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सुख-दुख

मनोज राय उर्फ़ पप्पू गाजीपुर के रेवतीपुर का नहीं था, वह पूरे मन मिज़ाज से बनारसी था!

हेमंत शर्मा-

पप्पू लौटेगा… मेरे जीवन में नवम्बर के शुरुआती दस दिन बड़े मनहूस है।इन्हीं दिनों में पिता जी गए।गुरूवर प्रभाष जी गए।और मेरा सबसे अभिन्न मित्र पप्पू गया।दस्तावेज़ों में वे मनोज राय थे।हम सब उन्हें पप्पू गोहराते थे।पप्पू गाजीपुर के रेवतीपुर का नहीं था। वह पूरे मन मिज़ाज से बनारसी था।जब कभी कोई करीबी दुनिया छोड़ता है लगता है शरीर का कोई हिस्सा चला गया।कोई अंग टूट गया।हम सिकुड़ गए।पप्पू के जाने के बाद मेरे भीतर यह अहसास तेरह बरस से पल रहा है।

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पप्पू राय बनारस में सपा के प्रखर नेता थे।अपने को दिलचस्प ढंग से पेश करना और मुद्दों पर असहमति के स्वर बुलंद करना उसकी आदत थी।जोखिम और संघर्ष के मूल मंत्र के साथ वह लोगों दिलो दिमाग़ पर छाने लगा था।लम्बे संघर्ष के बाद जब उसकी गाड़ी पटरी पर आई तो वह चल बसा।अजीब बेपरवाह टाईप का आदमी था।उसे न मान का हर्ष और न अपमान की टीस होती थी।न उसमें भौतिक सुखों की चाहत थी।न संसाधनों के अभाव का ग़म।समाजवाद के साथ उसने व्यवहारबाद का नया फ़ार्मूला बनाया था।जो उसके व्यापक जनाधार की मज़बूत ज़मीन थी।

आज किसी को पप्पू कहें तो उसे बेहतर सन्दर्भों में नहीं लिया जाता है।पप्पू आज मूर्खता का प्रतीक है।एक निश्छल ,बिंदास और सहज शब्द घिस घिस कर कैसे अपनी अर्थवत्ता खो बिल्कुल ठस हो गया है।पर मेरा वाला पप्पू प्रखर संवादी, कुशाग्र और अद्भुत हाज़िर जबाब था। अपनी हाज़िर जबाबी और दिलचस्प किस्सागोई से पप्पू ने नेता जी (मुलायम सिंह यादव) का भी मन मोह लिया था।मेरे साथ पप्पू की तीन चार मुलाक़ातो में नेता जी पप्पू के क़िस्से चाव से सुन चहकते थे।

पप्पू के कई मज़ेदार क़िस्से हैं।अपने जन्मदिन पर वे अक्सर हमारे पास होता था।एक बार पप्पू से मैंने पूछा कि तुम्हारा जन्मदिन कहॉं मने। पप्पू बोले भईया ‘हमरे पार्टी की बडका नेता अमर सिंह आपन जन्मदिन तिरूपति में मनावलन।हम उनसे कम कहॉं हई। बल्कि चरित्र और निष्ठा दुन्नो में उनसे मज़बूत हई।’पप्पू की बात सुन हमने सुबह ही तिरूपति का टिकट कराया।हम सपरिवार तिरूपति गए।तिरूमला ट्रस्ट के ओएसडी ने हमारे विशिष्ट दर्शन का इन्तज़ाम किया।बताते बताते उस ओएसडी ने बताया कि तिरूपति मंदिर का वर्तमान स्वरूप राजा कृष्ण देव राय ने बनवाया था।बस इतना सुनते ही पप्पू सक्रिय होगया। कहा हम उन्हीं के तो रिश्तेदार है। मनोज राय, रेवती पुर ,केयर आफ कृष्ण देव राय ।कृष्ण देव राय भी रेवती पुर के थे।भूमिहार थे।ओएसडी ने उस वंश परम्परा का जान पप्पू की आवभगत और तेज कर दी।और हम हँस रहे थे।

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ओएसडी साहब महाराज विजय नगर वाले कृष्ण देव राय की बात कर रहे थे।ये राजा दक्षिण में मंदिरों के पुनरुद्धार के लिए जाने जाते हैं। कृष्ण देवराय जहां भी गए, वहां उन्होंने आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए या खंडहर में बदल ‍चुके प्राचीन मंदिरों का जीर्णोंद्धार किया।तिरूपति राजगोपुरम्, रामेश्वरम्, राजमहेन्द्रपुरम, अनन्तपुर तक में उन्होने अनेक मंदिर बनवाए। उनके मंदिर निर्माण के इस तरीके को विजयनगर स्थापत्य शैली कहा गया।पर पप्पू तो पप्पू थे उन्हें खींच खॉंच के गाजीपुर ले गए।

पप्पू ऐसी सैकड़ों कहानियों में जिन्दा है।वह रोज याद आता है।पप्पू जीवित है।हमारी कुशाग्रता, हाज़िरजवाबी और विट में। सैकड़ों साल पहले इसी काशी में कबीर ने उद्घोष किया था।”हम न मरब, मरिहैं संसारा” ऐसा कह उन्होंने समय और मृत्यु दोनो को ठेंगा दिखाया था।इसलिए पप्पू मरता नहीं हैं।हमारी यादों में वो आज भी जस का तस जिंदा है।पप्पू लौटेगा।

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