Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

एक शहर के कागजी संगठन और प्रेस कांउसिल आफ इंडिया

प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के अस्तित्व को लेकर वैसे भी बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। टीवी समाचारों के इस धधकते दौर में केवल प्रिंट मीडिया पर आने वाली खबरों को संज्ञान में लेने की ताकत रखने वाली इस संस्था को खत्म कर एक नयी संस्था मीडिया काउंसिल या किसी और नाम के साथ बनाने की जरुरत उठती रही है। देश भर के श्रमजीवी पत्रकारों के सबसे बड़े संगठन आईएफडब्लूजे ने सबसे पहले इस मांग को उठाया और आज तक कायम है।

प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के अस्तित्व को लेकर वैसे भी बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। टीवी समाचारों के इस धधकते दौर में केवल प्रिंट मीडिया पर आने वाली खबरों को संज्ञान में लेने की ताकत रखने वाली इस संस्था को खत्म कर एक नयी संस्था मीडिया काउंसिल या किसी और नाम के साथ बनाने की जरुरत उठती रही है। देश भर के श्रमजीवी पत्रकारों के सबसे बड़े संगठन आईएफडब्लूजे ने सबसे पहले इस मांग को उठाया और आज तक कायम है।

यह अफसोस की ही बात है आज कुछ लेटर हेड तक सीमित मीडिया के संगठन दुरभिसंधि से प्रेस कांउंसिल में घुसपैठ में कामयाब रहे हैं पर उससे भी ज्यादा हैरत की बात तो यह है कि काउंसिल के गठन में श्रमजीवी पत्रकारों के नामांकन पर माननीय उच्च न्यायलय के आदेशों के बाद भी इस तरह के संगठन 30 अप्रैल, 2014 को जारी एक आदेश को दर्शा देश के सबसे बड़े पत्रकार संगठन पर उंगली उठाने का काम कर रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इन कथित संगठनों पर एक निगाह डालना भी जरुरी है। प्रेस काउंसिल में जगह बनाने वाले एक संगठन प्रेस एसोसिएशन के बारे खुद उच्च न्यायालय ने यह पाया कि गठन के बाद से 45 सालों में इसने दिल्ली के पटपड़गंज में रजिस्ट्रार के कार्यालय में आज तक अपने चुनाव संबंधी, बैलेंस शीट संबंधी, संगठन संबंधी कोई ब्यौरा पेश ही नही किया। एक दूसरे कथित संगठन वर्किंग न्यूजकैमरामेन एसोसिएशन का गठन 1995 में बताया जाता है और इसने भी आजतक अपने क्रियाकलापों का कोई ब्यौरा पेश नही किया। सुधी पत्रकार साथी बेहतर बता पाएंगे गर देश के किसी कोने में इन संगठनों की किसी ईकाई के बारे में देखा, सुना और जाना हो।

अब जबकि उच्च न्यायालय के माननीय जस्टिस मनमोहन की एकल खंडपीठ ने प्रेस काउंसिल में सात श्रमजीवी पत्रकारों के प्रतिनिधियों के नामांकन पर साफ फैसला दे दिया है कि उक्त प्रक्रिया सबजेक्ट टू कोर्ट आर्डर है। इतना ही कोर्ट ने उक्त दोनो संगठनों के देशव्यापी उपस्थिति पर भी सवाल खड़े किए हैं। इस संर्भ में 22 जुलाई को न्यायालय ने अगली तारीख तय की है। उम्मीद की जाती है केवल लुटियंस की दिल्ली में सरकारी भवन में बैठ पत्रकारों का कथित संगठन चलाने वालों की कारगुजारियों पर लगाम लगेगी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक सिद्धार्थ कलहंस लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और पत्रकारों के नेता हैं. 

संबंधित खबरें…

Advertisement. Scroll to continue reading.

के. विक्रम राव और सुरेश अखौरी के पत्रकार संगठनों को मान्यता नहीं मिली, देखें सूची

xxx

Nominations to 12th PCI in the category of working journalists are subject to HC verdict

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement