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‘खबरें अभी तक’ के मीडिया कर्मियों ने संघर्ष तेज किया, मांगें पूरी होने तक मोर्चे पर अडिग

”खबरें अभी तक”  चैनल के मीडिया कर्मी अपने हक के लिए दो दिनों से संघर्ष कर रहे हैं लेकिन जिस संपादक पर चैनल कर्मियों का भरोसा होता है, उसने ही उन्हें रंग दिखा दिया है। एडिर-इन-चीफ उमेश जोशी अब अपने साथी कर्मियों का फोन भी नहीं उठा रहे हैं और साथ देने की जगह परिवारिक कार्यक्रम में मौज मस्ती ले रहे बताये गये हैं। कर्मचारियों को अंदेशा है कि वह बिजली के खोपचे के मालिक सुदेश अग्रवाल के साथ समझौता कर खिसक लिये हैं। छोटे कर्मी शोषण के खिलाफ रणनीति बनाकर रोजाना ऑफिस आ रहे हैं और प्रबंधन से अपने हक के लिए लड़ रहे हैं। 

लेबर कमिश्नर को अपनी समस्या सुनाने के बाद आगे की रणनीति पर विचार विमर्श करते ‘खबरें अभी तक’ के कर्मी

”खबरें अभी तक”  चैनल के मीडिया कर्मी अपने हक के लिए दो दिनों से संघर्ष कर रहे हैं लेकिन जिस संपादक पर चैनल कर्मियों का भरोसा होता है, उसने ही उन्हें रंग दिखा दिया है। एडिर-इन-चीफ उमेश जोशी अब अपने साथी कर्मियों का फोन भी नहीं उठा रहे हैं और साथ देने की जगह परिवारिक कार्यक्रम में मौज मस्ती ले रहे बताये गये हैं। कर्मचारियों को अंदेशा है कि वह बिजली के खोपचे के मालिक सुदेश अग्रवाल के साथ समझौता कर खिसक लिये हैं। छोटे कर्मी शोषण के खिलाफ रणनीति बनाकर रोजाना ऑफिस आ रहे हैं और प्रबंधन से अपने हक के लिए लड़ रहे हैं। 

लेबर कमिश्नर को अपनी समस्या सुनाने के बाद आगे की रणनीति पर विचार विमर्श करते ‘खबरें अभी तक’ के कर्मी

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चैनल के दफ्तर में ड्यूटी करने से रोक दिए गए मीडिया कर्मी आपस में आंदोलन की रूपरेखा बनाते हुए 

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मजे की बात यह बताई गई है की जिन कर्मियों ने सुदेश की चाटुकारिता कर पहले नौकरी बचाई हुई थी, वह भी साथ दे रहे हैं (मरता क्या ना करता), जिसमें चाणक्य (अजगर साहब) आउटपुट हेड नितेश सिन्हा और कथित रुप  से इंपुट हेड मनीष मासूम है। साथ ही फिल्मों के  दिवाने ग्राफिक हेड जाकिर अली और वीडियो एडिटर टॉपी साहब सूरज हैं, जिसने टॉपी दिखाकर नौकरी बचाई हुई थी।

प्रबंधन ने पहले ही दिन से ही ऑफिस के सब दरवाजे बंद कर दिये हैं। स्वागत कक्ष से आगे किसी चैनल कर्मी को अंदर नहीं जाने दिया गया। चैनल कर्मियों ने स्वागत कक्ष से ही अपने संघर्ष की शुरुआत कर दी है और प्रबंधन से दो दिन से लड़ रहे हैं। इस दौरान रोज प्रबंधन की ओर से उन्हें आश्वासन दिया जा रहा है लेकिन बताया गया है कि बिजली खोपचे के मालिक विदेश में गुलछर्रें उड़ा रहे हैं। वह अपने चाटुकारों तक के अब फोन नहीं उठा रहे हैं। चैनल कर्मियों को अब सिर्फ सुदेश की पत्नी के माध्यम से ही आश्वासन मिल रहे हैं। प्रबंधन के निदेशक मार्केटिंग और ऑपरेशन (लाइब्रेरियन) संजीव कपूर कह रहे हैं कि चैनल की किसी रणनीति में उनकी कोई भूमिका नहीं है, न वह चैनल के फैसलों के लिए जिम्मेदार हैं लेकिन अपने केबिन (डिब्बे ) पर कस कर बैठे हुए हैं और मीडिया कर्मी जो स्वागत कक्ष से संघर्ष कर रह हैं, उन्हें धमकाने में लगे हैं। 

