शीतल पी सिंह-
हिंदू धर्म को राजनीति के चौराहे पर हर चुनाव में नीलाम करने वाली पार्टी की डबल इंजन सरकार अपनी प्रशासनिक लापरवाही से मारे गए हिंदू गरीबों के शव से अपनी कारगुज़ारी छिपाने के लिए “रामनामी” का कफ़न चुरा रही है।
दीपांकर पटेल-
सरकार अपनी इमेज बचाने के लिए कफ़न तक नुचवा दे रही.
कफ़न नोचा जा रहा है जिससे ड्रोन कैमरों में दफ़न लाशों के निशान ना दिखें.
जो हिंदुओं का अंतिम संस्कार तक बिगाड़ने पर आमादा हैं, आपको लगता है वो हिंदुओं की रक्षा कर पाएंगे?
मुझे सिर्फ एक बात का डर है. चुनरी थी तो पता चल जाता था कि नीचे कोई दफ़न है, वहां दूसरे को दफनाने के लिए गड्ढा नहीं खोदा जाता था.
अब क्या होगा.
डर ये है कि एक मृत शरीर को दफनाने के लिए गड्ढा खोदा गया और वहां दूसरा शव निकला तो?
लेकिन इन सरकारों और अफसरों को सिर्फ अपनी इमेज की पड़ी है.
जो मर गये हैं उन्हें तो चैन से रहने दीजिए सरकार!!
राम शंकर सिंह-
क्या ये जो होता दिख रहा है तस्वीर में वह यह साबित करने के लिये कि मृतक हिंदू न थे? या कि साज़िश का कोई एंग्ल फिर से पिटवाना है। या कि वाक़ई सब मुर्दों को कुत्तो से नुचवाना है!
गणेशमूर्ति को दूध पिलाने वाले देखना चाहते हैं कि उनकी यह ताज़ी फ़ितरत कितना समर्थन इकट्ठा कर सकती है? फिर ऐसे सैंकड़ों वीडियो हैं जिनमें हिंदू परिवार ला रहे हैं ‘राम नाम सत्य’ के साथ !
मुर्दों का यह लेटेस्ट अपमान है कि मर्यादा का आख़िरी कपड़ा भी हटा दो! सब हिंदू शवों को मुसलमान घोषित कर दो।
प्रमोद पाहवा-
धर्म और इंसानियत के विरूद्ध यह कफन खासोटी न केवल निंदनीय हैं अपितु धिक्कारने की हद से बहुत बहुत उपर है।।
सरकार अपनी छवि बचाने के लिए शवो के उपर सम्मान से ढकी गई चादरें ( कफन ) उठवा रही है जिससे दबाए गए मृत शरीरों को छिपाया जा सके।।
प्रशासन इसमें अपनी संलिप्तता से भी नहीं बच सकता क्योंकि फिलहाल शव दबाए जाने को रोकने के लिए पुलिस तैनात हैं।।
यहां “दफनाए” के स्थान पर “दबाए” शब्द के अंतर से ही साफ है कि मृतकों के शवों को उचित सम्मान नहीं मिला.