राजू मिश्र-
वरिष्ठ पत्रकार कृष्णमोहन मिश्र का गुरुवार की रात लखनऊ में हृदयाघात से निधन हो गया। वे लगभग 70 वर्ष के थे। श्री मिश्र ने अपने पीछे पत्नी और दो पुत्रियों को छोड़ा है। अपरान्ह दो बजे भैंसाकुंड स्थित श्मसान घाट पर उनकी अन्त्येष्टि हुई। श्री मिश्र को उनकी बेटी ने मुखाग्नि दी।
कृष्ण मोहन जी का जन्म वाराणसी में हुआ था। उनकी शिक्षा दीक्षा वाराणसी में ही हुई। उन्होंने मिर्जापुर के पालिटेक्निक से शिक्षा ग्रहण की थी। इसके बाद लखनऊ के बांस मंडी स्थित आईटीआई में प्रशिक्षक रहे। यहीं से करीब दस वर्ष पूर्व वे सेवानिवृत्त हुए। श्री मिश्र सांस्कृतिक पत्रकार भी थे। सेवा में रहते हुए उन्होंने सांस्कृतिक पत्रकारिता की।
वे दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान में सांस्कृतिक संवाददाता भी रहे। इसके साथ ही वे संस्कृति और संगीत पर लगातार लेखन करते थे। सोशल मीडिया में वे लगातार संगीत और गायन की विभिन्न विधाओं पर लेखन कर रहे थे। वे उ.प्र. जर्नलिस्ट्स एसोशिएशन की पत्रिका उपजा न्यूज और संस्कार भारती की पत्रिका कला कुंज भारती के भी संपादक रहे।
आजकल वे राजधानी में जानकीपुरम् क्षेत्र की इकाई के अध्यक्ष थे। गोमती नगर निवासी श्री मिश्र को बीती रात करीब नौ बजे हृदयाघात हुआ। परिवार के लोग उन्हें तत्काल डा. राम मनोहर लोहिया चिकित्सालय ले गए जहां डाक्टरों ने बताया कि तीव्र हृदयाघात से उनका निधन हो चुका है। विनम्र श्रद्धांजलि।
नवेद शिकोह-
नववर्ष की पहली सुबह ने रूदन स्वर में दी कलाविद कृष्ण मोहन की मौत की ख़बर… सदी के इतिहास में मनहूसियत के लिए जाने-जाने वाला 2020 जाते-जाते एक बार फिर कला जगत और सांस्कृतिक पत्रकारिता को झटका दे गया। कलाविद और समीक्षक कृष्ण मोहन मिश्रा का कल रात हार्टअटैक से लखनऊ में निधन हो गया। वो सत्तर वर्ष के थे।
नव वर्ष की पहली सुबह ये खबर सुन कर कला-सांस्कृतिक जगत को बड़ा आघात पंहुचा। करीब सन1980 से 1995 के दरम्यान अमृत प्रभात,दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान से वो बतौर कला समीक्षक जुड़े थे। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की सांस्कृतिक शाखा संस्कार भारतीय की पत्रिका कला कुंज के वो संपादक रहे। पत्रकारिता के लम्बे समय काल में उन्होंने उत्तर प्रदेश समाचार सेवा में भी बतौर संपादक सेवाएं दीं।उपजा में भी वो पदाधिकारी रहे।
वाराणसी से ताल्लुक रखने वाले कृष्ण मोहन मिश्रा शास्त्रीय और लोक संगीत की गहरी समझ रखने के साथ कला जगत के बेमिसाल छायाकार भी थे। रंगकर्म से भी उनका गहरा रिश्ता था। कैमरे की फ्लेशलाइट के बिना मंच के वास्तविक प्रकाश में आकर्षक कम्पोजीशन को बेहतरीन फ्रेम मे क़ैद करना उनकी फोटोग्राफी का कमाल था।
अखबारों में सांस्कृतिक पत्रकारिता के दुर्लभ हो चुके दौर में कला समीक्षक /छायाकार कृष्ण मोहन मिश्रा का चला जाना कला और सांस्कृतिक जगत व सांस्कृतिक रिपोर्टिंग के लिए बड़ा झटका है।
श्रद्धांजलि