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दफ्तर पर चस्पा नोटिस ने पढ़ा जा सकता है कि महोदय ने हस्ताक्षर तो किये हैं लेकिन पद नहीं लिखा है। वह पुर्गठन के दौरान नोटिस में अपने आपको निर्देशक मार्केटिंग और ऑपरेशन बताया करते थे। कानूनी कार्रवाई में न फंस जाएं, इस लिए ये दोरंगी चाल चली जा रही है। HR का H भी न जानने वाले मानव संसाधन प्रबंधक नफे सिंह साहब पहले दिन तो चैनल कर्मियों को धमकाने में लगे रहे लेकिन पता चला कि अब दाल नहीं गलेगी तो गायब हो गये हैं। बताया गया है कि मार्केटिंग प्रबंधक महाराज बी डी अग्रवाल खोके की दुकान चलाने निकल गये हैं जो नफे सिंह को सहयोगी बनायेंगे क्योकि पहले दिन दोनों आये और शनिवार को ऑफिस से नदारद रहे।

आंदोलनकारियों का कहना है कि सभी चाटुकारों को भी अपने साथ जोड़े हुए वे छोटे संघर्ष कर रहे हैं। जब तक  प्रबंधन तीन माह की सैलरी नहीं दे देता, वह अपने संघर्ष को जारी रखेंगे। मंगलवार तक प्रबंधन के आश्वासन का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद चैनल मालिक के खिलाफ केस कर देंगे। उन्होंने सभी मीडिया कर्मियों से आंदोलन में सहयोग मांगा है। 

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0 Comments

  1. jai ho

    March 22, 2015 at 7:03 am

    सब मीडिया सतियों को इनके हक के लिए साथ देना चाहिए…

  2. Narender

    March 22, 2015 at 7:11 am

    sudesh aggarwall aaj kal mere sapne me aata h…lekin jab neend khulti h to samne mera kutta dikhta hai…aisa

  3. bimal gupta

    March 22, 2015 at 7:28 am

    Jarur sabhi media karmiyon ko sahyog dena chaiye….sudesh aggrwall jaise media ko apna bussiness samjhne wale logo ke liye ek sabak milna chaiye…

  4. एक अनजान स्टिंगर

    March 22, 2015 at 4:32 pm

    मेरी समझ में ये नही आता जब कोई न्यूज़ चैनल बंद होता है तो कितने ही पत्रकार भाषण देने लगते है की आंदोलन में साथ दो इनके लिए आवाज़ उठाओ कभी किसी ने ये सोचा है की ये लोग ऑफिस में काम करते है मोटी मोटी सेलरी लेते है मगर कभी इन्होने किसी स्टिंगर के लिए आवाज़ नही उठाई होगी आज इनकी फटी पड़ी है तो इनके लिए आवाज़ उठा भाड़ में जाओ

  5. पुराना कर्मी

    March 22, 2015 at 5:51 pm

    भाई हम तो पहले ही सैलरी उठाकर खबरें अभी तक को लात मार के खिसक लिए थे,,,उसी वक्त हमें तो अंदाजा हो गया था कि देश के सबसे बडे नेता(घंटा नेता) सुदेश अग्रवाल जी…..की नेता गिरी झाड़सा चौक से आगे नहीं जाने वाली,,,चले थे मुख्यमंत्री बनने,,,,बिपपपप साला,,,,,चैनल बंद करके साले ने औकात दिखा दी,,,,हरियाणा चलाने की बड़ी-बड़ी बात चौदता था,,,साला एक रिजनल चैनल नहीं चला पाया,,,
    जो हमारे मित्र अब आंदोलन की राह पर हमारी उनके साथ पूरी सहानुभूती है,,,अपना साहस,,हौसला,,,उम्मीद ना छोड़े,,,सुदेश साला अपनी बिपपपपपप करवाए,,,,

  6. Rajiv kumar

    March 22, 2015 at 7:38 pm

    ye sab galat hai.management ne hme dhokha diya hai.aur hum logo ke sathtlab khabrain abhi tak me kaam karne walo ke sath hmare heads khade hai.ye kisi todne ki chal hai.jo safail ho rahi h.

  7. purana krami

    March 23, 2015 at 9:55 am

    Khud fati to mail id bi log send kr rhe…jo purane log nikale una ka kya hoga …jab sharam nhi aayi thi …c
    Unki naukari to aaj tak nhi lga payi …saram hoti to ese likhate nhi

    .

