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महाराष्ट्र

‘मुश्किलपसंद मंटो’ पर फ़िदा हुए मुम्बईकर

manto natak

एक बार फिर मुंबईकरों ने बता दिया कि दिल में उमंग और मन में कुछ करने का जज्बा हो तो जगह की दिक्कत आड़े नहीं आती। रविवार 3 अगस्त, 2014 को शाम 4 बजे “अवितोको क्रिएटिव इवनिंग” के तहत “मुश्किलपसंद मंटो” को दृश्य श्रव्य और वाक् माध्यमो से लोगों ने देखने और समझने की कोशिश की।

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एक बार फिर मुंबईकरों ने बता दिया कि दिल में उमंग और मन में कुछ करने का जज्बा हो तो जगह की दिक्कत आड़े नहीं आती। रविवार 3 अगस्त, 2014 को शाम 4 बजे “अवितोको क्रिएटिव इवनिंग” के तहत “मुश्किलपसंद मंटो” को दृश्य श्रव्य और वाक् माध्यमो से लोगों ने देखने और समझने की कोशिश की।

“रूम थिएटर” की अवधारणा के साथ कार्यक्रम की शुरुआत विनय विश्व व चित्रा जेटली ने मंटो की कहानी “चेहरा” की प्रभावी प्रस्तुति से हुई। पहली बार रंगमंच पर उतरे, विनय वीनू  व श्याम दांगी ने मंटो के विचारों की प्रस्तुति रेडियो इंटरव्यू के माध्यम से की। मराठी के रंगमंच कलाकार रवि वैद्य ने मंटो को मराठी में प्रस्तुत कर एक नया रूप प्रदान किया। अयात खान व विभा रानी द्वारा नाटक “मंटो इस्मत: दोस्त दुश्मन” के अंश के रंगपाठ ने दोनों के बीच के सम्बन्ध को नया रूप दिया।

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“मंटो जिन्दा है” की प्रस्तुति विराट कलोद्भव के कलाकारों ने की। मंटो पर वृहद् रूप से काम करनेवाले डॉ. नरेन्द्र मोहन ने मंटो के बारे में अपनी भावपूर्ण और जानकारी भरी राय रखी। लाहौर, विभाजन और विचारों से खुद का और मंटो का नाता डॉ. नरेन्द्र मोहन ने बड़ी सहजता से बयान किया। सुप्रसिद्ध स्क्रिप्ट लेखक, रंगकर्मी व् अभिनेता अतुल तिवारी ने मंटो के “सियाह हाशिये” को आधार बनाते हुए मंटो के लेखन की प्रासंगिकता को सामने रखा।

घर को रंगमंच में तब्दील कर नाट्य प्रस्तुति करना व विचारधाराओं के आरोह और अवरोह के बीच ठसाठस माहौल में मंटो को सुनना और समझना सभी के लिए एक उपलब्धि भरा अवसर लेकर आया।
 
“अवितोको क्रिएटिव इवनिंग” का आयोजन प्रत्येक माह के पहले रविवार को मुम्बई में होता है। इसमें हिन्दी व अन्य भाषाओं के साहित्य, संस्कृति, कला, रंगमंच, फिल्म व् साहित्य व् कला की विविध धाराओं को सामने लाने का प्रयास किया जाता है।

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