: यूनियन के रूप में अवतरित दसावतार, जागरण कर्मियों की एकता मिसाल बनेगी : आपके हौसले, आपकी एकजुटता, आपका जुनून रंग ला रहा है। इस जुनून के आगे पहाड़ जैसा जागरण प्रबंधन की कोई चालबाजी कामयाब नहीं हो रही। यही पहली जीत है। दैनिक जागरण में कार्यरत सभी भाइयों से आग्रह है- आपकी एकता, धैर्य और संगठित रहना अन्य संस्थान के कर्मियों के लिए मिसाल बनती जा रही है। कभी जागरण में यूनियन बनेगी- ऐसा किसी ने सपने में भी नहीं सोचा।
कभी कोई वेजबोर्ड जागरण देने को मजबूर होता दिखाई देगा- कभी नहीं सोचा। बछावत वेजबोर्ड और मानीसाना वेजबोर्ड के वक्त लोगों में डर समाया था, तभी तो पुछल्ले अधिकारी भी तेवर दिखाने से बाज नहीं आते। वर्करों पर अपनी दबंगई, ज्यादतियां, उत्पीड़न करने जैसी कहानियां मालिकों को सुनाकर अपनी नौकरी बचाए रखते और अन्य लाभ उठाने से चूकते नहीं। मालिक भी इन लालीपॉप जैसी कहानियां सुनकर खुषी से झूम उठते और वरदानस्वरूप पुछल्ले अधिकारियों को इस कुकृत्य पर डांटने, डपटने की बजाए मेहरबानियों की बौछार करने से नहीं चूकते। पीएफ/हाजिरी और अन्य छोटे-मोटे कार्य देखने वाले जीएम बनने का सपना संजोए बैठे हैं।
साथियों, 1991 में दी गई कुर्बानियां अब एक बड़ा वृक्ष बन गया। पुराने कर्मचारी जागरण की एक-एक चाल से वाकिफ हैं। अपना अनुभव नवनियुक्त कर्मियों को बताना, सावधान करना इनकी प्रत्येक चालों से। डरने की कोई बात नहीं, जो डरते हैं वो खाक जिया करते हैं। डरते-डरते तो 24 साल का लंबा सफर तय कर लिया, वरर्ना जागरण में कहां दम था कि 21 दिन झेल पाता। आज आपकी एकता, एकजुटता और आपके प्रत्येक निर्णय पर जागरण की गिद्धों वाली निगाह होगी, जागरण ने इतनी ऊंचाईयां हम मेहनतकश कर्मियों के बल पर तय की। जो संस्थान पुराने कर्मचारियों को अपनाता है, उनकी सेवाकाल को सेवाश्रम समझता है, उनकी इज्जत करता, तवज्जो देता है, वही संस्थान तरक्की करता है। उम्र के 51 वर्श पूरे होने पर इधर-उधर भटकते हुए मैं हमेषा एक अर्जुन अवतरित होने की कामना के साथ जी रहा था, भगवान ने मेरी सुन ली और ला खड़ा किया- यूनियन के रूप में अवतरित दसावतार को।
मैंने भी सेवाभाव से जीवन के अमूल्य 21 साल दैनिक जागरण को अर्पित किया। सोचा था- अब यहीं से खुशी-खुशी साथियों के सामने सेवामुक्त हो जाऊंगा। लेकिन दैनिक जागरण ने इस उम्र में सहारा देने के बजाए एक झटके में मेरा सपना चकनाचूर कर मुझे दर-दर भटकने, ठोकरे खाने, रोटी-रोटी को मोहताज कर दिया। एक पल में मेरा भविष्य जम्मू जाने का फरमान सुनाकर तय करके अंधकार में धकेल दिया। मेरा सारा परिवार तितर-बितर होकर तिनके की तरह बिखर गया। आत्मा बहुत रोई, दुखी भी हुआ पर हार नहीं मानी और आज भी इनसे दो-दो हाथ कर रहा हूं। मेरे साथियों, आपके बीच एक श्रेष्ठ कर्मचारी रामजीवन गुप्ता (पीटीएस, आईएनएस) अपनी व्यथा सुनाकर आपका मनोबल बढ़ा रहा। मैं आज आपकी संगठित एकता को देखकर गदगद हूं। मैंने भी सोच रखा है- जिंदगी रहे या नहीं पर संजय गुप्ता बनाम जागरण से हार नहीं मानूंगा। तुम गुप्ता से गुप्त लिखने लगे और अब लुप्त होने का वक्त आ गया। दूसरों का भविष्य तय करने वाले जागरण का भविष्य मजीठिया वेजबोर्ड लेने के पश्चात तय होगा।
रामजीवन गुप्ता
पीटीएस
आईएनएस
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