Guwahati: Alternate media may be growing in India, but the conventional and mainstream medium including the newspapers still have a future in the populous country. India today emerges as a land of millions of smart phone & internet connected computer users, but there is a sizable population which lacks access to the new medium and …
Tag: newspapers
मोबाइल टावर्स लगाने का लालच और विज्ञापन के भूखे लालची अखबार… पढ़िए एक युवा ने क्यों कर लिया सुसाइड
Vinod Sirohi : जरूर शेयर करें —मोबाइल टावर्स लगाने का लालच और विज्ञापन के भूखे लालची अखबार — आप पर कोई बंदिश नहीं है आप इस मैसेज को बिना पढ़े डिलीट कर सकते हैं। अगर आप पढ़ना चाहें तो पूरा पढ़ें और पढ़ने के बाद 5 लोगों को जरूर भेजें।
मेरा नाम राहुल है। मैं हरियाणा के सोनीपत जिले के गोहाना का रहने वाला हूँ। आप भी मेरी तरह इंसान हैं लेकिन आप में और मुझमें फर्क ये है कि आप जिन्दा हैं और मैंने 19 अगस्त, 2015 को रेल के नीचे कटकर आत्महत्या कर ली।
लंदन के विश्व विख्यात अखबार ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ को जापानी मीडिया ग्रुप ‘निक्की’ ने आठ हजार करोड़ में खरीदा
लंदन : आखिरकार, ब्रिटेन के 171 साल पुराने पब्लिशिंग हाउस पियर्सन के विश्व विख्यात अखबार फाइनेंशियल टाइम्स को जापानी मीडिया ग्रुप ‘निक्की’ ने 1.3 बिलियन डॉलर (8212 करोड़ रुपए) में खरीद लिया। इस डील में एफटी ग्रुप के ‘द इकोनॉमिस्ट’ मैगजीन या थेम्स नदी के किनारे बने लंदन हेडक्वार्टर्स के 50 परसेंट स्टैक साझा नहीं। निक्की ग्रुप के सीईओ और चेयरमैन सुनिओ किटा ने कहा कि हम फाइनेंशियल टाइम्स को लेकर गर्व महसूस कर रहे हैं।
ज़्यादातर उर्दू अख़बारों की माली हालत
‘सब मेरे चाहने वाले हैं, मेरा कोई नहीं, मैं भी इस मुल्क में उर्दू की तरह रहता हूं’…. मशहूर शायर हसन काज़मी साहब का यह शेअर देश में उर्दू की हालत को बयान करने के लिए काफ़ी है. हालांकि इस मुल्क में उर्दू के कई अख़बार हैं, लेकिन ज़्यादातर अख़बारों की माली हालत अच्छी नहीं है. उर्दू के पाठक कम होने की वजह से अख़बारों की प्रसार संख्या भी सीमित है. उर्दू अख़बारों को अमूमन ईद-बक़रीद, 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही विज्ञापन मिल पाते हैं. उर्दू अख़बारों को यह भी शिकायत रहती है कि सरकारी विज्ञापन भी उन्हें बहुत कम मिलते हैं. इसके अलावा क़ाग़ज़ की बढ़ती क़ीमतें अख़बारों के लिए परेशानी का सबब बनी रहती हैं.
बड़े धनवान ला रहे छोटे अखबार, पत्रकारों के शोषण की इंतहा
अखबार मालिकों ने पत्रकारों को इतना व्यस्त कर दिया है कि उनके पास दूसरी नौकरी तलाशने तक का समय नहीं है। फोर्थ पिलर ने कई छोटे अखबारों का सर्वे किया है, जहां अत्याचार की इंतहा है। कुछ बड़े धनपशु चोला बदलकर अखबारबाजी के क्षेत्र में उतर रहे हैं। इन्हें पहचानना थोड़ा कठिन होगा। इनका अखबार तो इतना छोटा होता है कि वहां वेज बोर्ड की बात करना भी बेमानी ही होगी, लेकिन शोषण की कहानी बड़े अखबारों से भी बदतर है।
हिमाचल में मजीठिया मामले पर सक्रिय हुआ श्रम विभाग, अखबारों का असहयोग
वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र अग्रवाल का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में मजीठिया वेज बोर्ड लागू करने को लेकर श्रम विभाग हरकत में तो आया है, मगर अखबार प्रबंधन के भय और सहयोग न करने की आदत के चलते श्रम निरीक्षकों को वांछित जानकारी नहीं मिल पा रही है। राहत वाली खबर यह है कि जो श्रम निरीक्षक अखबारों के दफ्तरों की तरफ देखने से भी हिचकिचाते थे, वे आज वहां जाकर जानकारी मांगने को मजबूर हैं।
क्या यह न्यूज चैनलों और अखबारों के अंत की शुरुआत है?
फेसबुक अब अपने यूजर्स को सीधे समाचार देने वाला है. इसकी शुरूआत अमेरिका से होगी. भारत फेसबुक का दूसरा सबसे बड़ा मार्केट है और यहां भी यह होने ही वाला है. इसके साथ ही समाचारों की दुनिया निर्णायक रूप से बदल जाएगी. यह होते ही फेसबुक दुनिया का सबसे बड़ा न्यूज प्लेटफॉर्म बन जाएगा.
Six newspapers protest survey results
The Times of India published a public statement ”What’s new? certainly not IRS 2014”, challenging the correctness of the Indian Readership Survey (IRS) 2014 report. The statement is issued by six dailies Dainik Jagran, Dainik Bhaskar, Amar Ujala, Dharitri, TOI and The Hindu. The IRS 2014 report has been condemned for three reasons: One, for presenting skewed readership numbers (towards the higher side) of the above mentioned six dailies; two, for re-publishing three fourth of the ‘flawed’ IRS 2013 report; and three, having based the survey on a dated sample (January – February 2014).
मैंने पहली बार अमर उजाला का कंपनी रूप देखा था (किस्से अखबारों के : पार्ट-तीन)
(सुशील उपाध्याय)
भुवनेश जखमोला एक सामान्य परिवार से आया हुआ आम लड़का था। वैसा ही, जैसे कि हम बाकी लोग थे। वो भी उन्हीं सपनों के साथ मीडिया में आया था, जिनके पूरा होने पर सारी दुनिया बदल जाती। कहीं कोई शोषण, उत्पीड़न, गैरबराबरी न रहती। लेकिन, न ऐसा हुआ और न होना था। भुवनेश ने नोएडा में अमर उजाला ज्वाइन किया था। 2005 में उसे देहरादून भेज दिया गया, कुछ महीने बाद भुवनेश को ऋषिकेश जाकर काम करने को कहा गया। उस वक्त भुवनेश की शादी हो चुकी थी। अमर उजाला में काम करते हुए उसे लगभग पांच साल हो गए थे, उसे तब तक पे-रोल पर नहीं लिया गया था। पांच हजार रुपये के मानदेय में वो अपनी नई गृहस्थी को जमाने और चलाने की कोशिश कर रहा था। उसे उम्मीद थी कि एक दिन वह अपने संघर्षाें से पार पा लेगा और जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आ जाएगा, लेकिन होना कुछ और था।