  8. एक पुराना कर्मचारी

    March 23, 2015 at 10:11 am

    खबरें अभी तक का बंद होना बेशक एक दुखद समाचार है। यहां पर शुरुआती दौर में युवा पत्रकारों ने इसे ना सिर्फ अपने पसीने से सींचा बल्कि पूरी पूरी रात यहां काम किया है। शुरूआती दौर में, मैं भी खबरें अभी तक में रहा। यहां मैं, बिजेन्द्र और प्रदीप रात रात भर काम करते रहे हैं औऱ रात में वहीं स्टूडियों में सो जाया करते थे। लेकिन, इस चैनल का बंटाधार करने में इसके मालिक और फिर मालिकों के चमचे अहम रहे हैं। अगर ये चैनल बंद हुआ है तो इसमें जितनी गलती ए पी यादव की है उससे ज्यादा गलती विनोद मेहता और उमेश जोशी और सुदेश अग्रवाल की है। ये दलाल हैं पत्रकारिता के इन्हें सबक जरूर मिलना चाहिए। और मैं तो कहता हूं ये कहीं दिख जाए तो जूतों से पूजा कर दो इनकी। क्योंकि ये लोग अपना माल बना कर निकल गए औऱ फंस गए वो मेहनतकश लोग जिन्होंने रात दिन एक करके इस चैनल को खड़ा किया। अब चूंकि चैनल बंद हो गया है तो चैनल बिकेगा भी इसे कोई टेक ओवर भी करेगा…इसमें फिर से चैनल के मालिक मलाई काटेंगे…और मीडिया कर्मी बेचेरे अपने परिवार के लिए फिर से सड़कों पर जूते रगड़ेंगे…। सबसे अच्छा तो ये है कि इस ऑफिस को पेट्रोल डालकर आग लगा दो…कम से कम मीडिया के मालिको को एक सबक मिल जाए। और इसके मालिक संपादक कहीं मिलें तो उन्हें इतना मारों की उनकी आने वाली पुश्ते गंजी पैदा हो। या जो हैं उन्हें कम से कम इतना सबक मिले की किसी के पेट पर लात मारने का मतबल क्या होता है।

  9. santosh

    March 23, 2015 at 7:52 pm

    इस चैनल के अलग अलग डिपार्टमेंट के जितने हेड थे सब ने अपनी बचाने के चक्कर में दूसरों का गला कटवाया।फिर भी कुछ ऐसे चाटुकार है जो इन हेड्स का कर्मचारियों के साथ बता रहे है।दरसल ये हेड्स के ऐसे भक्त है जो हेड्स का तलवा ही नही सब कुछ चाट सकते है।लेकिन ह हेड्स चाहे वो उमेश जोशी हो या नितेश सिन्हा,मनीष मासूम,जाकिर या सूरज टोपी,संजीव कपूर,नफे सिंह, बीड़ी अग्रवाल सब के सब साले दोगले है।इस गधो को आप कही मीडिया जगत में नौकरी तो नही मिलने वाली।इनकी चाटुकारी की आदत से अगर किसी ने कहि नौकरी पा भी ली तो इन सब के चलते कुर्बान हो चुके छोटे कर्मचारी इनके कमींपं का हर जगह भंडाफोड़ कर ही देंगे।अब भले ही इन्हें सुदेश अग्रवाल का ये फैसला रास ना आ रहा हो पर ये सब सुदेश और उसके एक चेले अरुण की जी हुजूरी में लगे रहते थे।सबसे ज्यादा तो उमेश जोशी ने अपनी नौकरी बचने के चक्कर में अपना कभी दायित्व ना निभा कर सिर्फ सुदेश के तेल लगाया।वही मनीष मासूम नितेश सिन्हा सुदेश के साथ साथ उमेश के भी घंटो तेल लगते थे।वही वजह थी की उमेश जोशी मनीष मासूम और नितेश सिन्हा ने जमकर चैनल को लूटा।मार्केटिंग हेड की पोस्ट पर बड़ी सेलरी पर काम क्र रहे संजीव कपूर ने कभी छैनल को एक ऐड खुद लाकर नहीं दिया बीएस स्ट्रिंगर और रिपोर्टर की मेहनत को अपनी कोशिश दिखा कर सुदेश अग्रवाल को चूतिया बनाता रहा।सुदेश की भी आँखे फूटी थी जो संजीव कपूर को चैनल की आय बढ़ाने का जिम्मा दिया ।बहरहाल सभी मीडिया संस्थानों और कर्मचारियो से यही अनुरोध है की इन कमीनो को कही दुबारा नौकरी ना मिल पाये।

  10. Roney

    March 25, 2015 at 2:54 am

    खबर तो अच्छी है लेकिन इसमे बहुत सारी गलतियां हैं। किसी भी प्रकार की अशुद्धि से समाचार पत्र, न्यूज़ चैनल या पत्रिका की प्रतिष्ठा ख़राब होती है। खैर आशा है समाचार लिखते समय अगली बार इन सब बातों का ध्यान रखा जायगा।

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