकी एक सोच पर आधारित लेख