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साहित्य

कवि बद्रीनारायण का सुहाना सफ़र- मार्क्स से मोदी तक, वाया माया!

दया शंकर राय-

कवि और निदेशक बद्रीनारायण : मार्क्सवाद से बरास्ता मायावती, मोदी महिमा गान तक का सुहाना सफर..! बस शाखा के यूनिफॉर्म के साथ एक फ़ोटो बाकी है..! कुलपति की राह बिलकुल आसान हो जाएगी..!!

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अशोक कुमार पांडेय-

ये जनाब प्रेम बचाने निकले थे, नौकरी बचाते रह गए। इनके एक परम शिष्य मुझे ज्ञान देने की कोशिश करते हैं। ख़ैर बदरी जो कर रहे हैं उसे बुरी भाषा में दलाली कहते हैं। अगर इतना गिरकर पैसे कमाना ही हिंदी में सम्मानजनक है तो अपन ‘लेखक कैसे बनें’ सिखाकर बहुत संतुष्ट हैं। नौकरी के लिए अपने सिद्धांत बेच देना ऐसे प्रोफ़ेसरों और उनके शिष्यों को मुबारक।

मेरे एक कोर्स शुरू करने पर पगलाए हिंदी के श्वान प्रेमपत्र बचाते-बचाते नौकरी बचाने के लिए संघ की शरण में जाकर गुजरात मॉडल का गुणगान करते प्रोफ़ेसर पर मालिक की डाँट खाए अलशेशियन की तरह ख़ामोश बैठे हैं।

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जानते हैं क्यों? क्योंकि डर है प्रोफ़ेसर साहब कहीं किसी इंटरव्यू में न मिल जाएँ, कहीं किसी सरकारी पुरस्कार के सर्वेसर्वा न बन जाएँ..शिमला जाने का मौक़ा न छिन जाए।

हिंदी के ट्रोल अलसेशियंस ऐसे ही पालतू होते हैं। इनकी न कोई विचारधारा है न कोई कमिटमेंट। दस दिन छोड़ दीजिए, दस-बीस-पचास सालों में भी ये कलमघिस्सू बन सकते हैं, लेखक नहीं। लालच और डर इन्हें सिर्फ़ दो कौड़ी का ट्रोल बना सकता है।

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