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खेल को खेल ही रहने दीजिये, युद्ध बनाना है तो पाकिस्तान के साथ मत खेलिये

या हार को भी युद्ध हारने की ही तरह देखिये, दूसरों को ऐसे देखने के लिए मजबूर मत कीजिये

संजय कुमार सिंह

सुरंग की खबर के कारण मैं अन्य खबरों की चर्चा नही कर पा रहा हूं और इसमें दिल्ली के प्रदूषण की भी खबर है। दिल्ली का प्रदूषण खत्म नहीं हो रहा है अखबारों में इसकी चिन्ता नहीं है पर सरकार का प्रचार जरूर है। आज सुरंग की खबर की चर्चा करने से पहले द हिन्दू में पहले पन्ने पर छपी एक खबर की चर्चा जरूरी है। खबर का शीर्षक है, विश्व कप फाइनल के समय पाक समर्थक नारों के लिए सात कश्मीरी छात्रों पर यूएपीए के तहत आरोप। खबर के अंत में लिखा है, जम्मू और कश्मीर छात्र यूनियन ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और जम्मू व कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से अपील की है कि यूएपीए के आरोप रद्द किये जाएं। मुझे लगता है कि पाकिस्तान के समर्थन में नारा लगाने और पाकिस्तान की क्रिकेट टीम के समर्थन में पाकिस्तान जिन्दाबाद कहने में अंतर है। अव्वल तो पाकिस्तान जिन्दाबाद कहने पर भी मामला नहीं बनना चाहिये क्योंकि उससे कुछ होना नहीं है।

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अगर फिलहाल पाकिस्तान और खेल को अलग कर दूं कि चीजों को समझने में और सहूलियत होगी। अगर पाकिस्तान से इतनी ही दिक्कत है तो उसके साथ मैच नहीं होना चाहिये, उससे कोई संबंध नहीं होना चाहिये। कम से कम सार्वजनिक तौर पर। यह तो उचित नहीं हैं कि प्रधानमंत्री के शपथग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बुलाया जाए, भारत के प्रधानमंत्री बिना बुलाये उनसे मिलने पहुंच जायें लेकिन भारत में कोई व्यक्ति पाकिस्तान जिन्दाबाद का नारा नहीं लगा सके। वह भी तब जब वह देश के लिए नहीं 11-13 लोगों की टीम के लिए है जिससे आप हार जाते हैं। करोड़ों देशवासियों को हार के दबाव और शर्म में डाल देते हैं। अगर खेल में या टीम का समर्थन देश विरोध है तो उससे हार जाना आपके लिए खेल होगा बाकी देश के लिए तो हार ही है। यहां भी हार देश के लिए नहीं टीम के लिए है। अगर देश ही है तो दोनों मामले में होना चाहिए और हारने वाली टीम पर भी यूएपीए लगना चाहिये या फिर क्रिकेट टीम से निकाल दिया जाना चाहिया या प्रतिबंधित किया जाना चाहिये। यह इसलिए भी जरूरी है कि पैसे लेकर खेलने के आरोप भी लगते रहे हैं।

अभी स्थिति यह है कि हारने वाली टीम पर तो कोई कार्रवाई नहीं होती है, उसका समर्थन करने भर से जो उसकी तरफ से रन बनाने या किसी भारतीय खिलाड़ी को आउट करना भी नहीं है, उसके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। वैसे भी खेल को खेल ही रहने दीजिये और युद्ध बनाना है तो पाकिस्तान के साथ मत खेलिये या हार को भी युद्ध हारने की ही तरह देखिये। पर ऐसा कुछ नहीं करके खेल भावना में एक टीम के समर्थन या विरोध को अपराध बना देना ठीक नहीं है। खासकर बच्चो के मामले में। नेता तो परिवार के चंदा देने वाले कारोबारियों को धंधा दिलवायें और बच्चे उस देश के प्रति नफरत पालें। खास बात यह है कि ऐसी मांग या शिकायत भी छात्र की करते हैं। यह समाज में या विश्वविद्यालयों में छात्रों के बंटे होने का संकेत है और यह देशहित में नहीं है। इसे बढ़ाना देशविरोध है और देशभक्ति इसे खत्म करने में है।  

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अब आइए चांद पर पहुंचने के दावे के मुकाबले 66 मीटर मलबे के पार फंसी 41 देशभक्तों की जान बचाने के लिए जो हो रहा है उसपर नजर डालें। आप जानते हैं कि चार धाम यात्रा को आसान बनाने के उद्देश्य से निर्माणाधीन सुरंग धंसने से 16 दिन से फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए जो भी किया गया है और किया जा रहा है उसके बावजूद अभी यह तय नहीं है कितना समय लगेगा। इस बीच खबर यह है कि रैट होल माइनिंग का तरीका अपनाया जायेगा और आज इसी का प्रचार है। इस क्रम में इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में एक फोटो छापी है। इसका कैप्शन है, सोमवार को उत्तराखंड में प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव पीके मिश्रा। नवोदय टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। शीर्षक है, पीएम के मुख्य सचिव पहुंचे सिल्कयारा। हिन्दुस्तान टाइम्स ने रायटर्स की तस्वीर छापी है इसका कैप्शन है, सोमवार को सिल्कयारा टनल के पास बचाव अभियान का विस्तार। इसमें कई तरह की ढेर सारी गाड़ियां नजर आ रही है और इनमें क्रेन व दूसरी मशीनें भी हैं। मुद्दा यह है कि हम चांद पर जाने (और भेजने) का श्रेय लेते हैं, उसमें खर्च करते हैं पर 16 दिन बचाव अभियान चलाने के बाद पहाड़ पर खान मजदूरों की बहुत पुरानी विधि को अपनाने के लिए मजबूर हैं जिसे प्रतिबंधित किया जा चुका है।

