Neeraj Badhwar : पिछले दिनों ख़बर आई कि एक बड़ी इंवेस्टमेंट मैनेजमेंट कंपनी के सीईओ ने अपनी 611 करोड़ सालाना की नौकरी इसलिए छोड़ दी ताकि वो 10 साल की बेटी के साथ वक्त बिता पाएं। दरअसल ब्रश न करने के लिए एक रोज़ उन्होंने अपनी बेटी को टोका तो बेटी ने भी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए उन 22 महत्वपूर्ण लम्हों की लिस्ट थमा दी जब उसके पिता को उसके साथ होना चाहिए था मगर वो नहीं थे।
कुछ साल राइटर-डायरेक्ट राजकुमार संतोषी का एक इंटरव्यू पढ़ा जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे जब वो अपने घर में एक्टर-प्रोड्यूसर्स के साथ स्टोरी पर चर्चा कर रहे होते थे तो उनकी मां उस दौरान बालकनी में बैठी होती थीं। वो हमेशा सोचते थे कि मां के पास बैठकर उनसे बात करूं मगर कभी वक्त नहीं निकाल पाए और एक रोज़ मां गुज़र गई। संतोषी ने कहा, आज भी मुझे ये बात टीस देती है…मुझे चैन से सोने नहीं देती…मैं ऊपरवाले से दुआ मांगता हूं कि बस एक बार मुझे वो पल लौटा दे ताकि मैं मां के पास बैठकर उससे घंटो बात कर पाऊं।
मैं सोचता हूं कि कैसे हम पैसे और शोहरत के लिए दिन-रात भटकते हैं और घरवालों के लिए वक्त नहीं निकाल पाते मगर परिवार के इन्हीं लोगों में किसी को ज़रा भी तकलीफ होती तो दिल से दुआ निकलती है…हे भगवान चाहे तो मेरा सब कुछ मुझसे छीन ले…बस उन्हें बचा ले!
कुछ साल पहले देखी एक अँग्रेज़ी फिल्म (नाम याद नहीं) का क्लाइमेक्स याद आ रहा है जिसमें एक बूढ़ा किरदार एक बच्चे को सीख देते हुए कहता है, अगर अपने सपनों को पाने के लिए हम ज़िंदगी में आने वाले हर इंसान को इस्तेमाल या नज़रअंदाज़ करते जाएंगे तो एक पल ऐसा आएगा…जब हम वहां तो पहुंच जाएंगे…जहां पहुंचना चाहते थे मगर हम देखेंगे कि वहां पहुंचकर हम बिल्कुल अकेले खड़े हैं, क्योंकि राह में मिले तमाम लोगों को तो हम पीछे छोड़ आए हैं!
नीरज बधवार के फेसबुक वाल से.