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मध्य प्रदेश में लैपटाप बना अधिमान्य पत्रकारों के लिए मुसीबत

भोपाल।  २०१३ के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकारों को लैपटाप देने का वादा किया था। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में हुए चुनाव में पूर्णबहुमत से भाजपा सत्ता में आगयी , लेकिन भाजपा की घोषणा राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकारों के लिए मुसीबत बन गयी। प्रदेश में राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकारों की संख्या लगभग १२०० है तथा सरकार ने पत्रकारों को लैपटाप देने की मंशा से पांच करोड़ रुपये देने का प्रबंध कर दिया।

<p>भोपाल।  २०१३ के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकारों को लैपटाप देने का वादा किया था। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में हुए चुनाव में पूर्णबहुमत से भाजपा सत्ता में आगयी , लेकिन भाजपा की घोषणा राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकारों के लिए मुसीबत बन गयी। प्रदेश में राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकारों की संख्या लगभग १२०० है तथा सरकार ने पत्रकारों को लैपटाप देने की मंशा से पांच करोड़ रुपये देने का प्रबंध कर दिया।</p>

भोपाल।  २०१३ के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकारों को लैपटाप देने का वादा किया था। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में हुए चुनाव में पूर्णबहुमत से भाजपा सत्ता में आगयी , लेकिन भाजपा की घोषणा राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकारों के लिए मुसीबत बन गयी। प्रदेश में राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकारों की संख्या लगभग १२०० है तथा सरकार ने पत्रकारों को लैपटाप देने की मंशा से पांच करोड़ रुपये देने का प्रबंध कर दिया।

जनसम्पर्क विभाग के कालीदास रूपक अधिकारियों ने मुख्यमंत्री की मंशा को  पलीता लगाने के लिए  एक योजना बनायी और अधिमान्यता नियमों में गुपचुप संशोधन कर डाला, जिससे आने वाले समय में कई पत्रकार अधिमान्य पत्रकार होने की पात्रता ही खो देंगे। अधिमान्यता नियमों में संशोधन करते समय आवश्यक औपचारिकताओं को भी दरकिनार कर दिया गया। नियम संशोधन करते समय पत्रकारों के संगठनों के प्रतिनिधियों की राय भी नहीं ली गयी। इससे पूर्व विज्ञापन संबंधी नियम हों या अधिमान्यता के नियम हों, सभी में पत्रकारों के संगठनों के प्रतिनिधियों अथवा प्रतिष्ठित पत्रकारों की एक कमेटी बनायी जाती थी। सूचना जारी की जाती थी और आपत्तियां बुलाई जाती थीं। उसके बाद नियम संशोधन किये जाते थे। 

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लेकिन इस बार जनसम्पर्क विभाग ने सारी परम्पराओं को दर किनार कर जिस प्रकार से संशोधन किये हैं, वह उसकी नीयत में खोट को दर्शाते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार फिलहाल दैनिक समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सक्रिय पत्रकारों को ही लैपटाप देने की योजना है। मजेदार बात यह है कि सक्रिय पत्रकार कौन है, यह भी जनसम्पर्क विभाग तय करेगा।  स्वतंत्र पत्रकारों, वेबसाइट और समाचार पत्रों के मालिकों को लैपटाप देने की सुविधा से वंचित रखा गया है। जनसम्पर्क विभाग की इस नीति के कारण पत्रकारों के एक बड़े वर्ग में घोर नाराजगी है और वह लामबंद होकर मुख्यमंत्री से मिलकर शिकायत दर्ज करने वाले हैं।

भोपाल से अरशद अली खान की रिपोर्ट.

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0 Comments

  1. sudarshi

    October 31, 2014 at 11:38 am

    jyadatar adhimanya patrakar weekly, pakshik aur chhote akhabaron ke malik hi hote hain. yahi log sari suvidhaon ka labh uthate hain. inhen laptop dene se koi faida nahin hai. active patrakaron ko hi laptop dene main kya galat hai. asli hakdaar active patrakaar hi hain.

  2. Sohan kag

    December 24, 2016 at 4:20 am

    Pls ad me bhadas4midia

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