कहने की जरूरत नहीं है कि इस तकनीक से मजदूर निकल सकते तो पहले ही इसका उपयोग किया गया होता और तब भले 15-16 दिन ज्यादा कहकर इस तकनीक को खारिज कर दिया गया हो पर सच यही है कि हम उसी का इस्तेमाल कर रहे हैं और आज भी यह नहीं जानते हैं कि मजदूर कब तक निल पायेंगे। लेकिन प्रचार यह किया जा रहा है कि अब नई तकनीक अपनाई गई है और ऊपर से खोदने का दूसरा काम भी चल रहा है और 36 मीटर तक खुदाई (बोर) हो चुकी है। कुल 86 मीटर ड्रिल या बोर करना है। खबर यह भी है कि पहले खुदाई कर रही मशीन के फंसे टुकड़े निकाल लिये गये हैं और हाथ से खुदाई चल रही है और इसमें कितना समय लगेगा, नहीं बताया जा सकता है। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे मामलों में सारे उपाय एक साथ शुरू कर दिये जाने चाहिये। बीच में ऐसा कहा भी गया था लेकिन कल खबर थी कि ऊपर से खुदाई शुरू हुई। आज खबर है खान मजदूरों की शैली की खुदाई हो रही है। पहले की कोशिशें बेकार हो चुकी हैं।    

अब आप समझ सकते हैं कि तैयारियां कैसी और क्या हैं तथा काम कैसे चल रहा है। शायद तस्वीर छापकर यही बताना पड़ रहा है क्योंकि परिणाम तो कुछ आ नहीं रहा है। आप जानते हैं कि कुल 66 मीटर में मलबा गिरा है। राजस्थान विधानसभा चुनाव के समय यह प्रचारित किया गया था जैसे मजदूर आज निकले, अब निकले। मतदान होते ही स्थिति बदल गई, मशीन टूटकर फंस गई, उससे खुदाई का काम छोड़ दिया गया और ऊपर से ड्रिलिंग शुरू हुई। उसके बाद भी कई दिन हो चुके हैं। कुल 66 मीटर मलबे में रास्ता बनाना है। मतदान होने थे तो यह दूरी कई दिनों बाद 10-14 मीटर रह गई थी। अब 16वें दिन बताया जा रहा है कि 12 मीटर दूरी रह गई है। आप समझ सकते हैं कि 41 मजदूरों के जीने-मरने का सवाल है, 16 दिन हो चुके हैं और नतीजा सिफर है, फिर भी खबरें कितनी सकारात्मक है। सरकार और काम करने वालों को पूरा सहयोग मिल रहा है और एक पैसे की आलोचना नहीं है। 

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आज के शीर्षक इस प्रकार हैं – 1. सेना की मदद से रैट माइनर्स ने शुरू की खोदाई, एक मीटर और आगे बढ़ा पाइप (अमर उजाला),  2. वर्टिकल ड्रिलिंग 36 मीटर, हाथों से खुदाई भी शुरू (नवोदय टाइम्स) 3. 41 फंसे हुए लोगों तक पहुंचने से लिए 16वें दिन मैनुअल ड्रिलिंग की तैयारी (फ्लैग शीर्षक है) ‘रैट होल’ खनिक घुसे (द टेलीग्राफ) 4. इंतजार जारी है तो टनल बचाव के लिए दोहरा दबाव, एक और खबर का शीर्षक है, ऑगर मशीन के नाकाम होने के बाद 6 एक्सपर्ट रैट माइनर्स रास्ता बनाने की उम्मीद कर रहे हैं (हिन्दुस्तान टाइम्स), 5. फंसे हुए मजदूरों तक पहुंचने के लिए मैनुअल ड्रिलिंग (दि हिन्दू), 6. फंसे हुए 41 लोगों तक पहुंचने के लिए रैट होल माइनर्स ने अभियान शुरू किया। (टाइम्स ऑफ इंडिया) और 7. टनल अभियान, 16वां दिन : 12 मीटर खोदना रह गया, बचावकर्ता अब मैनुअली ड्रिल करेंगे। स्पष्ट है कि ज्यादातर अखबारों ने अब मैनुअल खुदाई को लीड बनाया है लेकिन किसी ने यह सवाल नहीं उठाया है कि इसकी शुरुआत पहले ही दिन क्यों नहीं की गई। यही नहीं ऊपर से खुदाई भी बहुत बाद में शुरू हुई जबकि 86 में 36 मीटर इतनी जल्दी हो गया तो यह बहुत पहले कामयाब हो सकता था।

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