Tabish Siddiqui : अमजद साबरी, पाकिस्तान के क़व्वाल, जिनकी कल गोली मार कर ह्त्या कर दी गयी थी, उन पर पहले से एक ईशनिंदा का केस चल रहा था.. ईशनिंदा इस वजह से उन पर लगाई गयी थी क्यूँ कि उन्होंने पाकिस्तान के Geo टीवी पर सुबह के वक़्त आने वाले एक प्रोग्राम में क़व्वाली गायी.. और उस क़व्वाली में पैग़म्बर मुहम्मद के चचेरे भाई अली और बेटी फ़ातिमा की शादी का ज़िक्र था.. ज़िक्र कुछ ज़्यादा डिटेल में था जो कि मौलानाओं को पसंद नहीं आया.. और Geo टीवी समेत अमजद साबरी पर ईशनिंदा का मुक़दमा कर दिया गया.. और फिर एक आशिक़-ए-रसूल ने अदालत से पहले अपना फैसला दे दिया क्यूंकि उनके हिसाब से ईशनिंदा की सज़ा सिर्फ मौत थी जो पाकिस्तान की अदालत शायद ही देती एक क़व्वाली के लिए किसी को…
ये ईशनिंदा और बेअदबी का इलज़ाम लगाने वाले हमारे आस पास बहुत हैं.. मगर इस तरह की मानसिकता को जहाँ सपोर्ट मिल जाता है वहां ये अपने सबसे घिनौने रूप में दिखाई देते हैं.. कल एक दोस्त के कमेंट पर मैंने ख़लीफ़ा “उमर” को “उमर” लिखे बिना आगे “हज़रत” लगाए तो वहां कुछ लोग इतना ज़्यादा मुझ से नाराज़ हो गए कि मुझ से सीधे ये कहा कि आप “उमर” को गाली दे रहे हैं.. मैंने जब इस्लाम का इतिहास लिखना शुरू किया था जिसमे मैं पैग़म्बर मुहम्मद को हमेशा “मुहम्मद” ही लिखता था तो इतने बड़े बड़े सेक्युलर और मॉडरेट मुसलमानों ने मुझे सिर्फ इसलिए गाली दी और मुझे ब्लाक कर दिया क्यूंकि इतिहास लिखने में मैं “मुहम्मद” के बाद “सलल्लाहो अलैह वसल्लम” नहीं लगाता था..
मैंने कितनों को समझाने की कोशिश की कि जितनी भी इस्लामिक इतिहास की किताब मेरे पास हैं अंग्रेजी में सब में “मुहम्मद” को मुहम्मद ही कहा गया है क्यूंकि इतिहास की किताबें हर किसी धर्म के लिए होती हैं मगर जिनको नहीं मानना था उन्होंने नहीं माना.. क्योंकिं इनके हिसाब से ये सब ईशनिंदा है और इस्लामिक रूल होता तो अब तक मेरे खिलाफ केस कर चुके होते या इतनी ही बात के लिए मार चुके होते…
आज के इस्लामिक संस्करण में सब कुछ ईशनिंदा है, रोज़ेदार के सामने आप कुछ खा लें (पाकिस्तान में अभी एक पुलिस वाले ने इसी बात को लेकर मारा था एक शख्स को), जिसको गाना बजाना न पसंद हो उसके आगे आप गा बज लें, मतलब अगर इस्लामिक एस्टेट ऐसा सख्त रूल हो कहीं तो ईशनिंदा का आरोप किसी भी तरह से कहीं से भी घुमा के लगाया जा सकता है.. क्यूंकि जिस “सच्चे” मुसलमान को कुछ भी न पसंद हो और आप वो कर दें तो वो ईशनिंदा होती है.. पाकिस्तानी लिबरल लोग इसके खिलाफ खड़े हो रहे हैं क्यूंकि सबसे ज़्यादा इसी क़ानून का दुरूपयोग होता है वहां…
ईशनिंदा का सबसे पहला कांसेप्ट “ख़लीफ़ा उमर” का था.. मगर अभी इस इतिहास और इस से जुडी जानकारियां लिख दूं तो अच्छे से अच्छा मुसलमान नाराज़ हो जाएगा.. और ये ईशनिंदा वाले बहुसंख्यक हैं.. यहाँ भी और पाकिस्तान में भी.. ये सारे क़व्वाली और मज़ार पर जाने को ईशनिंदा ही बोलते हैं मगर अमजद साबरी से जुडी पोस्टों पर ख़ूब घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं कल से.. मगर जिसने गोली मारी है उसने इनके दिल का ही काम किया है और ये अंदर से इसे बख़ूबी जानते और मानते हैं…
रही भारत की बात तो भारत को इस्लामिक राज्य बना दीजिये फिर देखिये… वही पाकिस्तान वाला इस्लाम यहां भी आपको मिलेगा.. यहां भी वही सब हैं जो वहां पाकिस्तान में हैं.. बस उन्हें यहां मौक़ा नहीं मिल पा रहा है.. किसी मुगालते में मत रहिए… रसूल को मुहम्मद लिखने पर यहीं लखनऊ नदवा के एक मौलाना ने मुझे जान से मारने की धमकी दी थी.. वो तो कहिये जब उसे लगा कि मेरी हैसियत उस से निपटने की है तब जाके चुप हुवा वो.. पाकिस्तान तो यहीं से लोग गए हैं.. यहां कानून का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि हम लोग सलामत हैं… इस्लाम लपेटे में न आता तो आज न अहमदिया अलग होते, सूफी अलग होते, शिया अलग होते और न कोई और.. सैकड़ों पंथ बना के लोगों ने खुद को आज के इस इस्लाम से अलग कर लिया है मगर इन लोगों को अभी नहीं समझ आ रहा है कि गलती कहाँ है.. इनके हिसाब से आज के इस्लाम को गलत कहना पैग़म्बर को गलत कहना हो गया क्यूंकि मौलाना यही सिखाते और समझाते हैं इन्हें…
इस एफबी पोस्ट के लेखक ताबिश सिद्दीकी से संपर्क https://www.facebook.com/delhidude के जरिए किया जा सकता है.