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सुख-दुख

IPS संजीव भट्ट को बचाने के लिए अब सड़क पर उतरना ही एकमात्र विकल्प

विक्रम सिंह चौहान-

अगर आप इस दौर में मुझसे सबसे बहादुर इंसानों के बारे में पूछना चाहेंगे तो मेरा एक ही जवाब होगा …संजीव भट्ट! सत्ता के शीर्ष में बैठे तानाशाह से आंख में आंख मिलाकर लड़ना विरले ही है।

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27 फरवरी 2002 की रात को नरेंद्र मोदी ने संजीव भट्ट सहित 8 आईपीएस को मुस्लिमों को सबक सिखाने की बात कही थी।बाकी सब आईपीएस ने हाँ कह दिया पर संजीव भट्ट ने मना कर दिया। उन्होंने कहा लॉ एंड ऑर्डर हमारी ड्यूटी है और एक आईपीएस के रूप में इसे पालन करना मेरी जिम्मेदारी है।यह बात मोदी को नागवार गुजरा। बताते हैं उनकी आंखें इस विरोध से लाल हो गई थीं।

कालांतर में इसी वजह से इस आईपीएस को निलंबित किया गया, अंत में बर्खास्त भी कर दिए गए। मोदी विरोध की वजह से उन्हें 24 साल पुराने कथित प्रकरण में जेल में बुरा समय काटना पड़ रहा है। वे दो साल से जेल में हैं।

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संजीव भट्ट के साथ जेल में अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। संजीव की बेल एप्लिकेशन हाई कोर्ट ने औऱ सुप्रीम कोर्ट ने कई मर्तबा खारिज़ कर दिया है। कभी गोगोई ने जमानत देने से मना कर दिया, कभी निचली अदालत जाने कहा तो कभी किसी जज ने खुद को सुनवाई से ही अलग कर दिया।

संजीव भट्ट का प्रकरण की स्टडी करें तो सुप्रीम कोर्ट व उच्च न्यायालय नंगा नज़र आता है। इस हफ्ते हिरासत में मौत वाले मामले में सजा निलंबित करने के मामले सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई है। मुझे एक प्रतिशत भी उम्मीद नहीं है। संजीव भट्ट को न्याय अदालत के रास्ते कभी नहीं मिलेगा।

मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ये लोग अगले 5 साल संजीव को जेल से आने नहीं देंगे। उनके साथ न्यायपालिका मज़ाक कर रही है।चाहे वह सत्र न्यायालय हो, गुजरात हाई कोर्ट हो या सुप्रीम कोर्ट। यह मज़ाक सिर्फ एक व्यक्ति के इशारे पर हो रहा है जिसे संजीव से दिक्कत था, है और रहेगा।

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संजीव भट्ट के लिए सड़क पर आना होगा, मतलब आना ही होगा।

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1 Comment

1 Comment

  1. Ajai Singh Bhadauria

    January 20, 2021 at 5:57 pm

    संजीव जी के लिए जन आन्दोलन होना चाहिए। इसके लिए किसी को आगे आना होगा, लेकिन उसे भी सोच लेना चाहिए कि उसे भी है जेल की सलाखों के पीछे भेजा जा सकता। अगर जनता सड़कों पर आ जाये तो रास्ता आसान होगा।

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