वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र अग्रवाल का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में मजीठिया वेज बोर्ड लागू करने को लेकर श्रम विभाग हरकत में तो आया है, मगर अखबार प्रबंधन के भय और सहयोग न करने की आदत के चलते श्रम निरीक्षकों को वांछित जानकारी नहीं मिल पा रही है। राहत वाली खबर यह है कि जो श्रम निरीक्षक अखबारों के दफ्तरों की तरफ देखने से भी हिचकिचाते थे, वे आज वहां जाकर जानकारी मांगने को मजबूर हैं।
रविंद्र अग्रवाल का कहना है कि वह मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू कराने के लिए मई 2014 से संघर्षरत हैं। श्रम विभाग में शिकायतों व आरटीआई के तहत जानकारियां मांगने का दौर जारी है। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में पिछले सात माह से मामला चल रहा है। हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट में भी लड़ाई पहुंचा दी गई है।
उन्होंने बताया है कि हिमाचल प्रदेश का श्रम विभाग, जो मजीठिया वेज बोर्ड और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को लागू करवाने में पहले तो सुस्त रहा था, अब अपनी खाल बचाने के लिए हरकत में दिख रहा है। करीब सात माह की सुस्त रफ्तार के बाद शिकायत पर विभाग ने अखबार प्रबंधन के खिलाफ छानबीन तेज कर दी है। इसका खुलासा आरटीआई से प्राप्त जानकारी में हुआ है।
इसके अलावा इस बात का भी खुलासा हो रहा है कि किसी प्रकार अमर उजाला व दैनिक जागरण प्रबंधन श्रम विभाग को झूठी जानकारी परोस कर कानूनी कार्रवाई से बचने की कोशिश में लगा है। वहीं पत्रकारिता की दलाली के लिए मशहूर पंजाब केसरी प्रबंधन गुंडागर्दी पर उतारू है। इसके अलावा दिव्य हिमाचल व हिमाचल दस्तक मजीठिया को आंशिक तौर पर लागू करने की बात कर माननीय सर्वोच्च न्यायालय का मजाक उड़ाते दिख रहे हैं। हमीरपुर जिले से प्रकाशित आपका फैसला, पहली खबर व दैनिक न्यायसेतू खुद को घाटे का अखबार बताकर मजीठिया वेज देने से बच रहे हैं। इस मामले में श्रम निरीक्षकों की दयनीय हालत का भी पता चल रहा है।