शैलेंद्र प्रताप सिंह-
माननीय कल्याण सिंह जी का जाना दुखी कर गया। उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि। प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से मेरा सीधा सम्पर्क मुख्यरूप से मेरे पुलिस अधीक्षक कार्यकाल (1995-2005) के दौरान से शुरू हुआ था और इस दौरान जितने भी मुख्यमंत्रियों से सम्पर्क हुआ, बाते हुई, निर्देश मिले, उनमें जहां तक प्रशासनिक दक्षता का सवाल है, कल्याण सिंह जी को मैं शीर्ष पायदान पर पाता हूँ।
अधिकारियों के बारे में भी उनकी व्यक्तिगत जानकारी हद दर्जे की थी। लगा था कि कोई भी राजनेता या वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक वह अपने अधीनस्थों के बारे में ठीक से जानकारी नहीं रखता। मैं ऐसे तमाम विभागीय उदाहरण जानता हूँ जहां पुलिस के अधिकारियों की नियुक्ति कम से उनकी दक्षता के लिहाज़ से बिल्कुल ही ग़लत होती है।
याद आता है जब मैं पुलिस अधीक्षक मीरजापुर था, वह मुख्यमंत्री बने (1997) थे। माँ विंध्यवासिनी के दर्शन करने आते रहते थे। एक दिन उन्होंने मंदिर के पास ही मुझे बुलाकर कहा कि अपनी पसंद के किस ज़िले में स्थानांतरण चाहते हो। मैं सन्न रह गया। मैंने कहा- सर बच्चे बड़े हो रहे है, उनकी शिक्षा के दृष्टिकोण से लखनऊ किसी पोस्ट पर स्थानांतरण ठीक रहेगा।
उन्होंने कहा, नहीं ज़िला बताओ, SSP लखनऊ कर दूँ। मैंने कहा नहीं सर, मैं बहुत जूनियर हूँ उस पोस्ट के लिये। फिर उन्होंने बाराबंकी सुझाया और मैंने सहमति दे दी। बात यहीं ख़त्म नहीं हुई। उन्होंने कहा मीरजापुर के लिये कोई अधिकारी बताइये। मैंने पहले एक ऐसे अधिकारी का नाम बताया जो मीरजापुर के लिये लालायित थे , बहुत प्रयास कर रहे थे , सोचा शायद उनकी सिफ़ारिश भी उन तक पहुँची हो पर उन्होंने तत्काल कहा कि वह अधिकारी ठीक नहीं है , दूसरा नाम बताओ।
मैं दंग रह गया और फिर मैंने बद्री भाई का नाम सुझाया। उन्होंने कहा कि हाँ वह अच्छे अधिकारी है पर फिर वह उनकी पिछली नियुक्तियों की विस्तृत चर्चा करने लगे और बद्री भाई के सम्बंध में उनकी जानकारियाँ मुझे हतप्रभ करती रही। ख़ैर क़रीब एक माह बाद जो स्थानांतरण लिस्ट निकली, उसमें मैं बाराबंकी और बद्री भाई मीरजापुर नियुक्त किये गये थे।
मुझे 1998 के मध्य में बाराबंकी की एक और धटना याद आ रही है जब सत्तापक्ष के एक ब्लाक प्रमुख ने बी डी ओ के साथ बदतमीज़ी की। मुझे कुछ दिन ही हुये थे , बाराबंकी पहुँचे। थानाध्यक्ष ने सूचना दी। मैने आदेशित किया कि FIR लिखकर अग्रिम प्रभावी कार्यवाही करें पर यह मामला ज़िला स्तर पर तो नही पर लखनऊ में तूल पकड गया। उसके कुछ प्रशासनिक कारण थे जो मुझे काफी बाद में समझ में आयें । इस प्रकरण में मेरी पेशी IG zone , प्रमुख सचिव गृह होते हुये मुख्यमंत्री तक हो गयी।
सभी मेरी कार्यवाही से संतुष्ट दिखे। तब तक आरोप पत्र कोर्ट में दाख़िल हो चुका था, ब्लाक प्रमुख साहब का लाइसेंस भी निरस्त हो चुका था।
जो बात मुझे यहाँ बताना है वह यह है कि श्री कल्याण सिंह जी ने मुझे करीब आधे घंटे यह समझाया कि शैलेंद्र, मेरे प्रदेश का हर छोटे सा छोटा सरकारी कर्मचारी कल्याण सिंह है। वह हमारा, हमारे शासन का प्रतिनिधि है। उसके साथ दुर्व्यवहार कल्याण सिंह के साथ दुर्व्यवहार है। ऐसे प्रकरणों पर बहुत सख्त कार्यवाही होनी चाहिये। ठीक है, आपने आवाश्यक क़दम उठाये हैं, यह संतोष का विषय है।
मैं पूरी नौकरी भर और आज भी श्री कल्याण सिंह जी की उस सोच को सलाम करता रहता हूँ। शासन चलाने के लिये शासन प्रशासन की एक हनक धमक जरूरी है जिससे कानून का उल्लंघन करने वाले डरे, घबड़ाये।
याद आता है वर्ष 1999 में एक दिन श्री नरेश अग्रवाल कैबिनेट मंत्री का फ़ोन आया कि एक दिन उनकी पार्टी (शायद लोकतांत्रिक कांग्रेस जो सरकार की सहयोगी थी) के सभी विधायक आपके स्थानांतरण के लिये मुख्यमंत्री के पास गये थे पर उन्होंने नहीं माना, अब मेरा आपसे अनुरोध है कि मेरी पार्टी के सदर विधायक और मंत्री श्री संग्राम सिंह से मिलकर उनकी बातें सुन लिया करे।
ख़ैर जब तक कल्याण सिंह जी मुख्यमंत्री रहे , मैं बाराबंकी का कप्तान रहा। उनके हटने के बाद ही मेरा वहाँ से स्थानांतरण कराने में राजनेता सफल हुये।
माननीय कल्याण सिंह जी को नमन।