रीवा सिंह-
तीरथ सिंह रावत ने अलविदा कह दिया लेकिन पश्चिम बंगाल में क्या? 213 सीटों की शानदार जीत दर्ज करने के बावजूद तृणमूल कांग्रेस की शीर्ष ममता बनर्जी अपनी सीट नहीं बचा सकीं और नंदीग्राम में भाजपा के उम्मीदवार सुवेंदु अधिकारी से मामूली वोटों से हार गयीं।
लेकिन विधान सभा चुनाव परिणामों में यह मामूली भी मायने रखता है क्योंकि दस्तावेज़ यही कहते हैं कि ममता बनर्जी अपनी सीट हार गयीं और विधान सभा में अपनी जगह न बना पाने वाला प्रत्याशी अगर मंत्री बन जाए तो अनुच्छेद 164(4) के अनुसार उसे छः महीने के भीतर विधानमंडल का सदस्य बनना होता है। यदि इस अवधि की समाप्ति तक वह विधानसभा व विधान परिषद का सदस्य नहीं हो पाता तो बतौर मंत्री उसका कार्यकाल समाप्त हो जाता है।
अब चूँकि कोविड जैसी महामारी का हवाला देते हुए निर्वाचन आयोग ने उपचुनाव न कराने का फैसला लिया है और सभी चुनाव स्थगित किये हैं, चुनाव कबतक हो सकेंगे इसपर टिप्पणी नहीं की जा सकती।
4 मई को मुख्य मंत्री पद की शपथ लेने वाली ममता दीदी के पास 4 नवंबर तक का वक़्त है, भवानीपुर की सीट उनकी प्रतीक्षा कर रही है। इसके अलावा भी बंगाल में शमशेरगंज व जंगीपुर की दो सीटें खाली पड़ी हैं। लेकिन उन्हें एक सीट तभी मिलेगी जब चुनाव हों और चुनाव न हुए तो उनके पास भी एकमात्र विकल्प यही होगा कि मुख्य मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दें।
तृणमूल की कर्णधार को क्या यह गवारा होगा कि सत्ता किसी और को सौंपकर कुर्सी छोड़ दें? पार्टी में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो उनके इशारे पर काम करते रहें, कठपुतली बनकर कुर्सी संभालें। लेकिन केंद्र के हर दाँव पर उसे नाकों चने चबवाने वाली ममता के तेवर इस शिकस्त को कितना क़ुबूल कर सकेंगे?
Comments on “तीरथ तो बहाना है, ममता को निपटाना है!”
यह मनघड़ंत है कि कोविड के कारण निर्वाचन आयोग ने चुनाव न कराने का निर्णय लिया है। अभी यूपी में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव सम्पन्न हुए हैं। इसी महीने ब्लाक प्रमुख के भी चुनाव होने हैं। दूसरी बात कि अगर मुख्यमंत्री चाह जाए तो किस विधायक के इतनी हिम्मत है कि वह अपनी सीट से इस्तीफा न दे दें। चाहे विधानसभा हो या विधान परिषद, ममता बनर्जी जब चाहे खुद को किसी भी सीट खाली करवा कर विधायक बन सकती है। विधायक लोग इसके लिए लालायित रहते हैं। उत्तर प्रदेश में भी राजनाथ सिंह, मायावती, अखिलेश यादव, योगी आदित्यनाथ आदि मुख्यमंत्री बनने के समय विधान सभा या विधान परिषद के सदस्य नहीं थे। बाद में सीट खाली करवा कर उस पर काबिज हो गए।
पुनः
यदि निर्वाचन आयोग ने कोविड के कारण कोई भी चुनाव या उपचुनाव न कराने के निर्देश दिए हैं, तो इसका उपलब्ध कराएं, क्षमा मांग लूंगा।
चुनाव आयोग कितने दिन चुनाव नहीं करवाएगा। ममता बनर्जी छह महीने पूर्ण होने से पहले इस्तीफा देकर किसी को मुख्यमंत्री बना सकती हैं और चुनाव अगर नहीं होंगे तो वे फिर छह महीने के लिए मुख्यमंत्री बन सकती हैं। और यह क्रम चलता रह सकता है। नेता तो विधायक दल को चुनना होता है और विधायक दल जिसे चुनता है उसे ही शपथ दिलाई जाती है। सदन का सदस्य नहीं होने की दलील छह महीने के लिए मायने नहीं रखती और चुनाव हों ही नहीं तो बार-बार उसी के चुने जाने का कोई इलाज नहीं है। इसलिए मुझे नहीं लगता कि यह कोई समस्या है। उत्तराखंड का मामला अलग था, वहां चुनाव एक साल के अंदर होने हैं और जहां चुनाव में एक साल से कम समय रह जाता है वहां उपचुनाव नहीं होते। अगर इस्तीफा देकर फिर उसी पद पर चुने जाने की बात हो तो सपन दासगुप्ता का उदाहरण सामने है।